छोटी सी उम्र, बड़ी लड़ाई
६ अप्रैल २०१०पुरुलिया यानी झारखंड से लगा पश्चिम बंगाल का एक जिला. बंगाल की राजधानी कोलकाता से लगभग तीन सौ किलोमीटर दूर बसा बाऊल संगीत का घर. देश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार पुरुलिया में साक्षरता की दर भी बेहद कम है. गरीबी और अशिक्षा की वजह से जिले में बाल विवाह आम हैं. लेकिन अफसाना खातून नाम की 12 साल की एक बच्ची ने इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ आवाज उठा कर जो चिंगारी जलाई थी वह अब शोला बनती जा रही है.
बांकुड़ा से पुरुलिया के सफर में सड़क के दोनों ओर नजरें जहां तक देख सकती हैं, सूखी- बंजर धरती और एकाध सूखे पेड़ ही नजर आते हैं. मार्च के महीने में ही पारा 40 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास पहुंच गया है. सूरज अभी सिर पर चढ़ा भी नहीं है, लेकिन हवा गरम होकर लू के थपेड़ों में बदल गई है. दूर-दूर तक कहीं पानी नजर नहीं आता. पूरे जिले में पीने के पानी की भारी किल्लत है. बांकुड़ा और पुरुलिया को जोड़ने वाली 90 किमी लंबी सड़क कहने को तो हाइवे है, लेकिन दिन के समय भी इस पर पूरी तरह सन्नाटा पसरा है. कभी-कभार गुजरने वाले वाहनों की आवाज से ही यह सन्नाटा टूटता है. यह बात अलग है कि इस पर सफर के दौरान कार के ड्राइवर को लगातार हॉर्न बजाना पड़ता है. इसकी वजह यह है कि इस हाइवे पर वाहनों की तादाद भले कम हो, मुर्गी, बकरी, गाय और ऐसे दूसरे जानवरों की कोई कमी नहीं है.
पुरुलिया शहर में बाल विवाह की प्रचलित परंपरा को चुनौती देकर सुर्खियों में आई अफसाना खातून अब जिले में एक रोल मॉडल बन चुकी है. रेलवे की पटरियों के किनारे बसी बस्ती में एक कमरे के अपने झोपड़ीनुमा मकान में रहने वाली अफसाना का दुबला-पतला शरीर देख कर पहली नजर में इस बात का एहसास तक नहीं होता कि इसके भीतर नैतिक साहस कूट-कूट कर भरा है. फिलहाल पांचवीं कक्षा में पढ़ रही अफसाना के पिता फेरी लगा कर सामान बेचते हैं. अफसाना कहती है, "मेरे घरवालों ने बीते साल ही मेरी शादी तय कर दी थी. लेकिन मैंने मना कर दिया. विरोध के बाद घरवाले मान गए."
अफसाना ने बाल विवाह के विरोध की पहल की, तो रेखा कालिंदी और सुनीता महतो जैसे नाम भी उसके साथ जुड़ गए. यह तीनों पहले बाल मजदूर थी. रेखा और सुनीता बीड़ी बांधती थी तो अफसाना सोनपापड़ी (मिठाई) बनाती थी. अब तीनों को केंद्र सरकार की राष्ट्रीय बाल मजदूर परियोजना के तहत दोबारा स्कूलों में दाखिल कराया गया है.
पुरुलिया के झालदा-2 ब्लाक में रहने वाली रेखा कालिंदी बताती है, "मां-पिताजी मेरी शादी करना चाहते थे. लेकिन मैं पढ़ना चाहती थी. इसलिए मैंने मना कर दिया. मां की दलील थी कि तुम पढ़ोगी तो बीड़ी कौन बांधेगा. लेकिन मेरी जिद और स्कूल की दूसरी छात्राओं और शिक्षकों के समझना पर वे मान गए."
रेखा बताती है कि उसकी बड़ी बहन की शादी 12 साल की उम्र में ही हो गई थी. अब वह 15 साल की है. उसे चार बच्चे हुए, लेकिन सब मरे हुए. उसके पहले पति ने उसे छोड़ दिया है. वह अपने दूसरे पति के साथ रहती है. रेखा कहती है कि बड़ी बहन के साथ ऐसा होने के बावजूद मेरे माता-पिता मेरी शादी 12 साल की उम्र में करना चाहते थे. लेकिन मैंने मना कर दिया. मैं आगे पढ़ना चाहती हूं.
इससे नाराज पिता ने रेखा का खाना-पीना रोक दिया. लेकिन बेटी की ज़िद के आगे बाद में उन्हें मानना ही पड़ा.
गरीबी के चलते पुरुलिया के ज्यादातर गांवों में लोग अपने छोटे बच्चों को बीड़ी बनाने के काम में लगा देते हैं. नतीजतन वे ज्यादा पढ़-लिख नहीं पाते. इन तीनों लड़कियों ने सरकारी अधिकारियों की सहायता से अब तक जिले में 35 लड़कियों का कच्ची उम्र में विवाह रोक दिया है. मजदूरी और बाल विवाह से छुटकारा मिलने के बाद अब इन युवतियों की आंखों में सुनहरे सपने उभरने लगे हैं. अफसाना बताती है कि वह पढ़-लिख कर डॉक्टर बनना चाहती है. पुरुलिया की एक स्कूल छात्रा रजिया कहती है कि यह लोग बढ़िया काम कर रही हैं. पहले पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना जरूरी है. शादी तो बाद में होगी ही.
पड़ोसी बांकुड़ा जिले के एक स्कूल शिक्षक बापी मंडल कहते हैं कि पुरुलिया और बांकुड़ा जैसे पिछड़े जिलों को बाल विवाह के अभिशाप से मुक्ति दिलाने का यह प्रयास सराहनीय है. शुरू से ही इस मामले में सरकारी स्तर पर इन युवतियों को हर तरह की सहायता देने वाले पुरुलिया के सहायक श्रम आयुक्त प्रसेनजीत कुंडू कहते हैं कि इन बच्चियों की पहल से होने वाला बदलाव नजर आने लगा है. कल तक जो लोग बाल विवाह के पक्षधर थे, अब वही ऐसी शादियां रोकने की पहल कर रहे हैं. वे कहते हैं कि जिले में यह अभियान अब एक आंदोलन में बदल चुका है.
अफसाना, रेखा और सुनीता के साहसिक फैसलों के बारे में सुन कर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने बीते साल इन तीनों को दिल्ली बुला कर इनसे मुलाकात की थी. इन तीनों को इस साल 26 जनवरी को राष्ट्रीय बहादुरी पुरुस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
इन तीनों युवतियों के हौसले की वजह से इन पिछड़े इलाके में उम्मीद की एक नई सुबह अंगड़ाई लेने लगी है.
रिपोर्टः प्रभाकर, पुरुलिया
संपादनः ए कुमार