चीन के समर्थन की उम्मीद में महिंदा राजपक्षे
९ अगस्त २०११राष्ट्रपति राजपक्षे शेनझेन में अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय खेलों में हिस्सा लेंगे और बाद में बीजिंग में राष्ट्रपति हू जिनथाओ और प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ से मुलाकात करेंगे. चीन के लिए रवाना होने से पहले राष्ट्रपति ने कहा कि उनकी प्राथमिकता आर्थिक सहयोग बढ़ाना है. चीन श्रीलंका को सबसे ज्यादा आर्थिक मदद देने वाले देशों में शामिल है. युद्ध के बाद 6 अरब डॉलर की पुनर्निर्माण परियोजना के लिए उसने 1.5 अरब डॉलर देने का वचन दिया है.
आर्थिक एजेंडा
अमेरिकी कर्ज संकट के बाद श्रीलंका में भी असुरक्षा की भावना है. 2008 में पिछले वित्तीय संकट के समय चीन ने घरेलू खर्च बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इस बार भी चीन से वही अपेक्षा की जा रही है. इसकी वजह से श्रीलंका में संदेह है कि चीन अपने आश्वासन को पूरा करेगा या नहीं. कोलम्बो स्थित एक राजनयिक ने राष्ट्रपति राजपक्षे के चीन दौरे के लक्ष्यों पर कहा है, "वे इस बात को सुनिश्चित करना चाहते हैं कि असुरक्षा के दिनों में भी धन उसी मात्रा में आए." चीन ने इसके पहले श्रीलंका में एक बिजलीघर और राजपक्षे के हम्बांटोटा चुनाव क्षेत्र में बंदरगाह बनाने में मदद दी है.
लेकिन एजेंडे पर आर्थिक मदद से ज्यादा राजनयिक समर्थन को प्राथमिकता रहेगी. तमिल विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई के अंतिम दिनों में युद्ध अपराधों को लेकर राष्ट्रपति राजपक्षे पर पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ गया है. चीन, रूस और भारत ने राजपक्षे को पूरा समर्थन दिया था. सेंटर फॉर सोशल डेमोक्रैसी के राजनीतिक विश्लेषक कुशल परेरा कहते हैं, "सच्चाई यह है कि वे युद्ध अपराध के मुद्दों पर पश्चिमी दुनिया से आ रहे दबाव पर बहुत परेशान हैं." 30 देशों में आतंकवादी घोषित तमिल टाइगर्स विद्रोहियों को नेस्तनाबूद करने के बाद पिछले तीन सालों से श्रीलंका में शांति है.
सहमेल अधूरा
लेकिन तमिलों के साथ जातीय सहमेल अभी भी पूरा नहीं हुआ है. अलगाववादी तमिल टाइगर्स के खिलाफ जीत से राजपक्षे को देश में काफी लोकप्रियता मिली थी. लेकिन पश्चिमी देशों के अलावा मानवाधिकार संस्था और टाइगर्स का समर्थन करने वाली धनी संस्थाएं मिलजुलकर युद्ध अपराधों की जांच की मांग कर रही हैं. वाशिंगटन ने श्रीलंका की सरकार से कहा है कि वह घरेलू जांच की 15 नवम्बर को सरकार को सौंपी जाने वाली रिपोर्ट और उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को दे.
लेकिन श्रीलंका को डर है कि इन रिपोर्टों से युद्ध में श्रीलंका के रवैये से संबंधित मामले सामने आएंगे जिसके बाद बाहरी जांच की मांग और जोर पकड़ लेगी. श्रीलंका की सरकार अब तक बाहरी जांच को अस्वीकार करती रही है. संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से तैयार एक रिपोर्ट में इस बात के ठोस सबूत पाए गए थे कि श्रीलंकाई सेना और टाइगर्स ने हजारों नागरिकों को मारने सहित दूसरे युद्ध अपराध किए. तमिल टाइगर्स लिट्टे के समाप्त हो जाने के बाद अब सिर्फ श्रीलंका की सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. श्रीलंका की सरकार ने पिछले दिनों नागरिक मौतों की बात स्वीकार की है लेकिन उसका कहना है कि संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में लगाए गए आरोप तमिल टाइगर्स के प्रचार से आए हैं और उनका कोई सबूत नहीं है.
चीनी समर्थन
श्रीलंका को चीन का समर्थन चाहिए. इस दौरे पर राष्ट्रपति राजपक्षे इस बात की टोह लेंगे कि उन्हें चीनी समर्थन मिलेगा या नहीं. आम तौर पर चीन और रूस घरेलू विवादों में विदेशी हस्तक्षेप के विरोधी हैं. दोनों ने लड़ाई के अंतिम दिनों में संघर्ष विराम कराने की अमेरिका और ब्रिटेन की कोशिशों को नाकाम कर दिया था. चीन स्वयं भी पश्चिमी सीमा पर जातीय असंतोष का सामना कर रहा है, जहां उइगुर और तिब्बती चीनी नियंत्रण का विरोध कर रहे हैं. रूस भी अपने यहां चेचन अलगाववादियों से लड़ रहा है. दोनों देशों के संघर्ष श्रीलंका के तमिल विद्रोह से मिलते जुलते हैं.
श्रीलंका में काम कर चुके एक पश्चिमी राजनयिक का कहना है, "चीन के लिए यह एक पंथ दो काज है. वह भारत को परेशान करना चाहता है और अलगाववाद उनके लिए मुख्य मुद्दा है." भारत श्रीलंका को अपना प्रभावक्षेत्र मानता है और वह वहां चीन के बढ़ते प्रभाव से खुश नहीं हो सकता. उसकी चिंता है कि चीन द्वारा निर्मित हम्बानटोटा बंदरगाह उसे घेरने की बीजिंग की रणनीति का हिस्सा है.
दूसरे भारत को तमिल प्रांत तमिलनाडु की सरकार की भी चिंता करनी होगी जो श्रीलंका के तमिलों के साथ सहानुभूति रखते हैं. तमिल संवेदनाओं की वजह से भारत ने श्रीलंका को हमेशा तमिलों के साथ राजनीतिक मेल करने का संदेश दिया है. अच्छे संबंधों के बावजूद नई दिल्ली की झिड़कियां कोलम्बो को अक्सर असहज करती रही हैं. कुशल परेरा कहते हैं, "चीन अकेला देश है जो इन चीजों के बारे में कोई बात नहीं करता. चीन इस सरकार के लिए अकेला सुरक्षित स्थान है. फिलहाल भारत उनके लिए उतना सुरक्षित नहीं है."
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: आभा एम