जर्मनी में शरणार्थियों का भत्ता बढ़ा
१८ जुलाई २०१२संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि शरणार्थियों को ज्यादा भत्ता मिलना चाहिए. जजों ने कहा कि वर्तमान भत्ता मानवीय जीवन के लिए न्यूनतम जरूरत के मौलिक अधिकारों का हनन करता है. उन्होंने एक अंतरिम समाधान सुझाया है जो बेरोजगारों को मिलने वाले सामाजिक कल्याण भत्ता पर आधारित है. इस फैसले का असर 1,30,000 लोगों पर होगा जिन्होंने जर्मनी में शरण पाने के लिए अर्जी दे रखी है.
इस समय शरणार्थियों को हर महीने जीवनयापन के लिए 224 यूरो मिलता है जो सामाजिक भत्ता से 35 फीसदी कम है. संवैधानिक न्यायालय की पहली पीठ के अध्यक्ष फर्डिनांड किर्षहोफ ने इस समय मिलने वाले भत्ते को साफ तौर पर अपर्याप्त बताया. भत्ते की रकम 1993 से बढ़ाई नहीं गई है. सामाजिक भत्ते को जीने की न्यूनतम कीमत मानी जाती है. संवैधानिक न्यायालय के फैसले के बाद शरणार्थियों को हर महीने 336 यूरो मिल सकेगा. 15 से 18 साल के युवाओं को भविष्य में 200 यूरो के बदले 260 यूरो मिल सकेगा.
संवैधानिक न्यायालय के जजों का कहना है कि जर्मनी का संविधान मर्यादापूर्ण जीवन चलाने की गारंटी देता है. न्यूनतम राशि जर्मनों की ही तरह विदेशी नागरिकों पर भी लागू होता है. यह शारीरिक जीवन ही नहीं बल्कि मानवीय रिश्तों और सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन में न्यूनतम भागीदारी को भी सुनिश्चित करता है. अदालत ने कहा कि न्यूनतम जरूरतें तय करने के लिए जर्मनी की स्थिति मानक है न कि शरणार्थियों के अपने देशों की जीवन परिस्थिति.
अदालत ने यह भी कहा कि लोगों के अंतरराष्ट्रीय आप्रवासन की गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए जीवनयापन भत्ते को कम नहीं रखा जा सकता. साथ ही कम अवधि का निवास भी भत्ते को कम रखने को उचित नहीं ठहराता. भत्ते का फैसला एक पारदर्शी प्रक्रिया के तहत असली जरूरतों को ध्यान में रखकर तय किया जाना चाहिए.
पहले शरणार्थी भत्ता जर्मन में शरण पाने की अर्जी देने वाले लोगों को सिर्फ शरण पाने की प्रक्रिया के दौरान दिया जाता था. बाद में इस कानून की परिधि बढ़ाकर उसमें स्थायी रिहायशी परमिट न पाए लोगों को भी शामिल कर लिया गया. सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार 2010 के अंत में जर्मनी में कुल 1,30,300 लोग भत्ता पाने के अधिकारी थे.
इनमें से बहुत से लोग काफी समय से जर्मनी में रह रहे हैं. अदालत के अनुसार ज्यादातर लोग छह साल से ज्यादा से जर्मनी में हैं. उनमें वे दो कुर्द भी शामिल हैं जिन्होंने भत्ते की राशि के खिलाफ अपील की थी. वे 2003 में इराक युद्ध से भागकर जर्मनी आ गए थे और तब से उन्हें जर्मनी में रहने दिया जा रहा है. एक दूसरे मामले की 11 वर्षीया अपीलकर्ता जर्मनी में ही पैदा हुई है. उसकी मां नाइजीरिया से भागकर जर्मनी आई थी.
एमजे/एजेए (डीपीए)