चीन की सैनिक शक्ति से परेशान अमेरिका
२६ अगस्त २०११दुनिया के दो सबसे ताकतवर देशों चीन और अमेरिका के बीच संबंधों में इस हफ्ते गिरावट देखने को मिली. बुधवार को अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने चीन पर अपनी सालाना रिपोर्ट पेश की. इसमें चीन की सैन्य क्षमताओं पर टिप्पणी की गई है.
हाल ही में अमेरिकी उप राष्ट्रपति जो बाइडेन चीन की यात्रा से लौटे हैं. उस यात्रा ने रिश्तों में जिस गर्माहट का संचार किया, पेंटागन की रिपोर्ट ने उसे फिर से फ्रीजर में डाल दिया है. रिपोर्ट कहती है कि चीन की सेना के आधुनिकीकरण की रफ्तार अनुमान से कहीं ज्यादा तेज है. यह ऐसे समय में चिंता की बात है जब दुनिया के बाकी बड़े देश अपना रक्षा बजट घटा रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, "चीन के सेना के पास अब भी पुराने हथियारों का बड़ा जखीरा है और उसे अनुभव भी ज्यादा नहीं है. लेकिन पीपल्स लिबरेशन आर्मी बाकी आधुनिक सेनाओं से अपने तकनीकी अंतर को पाट रही है."
समुद्र पर जोर
ब्रसेल्स के इंस्टिट्यूट ऑफ कंटेंपररी चाइना स्टडीज (बिक्स) के रिसर्च फेलो जोनाथन होल्सलाग इस रिपोर्ट के अहम पहलू की ओर ध्यान दिलाते हैं. वह कहते हैं, "मुझे सबसे दिलचस्प बात लग रही है कि समुद्र में चीन की चाहतें बढ़ रही हैं. हर साल इस रिपोर्ट में कुछ खास बात होती है और इस साल की खास बात है समुद्र में चीन की महत्वाकांक्षाएं."
पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में चीन के पहले एयरक्राफ्ट कैरियर जहाज पर खासी तवज्जो दी है. यह जहाज इसी महीने पानी में उतारा गया. इसने चीन की सेना की पहुंच की हद काफी बढ़ा दी है. यह जहाज असल में पुराने सोवियत जहाज को दोबारा तैयार कर बनाया गया है. लेकिन रिपोर्ट कहती है कि चीन 2011 में ही पूरी तरह से अपना जहाज बनाना शुरू कर सकता है, जो 2015 तक तैयार हो जाएगा. रिपोर्ट में लिखा है, "संभव है कि चीन अगले दशक में कई विमानों को रखने की क्षमता वाले जहाज बनाएगा."
रिपोर्ट में चीन के खुफिया फाइटर जेट का भी जिक्र है. जे-20 नाम के इस विमान का इसी साल जनवरी में परीक्षण किया गया था. पेंटागन कहता है कि यह विमान बताता है कि चीन अत्याधुनिक खुफिया लड़ाकू विमान बनाने की महत्वाकांक्षाएं पाले हुए है. अमेरिका मानता है कि जे-20 चीनी एयरफोर्स को दुनिया की सबसे सुरक्षित हवाई सुरक्षा प्रणालियों को भेदने की ताकत दे सकता है.
वैसे जरूरी नहीं है कि पेंटागन के सारे अनुमान या भविष्वाणियां सही साबित हों. चीन की पनडुब्बी से लॉन्च करने की ताकत रखने वाली जेएल-2 बैलिस्टिक मिसाइल के बारे में उसका अनुमान गलत ही साबित हुआ. उसने कहा था कि 7400 किलोमीटर रेंज वाली यह मिसाइल 2010 तक तैयार हो जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
हवाई बातें
अमेरिका की इस रिपोर्ट पर चीन ने फिलहाल कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है लेकिन सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने ऐसे संकेत दिए हैं कि पेंटागन की चेतावनियों ने चीन सरकार को ज्यादा प्रभावित नहीं किया है. शिन्हुआ ने कहा है, "चीन की सेना पर लगाए गए आरोप सिर्फ हवाई बातें हैं. इनका कोई तार्किक आधार नहीं है. ये सिर्फ उलट सुलट अनुमान हैं. चीन रक्षात्मक सैन्य नीति में विश्वास रखता है. उसकी व्यवसायिक और आर्थिक गतिविधियां तेजी से फैल रही हैं. दुनियाभर में उसके रणनीतिक हित हैं. इसले उसे एक काबिल सेना बनाने का पूरा हक है."
वॉशिंगटन में चीन के दूतावास ने भी अमेरिकी रिपोर्ट पर तीखी प्रतिक्रिया दी. उसने इस रिपोर्ट को शीतयुद्ध की मानसिकता का संकेत बताते हुए कहा कि चीन को खतरा बताकर एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.
यूरोपीयन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में सीनियर फेलो जोनास पारेलो-प्लेसनर भी कुछ ऐसा ही मानते हैं. वह कहते हैं, "अब तो यह सालाना परंपरा बन गई है. वर्ष 2000 से अमेरिका हर साल रिपोर्ट जारी करता है और चीन उस पर प्रतिक्रिया देता है."
होल्सलाग कहते हैं कि असल बात यह है कि अमेरिका का सामना एक तेजी से बढ़ती ताकत से हो रहा है. वह कहते हैं, "मुझे इस रिपोर्ट से लग रहा है कि चीन आज वैसी ही स्थिति में था जैसा 19वीं सदी में अमेरिका था. तब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके हित फैल रहे थे. यह खतरनाक नहीं तो कम से कम बेहद अनिश्चित हालात तो पैदा करता ही है."
ताइवान, भारत और जापान
पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में इन तीनों का जिक्र किया है. चीन की आंख की किरकिरी बने छोटे से आजाद द्वीप ताइवान के बारे में अमेरिका की अपनी चिंताएं हैं. चीन ने पिछले साल के बड़े हिस्से में अमेरिका से रक्षा संबंध इसलिए तोड़े रखे क्योंकि अमेरिका ने ताइवान को हथियारों का एक पैकेज देने की बात की. हालांकि ताइवान इस बारे में खुल्लमखुल्ला बोलता है कि उसे अमेरिकी हथियारों की जरूरत है, लेकिन अब अमेरिका दोबारा सोच रहा है कि ताइवान को एफ-16 बेचे या नहीं.
पेंटागन की रिपोर्ट कहती है कि चीनी सेना ने कम दूरी की एक हजार से दो हजार मिसाइलें ताइवान के खिलाफ तैनात कर रखी हैं और यह विवाद लंबा खिंचेगा.
विशेषज्ञ कहते हैं कि अमेरिका की इस तरह की आलोचनाएं चीन को काबू में रखे रहती हैं लेकिन यह हल ज्यादा लंबा नहीं चलेगा. होल्सलाग कहते हैं, "एशियाई देश पूछने लगे हैं कि अपनी बढ़ती आर्थिक परेशानियों के बीच चीन इस दबाव को कब तक बनाए रख पाएगा. जापान और भारत भी अपने अलग रास्ते पर चलना चाहते हैं. इससे क्षेत्र में दबाव बढ़ेगा. हो सकता है कि 2020 तक सैन्य क्षमताओं के लिहाज से हम एक अलग दुनिया में पहुंच चुके हों. लेकिन यह तो तय है कि एशिया के रणनीतिक भूभाग में बड़े बदलाव आ चुके होंगे."
रिपोर्टः बेन नाइट/वी कुमार
संपादनः ए जमाल