जज्बा नहीं, सिर्फ पैर लंगड़ाता है
२८ अगस्त २०१२33 साल के मुदस्सर बेग विकलांग हैं. बचपन में उन्हें पोलियो हुआ और उसके बाद से कभी वह ठीक से चल नहीं सके. लंगड़ाते हुए ही सही लेकिन बेग ने स्कूल जाना नहीं छोड़ा. पढ़ाई की लेकिन मन ही मन मलाल रहता कि आखिर वे बाकी बच्चों की तरह तेज क्यों नहीं दौड़ पाते हैं. यह कसक ही बेग को तेज भागने के लिए प्रेरित करती रही.
फैसलाबाद में पैदा हुए बेग कहते हैं, "जब मैं अपनी उम्र के लड़कों को खेलते हुए देखता था तो मैं अपमानित महसूस करता था. वे दौड़ना और अन्य काम सामान्य ढंग से करते थे, बिना किसी परेशानी के."
स्कूल और यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के बाद बेग को पोस्ट ऑफिस में क्लर्क की नौकरी मिली. इस दौरान उन्होंने दौड़ने का अभ्यास जारी रखा. उन्हें पहला बड़ा मौका 2006 में मिला. दोहा में हुए एशियाई खेलों में उन्होंने 400 मीटर की दौड़ में रजत पदक जीता. बेग कहते हैं, "मैं हमेशा दूसरे लड़कों की तरह दौड़ना चाहता था, लेकिन बाध्यता ने मेरी राह रोकी. मैंने खुद से वादा किया कि मैं एक दिन जरूर दौड़ने लगूंगा. लंदन पैरालंपिक्स के जरिए वह दिन आ गया है."
अब वह लंदन में पहली बार विकलांग खिलाड़ियों के ओलंपिक में हिस्सा लेने पहुंचे हैं. पाकिस्तान की तरफ से चार खिलाड़ी पैरालंपिक्स में पहुंचे हैं. बेग 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में हिस्सा लेंगे. बेग में यह उत्साह भरने का काम पाकिस्तान के लॉन्ग जंपर हैदर अली ने किया. हैदर पाकिस्तान के लिए मेडल जीतने वाले पहले विकलांग खिलाड़ी हैं. 2008 में हैदर ने बीजिंग पैरालंपिक्स में रजत पदक जीता.
बेग को लगता है कि जैसे वह हैदर से प्रभावित हुए वैसे ही बाकी लोग उनसे प्रेरित हो सकते हैं. ऐसी ही उम्मीदों के साथ लंदन पहुंचे बेग कहते हैं, "मेरे लिए यह एक सपने के सच होने जैसा है, मैं आदर्श बनना चाहता हूं. न सिर्फ विकलांगों के लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं लेकिन हौसला खो चुके हैं."
पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर इलाकों में पोलियो अभियान रोकने से खुद पोलियो के शिकार बेग खासे नाराज हैं. बीते साल एबटाबाद में अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद से तालिबान ने पोलियो अभियान बंद करा दिया है. इसकी मार 2,40,000 बच्चों के भविष्य पर पड़ सकती है.
ओएसजे/एमजे (एएफपी)