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चालबाज और मौकापरस्त गद्दाफी का खूनी अंत

२० अक्टूबर २०११

सिर पर गोल टोपी, आंखों पर काला चश्मा और आग उगलते भाषण. लीबिया में मुअम्मर गद्दाफी का उदय जोश और उमंग से भरे एक नौजवान फौजी के रूप में हुआ. लेकिन वक्त बीतने के साथ गद्दाफी की छवि वंशवादी क्रूर तानाशाह की बन गई.

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तस्वीर: dapd

महज 27 साल की उम्र में गद्दाफी ने बिना खून बहाए लीबिया की राजशाही का अंत कर दिया. 1967 में इस्राएल के खिलाफ अरब जगत की हार से कई देशों में बौखलाहट उपजी. इसके लिए लीबिया के राजा इदरिस को जिम्मेदार ठहराया गया. इदरिस जिस सेना के भरोसे लोगों के गुस्से से बचने की सोच रहे थे, उसी सेना के कर्नल मुअम्मर गद्दाफी ने राजशाही का खेल खत्म करने की योजना बनाई.

रक्तहीन तख्ता पलट

एक सितंबर 1969 को राजा इदरिस तुर्की से इलाज करा कर लौटे तो सेना ने बताया कि उनका तख्ता पलट हो चुका है. बिना खून बहाए राजशाही खत्म हुई और लीबिया की कमान युवा गद्दाफी के हाथ में चली गई. जोशीले नौजवान की तरह गद्दाफी ने लोकतंत्र बहाली का वादा किया. सकारात्मक दिशा में देश की काया पलट करने की कसमें खाईं. देश को लीबिया अरब गणतंत्र नाम दिया गया.

Libyen durchlöcherte Muammar al Gaddafi Plakat in Tripolis
तस्वीर: dapd

लोगों के गुस्से को भांपते हुए गद्दाफी ने फौरन लीबिया में मौजूद अमेरिकी और ब्रिटिश सैन्य अड्डे बंद करवा दिए. दिसंबर 1969 में कई नेताओं और सैन्य अधिकारियों को अपने साथ मिला कर मिस्र की खुफिया एजेंसी ने गद्दाफी का तख्ता पलटने की कोशिश की, जो नाकाम रही.

समीकरण यहीं से बदलने शुरू हुए. बदलाव की बात करने वाले गद्दाफी तख्ता पलट की कोशिश के बाद काफी बदल गए. उन्होंने राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार करवा दिया. सेना और खुफिया विभाग में अपने करीबियों को भर दिया. धर्म का सहारा लेते हुए गद्दाफी ने अंग्रेजी कैलेंडर के महीनों के नाम तक बदल दिए. लोकतंत्र को लेकर उपजते दबाव को कम करने के लिए कर्नल गद्दाफी ने अरब सोशलिस्ट यूनियन नाम की राजनीतिक पार्टी को मंजूरी दी.

चालबाज गद्दाफी

1972 के बाद दो साल तक गद्दाफी लीबिया की रोजमर्रा की राजनीति से दूर रहे. तर्क दिया कि वह सफल इस्लामी गणतंत्र बनाने के काम में व्यस्त हैं. मेजर जुनैद को प्रधानमंत्री बना दिया गया. लेकिन जब ऐसी अफवाहें फैलने लगीं कि गद्दाफी और जुनैद के बीच सत्ता की अदला बदली हुई है तो कर्नल सामने आ गए. 1973 में कानून में एक बड़ा बदलाव कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगा दी गई.

Gaddafi und Ali Khamenei 1984 in Libyen
तस्वीर: ayandenews

1980 के दशक में गद्दाफी पर देश के नाराज कबाइली गुटों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप लगे. विदेशों में रह कर विद्रोहियों का समर्थन करने वाले 25 आलोचकों की हत्या करने के लिए एक खास टीम बनाई गई. गद्दाफी ने आलोचकों से कहा कि वह 11 जून 1980 तक खुद को लीबिया की रेवोल्यूशनरी कमेटी के हवाले कर दें. मियाद खत्म होने के बाद अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व में कई आलोचकों की हत्याएं कर दी गईं. यह सिलसिला आगे भी चलता रहा. 2004 में ऐसे भी आरोप लगे कि गद्दाफी ने एक पत्रकार की हत्या के लिए 10 लाख डॉलर की सुपारी दी.

