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समाज

जर्मनी में भारतीय कैसे कोरोना संकट से निपट रहे हैं?

अशोक कुमार
२५ मार्च २०२०

जर्मनी तीस हजार से ज्यादा मामलों के साथ कोरोना वायरस से पांच सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शामिल है. ऐसे में यहां रहने वाले भारतीय हालात से कैसे निपट रहे हैं, जानिए.

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Nikhilesh Dhure
निखिलेश कई साल से बर्लिन में रहते हैं और अपना यूट्यूब चैनल चलाते हैं.तस्वीर: Privat

जर्मनी में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगभग लॉकडाउन की स्थिति है. आम जनजीवन ठप है और शहरों की सड़कें सूनी पड़ी हैं. ज्यादातर लोग अपने घरों पर ही रहने को मजबूर हैं.

निखिलेश धुरे कई साल से बर्लिन में रहते हैं और अपना खुद का यूट्यूबर चैनल चलाते हैं. जर्मनी और यूरोप में शिक्षा और रोजगार की संभावनाओं के बारे में जानकारी देने वाले उनके चैनल पर 1.3 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. लेकिन कोरोना संकट की वजह से उनके काम की रफ्तार भी धीमी हुई है. वह कहते हैं, "यह ऐसा समय जब सब कुछ रुका हुआ है. बिजनेस थमा हुआ है, जो वीडियो मैं प्रोड्यूस करता हूं, वे भी कम हो गए हैं. लेकिन इस दौरान मेरे पास क्रिएटिव तरीके से सोचने का समय है. इसे आप आइसोलेशन के तौर पर ना देखें. लाइफ में इतना समय इंसान को कब मिलता है."

Coronavirus in München - menschenleerer Platz
म्युनिख में सदा भरा रहने वाला बाजार खाली पड़ा हैतस्वीर: Imago Images/Zuma/S. Babbar

निखिलेश कहते हैं कि इस समय सबसे जरूरी है कि हम मानसिक रूप से मजबूत रहें और इसलिए खुद को ज्यादा से ज्यादा रचनात्मक चीजों में लगाएं.

लॉकडाउन में मन लगाने के और भी रास्ते हैं. जर्मनी के हनोवर शहर में पढ़ रहे अमनदीप गुलाटी तो अब तक दो किताबें और कई रिसर्च पेपर पढ़ चुके हैं. अपने रूममेट्स के साथ मिलकर वह कुकिंग कर रहे हैं और ऐसी नई नई रेसिपीज पर हाथ आजमा रहे हैं जिनके लिए पहले उनके पास समय नहीं था. वह कहते हैं, "हनोवर में सोशल लाइफ तो बहुत सीमित हो गई है. थिएटर, बार और क्लब जैसी सभी चीजें बंद हैं जहां लोग जमा हो सकते हैं. लेकिन किसी सामान की दिक्कत नहीं है. सुपरमार्केट्स में सामान की मारामारी नहीं है. "

 

संकट के इस समय में जर्मनी में रहने वाले ज्यादातर भारतीय भी घर से ही काम कर रहे हैं. जो छात्र हैं, वे कोलोन में पढ़ने वाले सूरज की तरह नियमित रूप से अपनी ऑनलाइन क्लासें अटेंड करते हैं. आंध्र प्रदेश से आए सूरज का कहना है कि वह अपना पूरा ध्यान रख रहे हैं, लेकिन भारत में उनके माता पिता बहुत चिंतित हैं. उनके मुताबिक, "पता नहीं, वहां मीडिया में ऐसा क्या दिखाया जा रहा है. भारत के चैनलों पर पिछले दिनों इटली, जर्मनी और चीन की ही खबरें दिखाई जा रही थी. वे बहुत चिंतित हैं और लगातार मुझे फोन कर रहे हैं. इसलिए मैं अपना बहुत ही ध्यान रख रहा हूं."

