जर्मनी में कारों का विशाल मेला
१६ सितम्बर २००९चारों तरफ़ चमचमाती कारें. बड़ी और नामचीन कारें फ्रैंकफ़र्ट मेले में डेरा डाल चुकी हैं. लेकिन चमक पिछली बार से थोड़ी कम. आर्थिक मंदी का जो असर कार बाज़ार पर पड़ा है, वह यहां साफ़ दिखता है. अबकी बार ज़ोर महंगी और लक्ज़री कारों पर नहीं, बल्कि किफ़ायती और इको फ़्रेंडली कारों पर है. जर्मनी में सबसे लोकप्रिय कार वॉक्सवागन पूरी तरह बिजली से चलने वाली कार ई-अप लेकर आई है.
मेले के विशाल हॉल में कहीं इस्पाती कारें तन कर खड़ी हैं तो कहीं नाज़ुक सी इठलाती सी. दुनिया के सबसे बड़े कार बाज़ार जर्मनी में दो साल पर लगने वाला मेला इस बार ज़रा छोटा हो गया है. पिछली बार 2007 में 1046 कंपनियां जुटी थीं, इस बार घट कर 753 रह गई हैं. भारतीय मूल के सुरेंद्र सिंह जर्मनी में लगने वाले हर बड़े मेले में स्टॉल सजाते हैं. इस बार ह्यूंदै का स्टॉल उन्होंने सजाया है. वह भी मान रहे हैं कि बाज़ार थोड़ा फीका है.
कंपनियां आलीशान कारें तो लेकर आई हैं लेकिन कोशिश है कि आम लोगों की कार की भी अच्छी मार्केटिंग हो. मर्सिडीज़ के हॉल में आईए. करोड़ों रुपये की मर्सिडीज़ मायबाख़ एक कोने में शान से टहल रही है लेकिन उससे पहले छोटी कार स्मार्ट ने अच्छी ख़ासी जगह घेर रखी है. लुभावने और किफ़ायती मॉडल के साथ.
दुनिया भर में इस साल पांच करोड़ 90 लाख कारों की बिक्री हो सकती है. जानकार इसे अच्छा ही बताते हैं क्योंकि उन्होंने अनुमान लगाया था कि इस साल सिर्फ़ साढ़े पांच करोड़ कारें बिकेंगी. यूरोप की कारों को अमेरिकी कारों से उनता मुक़ाबला नहीं करना पड़ता, जितना जापान और कोरिया की कारों से. तकनीक में यूरोपीय कारें बेजोड़ होती हैं, तो स्टाइल और क़ीमत में एशिया की कारों का जवाब नहीं.
लंबे चौड़े मेले में घूमते घूमते टांगें जवाब देने लगीं लेकिन भारतीय कार कंपनियों का कोई पता नहीं चला. बड़ी मुश्किल से जगुआर और लैंड रोवर के स्टॉल नज़र आए, जो अब टाटा की मिल्कियत है. लेकिन भारतीय सड़कों पर धूम मचाने वाली टाटा नैनो या महिन्द्रा दो हफ़्तों तक चलने वाले इस मेले में नहीं पहुंच पाई.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ़
संपादनः एस गौड़