जर्मनी के सबसे प्रिय रूसी नेता नहीं रहे
३१ अगस्त २०२२मिखाइल गोर्बाचोव ने 20वीं सदी की रूपरेखा तय की है और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में उन्होंने एक तरह से इतिहास लिखा है. उनकी भूमिका अविवादित रूप से महत्वपूर्ण है और जर्मनी के लिए तो खासतौर से. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता गोर्बाचोव को जर्मनी के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से को मिलाने में मदद करने के लिए बड़ी तारीफें मिलीं.
रूस के बाहर गोर्बाचोव को जो सम्मान मिला वह उन्हें अपने देश में कभी नसीब नहीं हुआ. नॉर्थ काकेशस में 1931 में जन्मे गोर्बाचोव मार्च 1985 में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख बन गए.
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ग्लास्नोस्त और पेरेस्ट्रोइका
उस समय 54 साल के रहे गोर्बाचोव ने सोवियत ठहराव को खत्म करने की कोशिश की और इसका संबंध खासतौर से अमेरिका के संदर्भ में रूस की आर्थिक दिक्कतों से था. भ्रष्ट और लालफीताशाही वाले सोवियत तंत्र में बदलाव के लिए गोर्बाचोव ने सुधारों को लागू किया जिन्हें ग्लास्नोस्त और पेरेस्ट्रोइका के रूप में ख्याति मिली. ग्लास्नोस्त का मतलब है खुलापन और पेरेस्ट्रोइका यानी पुनर्संरचना. इन नीतियों के साथ ही उन्होंने अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ रिश्तों में भी सुधार किया. उनके नरम रुख को "नई सोच" कहा गया और इसका असर दुनिया के इतिहास पर अतुलनीय है.
1990 में जब गोर्बाचोव रूस के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति बने तो सोवियत संघ का प्रभाव पहले ही बहुत नीचे जा चुका था. पूर्वी यूरोप के सुदूर देश जब 1989 में सोवियत संघ से अलग हुए तो वह एक कभी ना भूलने वाली घटना थी. नाटो के सैन्य जवाब के रूप में तैयार हुई सोवियत संघ की वारसा संधि कमजोर पड़ गई थी. उधर दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद सोवियत संघ के हाथ में बफर स्टेट के तौर पर इस्तेमाल हो रहे पूर्वी जर्मनी के नागरिक आजादी और लोकतंत्र के अलावा पश्चिमी जर्मनी के साथ एकीकरण के लिए आवाज बुलंद कर रहे थे.
जर्मनी के एकीकरण को मंजूरी
बहुत से सोवियत रुढ़िवादियों की अनिच्छा के बावजूद गोर्बाचोव ने इसे शांतिपूर्ण तरीके से होने दिया. वह अपनी ही पार्टी की राजनीति और सहयोगियों के विरोध से अलग हो गए. गोर्बाचोव के प्रमुख समर्थक और तब जर्मनी के चांसलर रहे हेल्मुट कोल ने कहा था, "कठिन ऐतिहासिक घड़ी में मिखाइल गोर्बाचोव के निजी फैसले को कम करके नहीं देखा जाना चाहिए. बर्लिन की दीवार गिरने के 24 घंटे के भीतर स्टासी और केजीबी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे कि सोवियत सैनिक खतरे में हैं और सोवियत सेना को दखल देना चाहिए लेकिन गोर्बाचोव ने इनकार कर दिया."
गोर्बाचोव और कोल की दोस्ती जर्मनी के एकीकरण के लिए सोवियत सहयोग की एक प्रमुख वजह थी. बाद में इसे टू प्लस फोर एग्रीमेंट के जरिए संभव किया गया जिसमें पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के साथ ही फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ साथ आए.
सोवियत संघ का विघटन
अंतरराष्ट्रीय मंच पर गोर्बाचोव का उभार घरेलू मोर्चे पर उनकी ताकत घटने के साथ शुरू हुआ. उनके सुधारों ने सोवियत संघ के टूटने का रास्ता तैयार किया और जिस वक्त यह टूट रहा था उस समय यूरोपीय और उसमें भी सबसे ज्यादा जर्मन उन्हें शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक क्रांति के लिए नायक के तौर पर देख रहे थे.
गैररूसी सोवियत गणराज्यों में बाल्टिक देशों ने अलग होने की पहल की लेकिन रूसी हार्टलैंड में भी दरारें उभर रही थीं. गोर्बाचोव को मुक्त और निष्पक्ष चुनाव में कभी नहीं चुनने वाले नागरिक देश में गरीबी की समस्या बढ़ने के लिए उन्हें जिम्मेदार बता रहे थे. इसी परिदृश्य में बोरिस येल्तसिन ने शासन संभाला. इतिहासकारों में इस पर खूब बहस होती है कि सुपरपावर की दुर्दशा के पीछे गोर्बोचोव की नीतियां जिम्मेदार थी या सोवितय संघ की ऐसी बदहाली जो अब सुधारने लायक नहीं बची थी.
अलग हो रहे गणराज्यों की नकेल कसने से जब गोर्बाचोव ने इनकार कर दिया तो कट्टरपंथियों ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया. गोर्बाचोव को क्रीमिया में नजरबंद किया गया. हालांकि मॉस्को में नव निर्वाचित राष्ट्रपति बोरिस येल्त्सिन के समर्थकों ने विद्रोह नाकाम कर दिया.
एक नई दुनिया
गोर्बाचोव जब मॉस्को लौटे तो दुनिया बदल चुकी थी. उनकी प्रेसिडेंसी समेत सोवियत संस्थायें खत्म हो चुकी थीं. गोर्बाचोव ने 25 दिसंबर 1991 को औपचारिक रूप से इस्तीफा दिया और उसके कुछ ही घंटों बाद सोवियत संघ आधिकारिक रूप से विघटित हो गया.
रूस के राजनीतिक मंच पर उनका आखिरी प्रदर्शन बहुत निराशाजनक था. 1996 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें महज 0.5 फीसदी वोट मिले. पश्चिमी देशों में गोर्बाचोव लोकप्रिय बने रहे. मुमकिन है कि रूस एक दिन गोर्बाचोव को अच्छे रूप में याद करे लेकिन जर्मनी के इतिहास की किताबों में उनकी जगह हमेशा बहुत अहम रहेगी.