दोहरे खेल के खिलाड़ी

इस दौरान लीबियाई खुफिया एजेंसी और पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं. हाल ही में पता चला है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने लीबिया में अपना सेंटर भी बनाया था. लेकिन इसी दौरान लीबिया सोवियत संघ और पश्चिमी दुनिया के बीच तोल मोल का खेल भी खेलता रहा. एक तरफ स्कूलों में रूसी भाषा पढ़ाई जाती रही और हथियार वहीं से खरीदे जाते रहे.

Bürgerkrieg in Libyen Erfolg der Rebellen
तस्वीर: dapd

मुश्किल में धर्म की आड़

1980 के दशक तक बदलाव और क्रांति के दावे ठंडे पड़ चुके थे. गद्दाफी खुद को तानाशाह के रूप में स्थापित कर चुके थे और खुद को चमकाए रखने के लिए वह समय समय पर नए हथकंडे अपनाते हुए आगे बढ़े. उत्तरी अफ्रीका के गैर अरब लोगों के समुदाय बेरबेर्स के खिलाफ गद्दाफी बरसे और जनभावनाओं को भड़काने की कोशिश की. 1985 में एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा, "अगर तुम्हारी मां तुम्हें भाषा देती है और अपने दूध के जरिए तुममें साम्राज्यवाद देती है तो तुम जेल में हो." 2009 तक बेरबर भाषा पर रोक लगी रही. बच्चों का नाम बेरबर भाषा के आधार पर रखने पर सजा देने का प्रावधान कर दिया. इस मुद्दे पर अरब जगत का भावनात्मक समर्थन भी मिलता रहा.

आम भावना को भड़काने के मास्टर गद्दाफी ने 1987 में ईसाई बहुल इलाके चाड में युद्ध छेड़ा. लड़ाई में लीबिया के 7,500 सैनिक मारे गए. बाद में समझौता हो गया लेकिन चाड में हमेशा अशांति बनी रही. गद्दाफी से मुक्ति पाने के लिए समय समय पर संघर्ष होते रहे.

तेल का खेल

तेल से सपन्न होने की वजह से छोटी मोटी मुश्किलों और कई बातों को नजरअंदाज करते हुए दुनिया भी लीबिया के साथ मधुर संबंध कायम रखती चली गई. 2009 में ही गद्दाफी जी-8 देशों की बैठक में हिस्सा लेने लाकिला पहुंचे. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी और होस्नी मुबारक के साथ वह मंच पर मुस्कुराते नजर आए.

Muammar al-Gaddafi
तस्वीर: picture alliance/dpa

लेकिन इस साल जनवरी से परिस्थितियां बदलनी शुरू हुईं. ट्यूनिशिया से शुरू हुई अरब जगत की क्रांति 15 फरवरी को लीबिया पहुंची. सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए. गद्दाफी उन्हें दबाते चले गए लेकिन मिस्र में मुबारक के हटने के बाद लीबिया के विरोधियों को और ताकत मिल गई. गद्दाफी में देश के पूर्वी हिस्से में सक्रिय विद्रोहियों को अल कायदा का आतंकवादी बताया. लेकिन विदेशों में तैनात लीबिया के कुछ राजदूतों के इस्तीफा देने से गद्दाफी पर दवाब बढ़ गया.

गद्दाफी का अंत

मीडिया में ऐसी रिपोर्टें आने लगीं कि गद्दाफी सेना विरोधियों को मार रही है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और पश्चिमी देशों ने गद्दाफी और उनकी सरकार पर आर्थिक और कई अन्य तरह के प्रतिबंध लगा दिए. विदेशों में उनकी संपत्ति सीज कर दी गई और गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए गए.

मार्च 2011 में लीबिया को नो फ्लाई जोन घोषित कर दिया गया. महीने भर बाद नाटो सेनाओं लीबियाई सेना पर हवाई हमले करने शुरू कर दिए. ब्रिटेन और फ्रांस ने खुलकर लीबियाई विद्रोहियों को समर्थन देना शुरू कर दिया. धीरे धीरे गद्दाफी की सेनाएं पांव पीछे खींचते हुए देश के उत्तरी हिस्से की ओर खिसकती चली गईं. गद्दाफी का गृह नगर सिर्ते लड़ाई का आखिरी पड़ाव बना. जिस जगह 7 जून 1942 को गद्दाफी पैदा हुए वहीं से 20 अक्टूबर 2011 को गद्दाफी के मरने की खबर तस्वीरों के साथ आईं. गद्दाफी अब लीबिया के इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं. इस संघर्ष में उनका एक बेटा मारा गया, एक पकड़ा गया. तीन बेटे और एक बेटी फरार है. तीन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: वी कुमार

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