Studenten an der Uni Köln Suraj
सूरज इस बात से परेशान हैं कि भारत में उनके माता-पिता उनकी बहुत ज्यादा चिंता कर रहे हैं.तस्वीर: Privat

 

बर्लिन में रहने वाली भारतीय वैज्ञानिक और पीएचडी स्कॉलर जेबा सुल्ताना को भी भारतीय मीडिया में कोरोना वायरस की कवरेज पर शिकायत है. वह कहती हैं, "नेशनल चैनल पर 'कोरोना की मौत मरेगा पाकिस्तान' जैसी हेडलाइन चल रही हैं. मेरे ख्याल से भारतीय मीडिया को इस बारे में भी जर्मनी से सीखना चाहिए जहां कोरोना पर पूरी गंभीरता से कवरेज हो रही है."

Zeba Sultana mit ihrem Mann
जेबा सुल्ताना और उनके पति रिजवान बर्लिन में रहते हैं, लेकिन भारत में कोरोना की स्थिति पर लगातार नजर रखते हैं.तस्वीर: DW

वह कहती हैं कि कोरोना जैसे गंभीर विषय पर भी सनसनी और फेक न्यूज फैलाई जा रही है जिसे रोकना बहुत जरूरी है. जेबा बताती हैं कि वह तीन हफ्तों से घर से ही काम कर रही हैं, लेकिन ग्रोसरी शॉपिंग जाना हो या फिर फार्मेसी, तो उसमें भी कोई दिक्कत नहीं है.

 

वहीं सम्मित वर्तक ने आखेन की आरडब्ल्यूटीएच यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की है और अब वह स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख में एनर्जी सेक्टर की एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप कर रहे हैं. वह हफ्तों से वर्क फ्रॉम होम करके थक गए हैं. वह कहते हैं, "मेरा काम डाटा अनालिसिस से जुड़ा है जो घर से बहुत आराम से हो सकता है. लेकिन अब तीन हफ्तों के बाद ऐसा लग रहा है कि ऑफिस जाकर ज्यादा स्ट्रक्चर्ड तरीके से काम होगा. ऑफिस में आप काम पर ज्यादा फोकस कर सकते हैं जबकि यहां पर ऐसा नहीं है. बहुत सारी चीजें हैं जो आपके मन को भटका सकती हैं." इसीलिए खुद को रचनात्मक चीजों में व्यस्त करना बहुत जरूरी है.

Hardeep Dhinsa
हरदीप का कहना है कि सभी एहतियाती उपायों पर अमल करने के बावजूद कोरोना को लेकर चिंता लगी रहती है. तस्वीर: Privat

वैसे सबके पास घर से काम करने का विकल्प नहीं है. हरदीप ढिंसा बॉन में एक ओल्ड एज होम में काम करती हैं. वह कहती हैं, "जिस तरह अस्पताल बंद नहीं किए जा सकते, उसी तरह ओल्ड एज होम में रहने वालों की देखभाल भी लगातार करनी होती है." उनके घर से ओल्ड एज होम दो मिनट की दूरी पर है. लेकिन वहां पर काम करने वाले दूसरे लोग ट्रेन और बसों में सफर करके आते हैं. ऐसे में हरदीप को वायरस लगने का खतरा सताता रहता है. हालांकि वह कहती हैं कि ओल्ड एज होम में सभी एहतियाती उपायों पर अमल हो रहा है.

उनके काम का मुश्किल हिस्सा है बुजुर्गों को यह समझाना कि अब वो उनके ज्यादा करीब नहीं आ सकती हैं. हरदीप कहती हैं, "कई लोग बहुत बूढ़े हैं. उन्हें नहीं पता कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है. वह कहते हैं कि उन्होंने तो जिंदगी भर ऐसी किसी बीमारी के बारे में नहीं सुना. कई लोग ऐसे हैं कि हम सुबह को उन्हें बताते हैं और शाम तक वे सब भूल जाते हैं."

घर आने पर हरदीप कपड़े बदलने, हाथ धोने और सैनिटाइजर इस्तेमाल करने के बाद ही अपने बच्चों से मिलती हैं. वह कहती हैं कि उनका रूटीन पहले से थोड़ा ज्यादा हेक्टिक हो गया है.

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अशोक कुमार एडिटर, DW-हिन्दी