जलवायु परिवर्तन और 'ग्रीन इस्लाम'
२९ जून २०११दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले इंडोनिशिया में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक अहम जंग चल रही है. हर शुक्रवार को जुमे की नमाज के दौरान इमाम ग्रीन इस्लाम का संदेश देते हैं. मदरसों में बच्चों को पर्यावरण के बारे में बताया जाता है. हरियाली बढाने के लिए कहा जाता है. मदरसों में दीनी तालीम के अलावा पेड़ भी लगाए जाते हैं.
क्या है ग्रीन इस्लाम?
आखिर क्या है ग्रीन इस्लाम? ग्रीन इस्लाम मूल रूप से एक विचार है जिसके तहत मस्जिदों और मदरसों के जरिए वहां के लोगों को जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाता है. पिछले कुछ सालों में इंडोनिशिया पर जलवायु परिवर्तन का भारी असर पड़ा है. लगातार समंदर का जलस्तर बढ़ने और मूसलाधार बारिश से राजधानी जकार्ता में सैकड़ों घर बर्बाद हो चुके हैं. अक्सर भूकंप के झटकों की वजह से एकेह द्वीप और जावा द्वीप के तटीय इलाके बर्बाद हो चुके हैं.
इंडोनिशिया के मुसलमान इन बदलाव पर अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं. किसी को लगता है कि यह खुदा का प्रकोप है. उनके मुताबिक कुछ लोगों के गलत कामों से खुदा नाराज हो गया है. तो कुछ लोग इसे कुदरती इम्तिहान के तौर पर देखते हैं. उलेमा कुरान का जिक्र करते हैं पर्यावरण को बचाने के लिए. उदाहरण के तौर पर वह कुरान का हवाला देते हैं और बताते हैं कि "इस धरती को नष्ट मत करो."
हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मोनिका आर्नेज के मुताबिक “ग्रीन इस्लाम के अलग अलग मायने हो सकते हैं. मुझे लगता है कि यह एक रास्ता है पर्यावरण तक पहुंचने का जिसमें इस्लाम जुड़ा हुआ है. इसका मतलब यह है कि मुसलमान पारिस्थितिक रूप से पर्यावरण की तरफ ज्यादा सकारात्मक बर्ताव करता है. और इस काम के लिए कुरान एक औजार के रूप में काम करता है."
कुरान की शिक्षा से धरती बचेगी
इंडोनिशिया में मदरसों को पेसेनतरन कहा जाता है. वहां पर्यावरण के बारे में तब से पढ़ाया जा रहा है जब किसी को पिघलते ग्लेशियर या समंदर के बढ़ते जलस्तर की चिंता नहीं थी. 19वीं सदी से ही मदरसों में पर्यावरण की सुरक्षा के बारे में बच्चों को जागरूक बनाया जा रहा है. बच्चों को पर्यावरण संरक्षण सिखाया जाता है. मदरसों के भीतर पेड़ भी लगाए जाते हैं. यहीं नहीं पर्यावरण को बचाने के लिए फतवे भी जारी किए जाते हैं.
डॉक्टर आर्नेज कहती हैं, " उलेमा अक्सर पर्यावरण को बचाने के लिए फतवे जारी करते हैं. और मुस्लिम समुदाय के लोग इसका पालन भी करते हैं. यह एक जरूरी कदम है. गौर करने वाली बात ये है कि उलेमाओं के पास अधिकार होते हैं इसे लागू करने के लिए, लेकिन बड़ी बात ये है कि समुदाय के लोग उलेमाओं पर भरोसा भी रखते हैं.और इससे उलेमाओं को आदर्श बनने का मौका मिलता है."
जंगल की रक्षा करते भिक्षु
इंडोनिशिया के उलेमा ही नहीं थाईलैंड के बौद्ध भिक्षु भी पर्यावरण को बचाने के लिए डटे हुए हैं. जंगलों की कटाई के खिलाफ बौद्ध भिक्षु अभियान चला रहे हैं. भले ही इनकी संख्या ज्यादा नहीं है लेकिन इनका काम प्रभावशाली होता है. निर्माण और गैरकानूनी जंगल की कटाई से थाईलैंड मुख्य जंगल करीब करीब खत्म हो गए हैं.
जंगल भिक्षु के नाम से भी मशहूर बौद्ध भिक्षु 1980 के दशक आखिर और 1990 के दशक की शुरुआत से काम कर रहे हैं. आम तौर पर भिक्षु जंगल में पेड़ों पर एक लाल पट्टी बांध देते हैं ताकि वह पेड़ पवित्र हो जाए और कोई उसे काटने की हिम्मत न कर सकें. भगवान गौतम बुद्ध को भी पेड़ के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. बौद्ध भिक्षु लोगों से पेड़ न काटने की अपील करते हैं. वह कहते हैं कि जंगलों में पूर्वजों की आत्मा रहती है. अगर वे जंगल काटते हैं तो उनके साथ कुछ बुरा हो सकता है. भिक्षु लोगों को चेताते हैं कि जंगल काटने वाला ही नहीं बल्कि पूरे समाज को बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.
धर्म को आगे आना होगा
लीड्स यूनिवर्सिटी के डॉक्टर मार्टिन सीगर के मुताबिक, " मुझे लगता है कि सरकार और बौद्ध भिक्षु को साथ मिलकर प्रभावशाली ढंग से काम करना चाहिए. इससे यह होगा कि आपके पास सरकारी योजनाओं के अलावा विशाल बौद्धिक संभावनाएं होंगी, जो थाईलैंड में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं. थाईलैंड में बड़ी संख्या में लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं, उस पर विश्वास रखते हैं. पर्यावरण को बचाने के लिए यह एक बड़ी प्रेरणा है." जानकारों का कहना है कि धर्म के जरिए पर्यावरण को बचाने का विचार काफी अच्छा और प्रभावशाली है. उनके मुताबिक धर्म के जरिए वातारण को साफ बनाने का लक्ष्य पाना आसान है.
रिपोर्ट: आमिर अंसारी
संपादन: ए कुमार