जर्मन अखबारों में अन्ना का सैलाब
२७ अगस्त २०११74 साल के अन्ना हजारे इस तरह डटे हैं कि सरकार और शायद पूरे राजनैतिक ढांचे को अपच हो रही है. वर्षों से नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले हजारे ने इसी वजह से जनांदोलन शुरू किए. यह मानना है सबसे प्रसिद्ध समाचार पत्रों में से एक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने साइटुंग का.
इस बीच 'टीम अन्ना' न्यू मीडिया के साथ भी खेल रही है. अन्ना हजारे की गिरफ्तारी के बाद ही फेसबुक पर 18,000 लोगों ने उनकी रिहाई की मांग की थी. साथ ही मंगलवार तक 4.5 लाख लोगों ने फेसबुक पर उनके अभियान 'भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत' पर लाइक बटन दबाया था. साथ ही आपके आईफोन पर भी ऐप के जरिए अन्ना हजारे के बारे में ताजा जानकारी मिल सकती है. यूट्यूब पर एक लाख से भी ज्यादा लोगों ने दिल्ली की तिहाड़ जेल में फिल्माया गया वीडियो देखा.
भ्रष्ट राजनीतिज्ञ भारत में सभी पार्टियों के अंदर मिल सकते हैं. यह कहना है नॉय ज्यूरिषर साइटुंग का. लेकिन सत्तारूढ कांग्रेस पार्टी का अपनी कम होती जा रही विश्वासनीयता में बड़ा हाथ है. और इसलिए जनता का गुस्सा जायज है.
अब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से ऐसी बातों की मांग की जा रही हैं जो बिलकुल अजीब हैं और राजनीतिक ढांचे को देखते हुए कभी अमल में नहीं लाए जा सकती हैं. इसकी वजह यह है कि भारत में किसी कानून को पारित करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करना होता है. संविधान के मुताबिक कोई भी सरकार संसद में लंबे समय के लिए चलने वाले संवाद के बिना कोई कानून को ऐसे वैसे पास नहीं करा सकती है. लेकिन शायद यह अन्ना हजारे भूल चुके हैं. क्योंकि उन्होंने पिछले रविवार (21.8.2011 ) को कहा कि जनता यानी उनके सभी समर्थक चुनावों में चुने गए प्रतिनिधियों से उपर है.
यदि हजारे की बात मानी गईं तो मंत्री, सांसद और अधिकारी एक स्वतंत्र संस्था द्वारा कड़ी सजा पा सकते हैं, यदि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप साबित होते हैं. जनलोकपाल बिल की वजह से देश के शक्तिशाली लोगों को अपनी गलतियों पर जवाब देना होगा, यह बातें जनता को उत्साहित कर रही हैं, म्यूनिख से प्रकाशित दैनिक स्यूड डॉयचे साइटुंग लिखता है.
सिर्फ व्यवहार और कपड़ों को देखते हुए ही नहीं, बल्कि अन्ना हजारे को देखते हुए महात्मा गांधी की याद आती है. हजारे खुद यह एहसास दिलाने की कोशिश करते हैं कि वह गांधीजी के नैतिक वारिस हैं. गांधीजी ने किसी जमाने में अपने अनशनों के जरिए ब्रिटिशों को देश से निकाला था. लेकिन गांधीजी के समय में उपनिवेशवाद ही सबसे बडी समस्या थी, अब हजारे के मुताबिक देश में भ्रष्ट एलीट (उच्च वर्ग) की समस्या आ गई है. यह जनता को गांधीजी और हजारे के बीच समानताओं को नहीं समझा पाता है, उसे सिर्फ जिस मंच पर अन्ना हजारे अपना अनशन कर रहे हैं उसके पीछे लगाए हुए फोटो को देखना है, जिसपर ब्लैक एंड व्हाईट में विशाल गांधीजी दिख रहे हैं.
भारत के राज्य जम्मू कश्मीर में 38 ऐसी समूहिक कब्रों में जिनके बारे में पता नहीं था, 2730 शव मिलें हैं. औपचारिक तौर पर राज्य के मानवाधिकार आयोग ने इसकी पुष्टि की है. जांच की रिपोर्ट फिलहाल कश्मीर वादी के उन चार इलाकों पर सीमित हैं जहां 1989 में शुरू हुए उग्रवाद की जड़ें हैं. उग्रवाद में अलगाववादी पाकिस्तानी समर्थकों भारतीय सुरक्षाकर्मियों के खिलाफ लड़ रहे हैं, जैसा कि बर्लिन के दैनिक टागेस साईटुंग का कहना है.
पाकिस्तान की सरकार के मुताबिक कश्मीर में चल रही लड़ाई वहां के स्थानीय नागरिकों की लड़ाई है. लेकिन यह बात स्पष्ट है कि पाकिस्तान वहां के अलगाववादियों की खूब मदद कर रहा है. लेकिन यह भी सच है कि भारत की सरकार वहां कुछ अंदरुनी बातों की अनदेखी कर रही है जो इस पूरे विवाद को इतना जटिल बना रही हैं. इसके अलावा कुछ विशेष कानून भारतीय सैनिकों और पुलिसकर्मियों को जो वहां तैनात हैं, सजा से बचाते हैं. ताजा रिपोर्ट की मांग है कि डीएनए टेस्ट के जरिए शवों की शिनाख्त की जाए. लेकिन इसके विपरीत जम्मू कश्मीर के मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्लाह का कहना है कि एक नए आयोग के जरिए पूरे विवाद में सभी पक्षों के मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच होनी चाहिए.
अंत में एक नजर पाकिस्तान पर. लीबिया के शासक गद्दाफी ने कई सालों तक जनसंहार के हथियारों को पाने का सपना देखा था ताकि वह और शक्तिशाली बन पाएं. लेकिन हथियार को पाने के उनके सभी प्रयास आखिरकार असफल रहे हैं, जैसा की स्यूड डॉयचे साइटुंग अखबार का कहना है.
जब क्रांति के नेता गद्दाफी जवान था, तब से ही वह एटम बम का सपना देख रहे थें. 1974 और 1974 के बीच उन्होंने इस मकसद से अपने लोगों को त्रिपोली से कराची भेजा था, ताकि वह गुप्त तरीके से सैंकड़ों करोड़ों डॉलर पाकिस्तान में जमा करें. यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान ने लीबीया की मदद से ही अपना पहला एटम बम तैयार किया, जिसे बहुत उत्साह के साथ पहला इस्लामी बम कहा जाता रहा है. अपनी मदद के बदले में गद्दाफी की मांग यह थी कि पाकिस्तान को अब उनके लिए एक एटम बम तैयार करना है. लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हुआ. पाकिस्तान की सरकार ने सिर्फ एक स्पोर्ट स्टेडियम को गद्दाफी का नाम दिया.
संकलन: प्रिया एसेलबॉर्न
संपादन: ओ सिंह