जागते रहने से बढ़े वजन
२६ जनवरी २०११पेडियाट्रिक्स नामक पत्रिका में इस परीक्षण के नतीजे प्रकाशित किए गए हैं. इसमें एक हफ्ते तक 4 से 10 साल की उम्र के 300 बच्चों की सोने की आदत की जांच की गई और पाया गया कि मोटे बच्चे दुबले बच्चों की तुलना में कम व अनियमित रूप से सोते हैं.
इस परीक्षण का आयोजन करने वाले संस्थान कॉर्नर बाल अस्पताल व शिकागो विश्वविद्यालय में काम कर रहे डेविड गोजाल ने इसके कारण की व्याख्या करते हुए कहा कि कम सोने वाले बच्चे खाते अधिक हैं, थके होने के कारण कसरत कम करते हैं और इसलिए उनका वजन बढ़ने लगता है. उन्होंने कहा कि पिछले 50 सालों से देखा जा रहा है कि बच्चों के मोटापे की समस्या बढ़ती जा रही है और साथ ही उनकी नींद का समय घटता जा रहा है.
आठ घंटे की नींद
गोजाल व उनकी टीम के अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अन्य आयु वर्ग के लोगों, व साथ ही, जानवरों के बीच किए गए अध्ययनों से भी संकेत मिले हैं कि वजन और नींद के बीच संबंध हैं. अध्ययन में पाया गया कि बच्चे रात को औसतन 8 घंटे सोते हैं, लेकिन मोटे बच्चे छुट्टी के दिनों में लगभग 20 मिनट कम सोते हैं और आम तौर पर उन्हें नियमित रूप से नींद नहीं आती है. अमेरिका के नेशनल हार्ट, लंग ऐंड ब्लड इंस्टीट्यूट के अनुसार आठ घंटे की नींद भी पर्याप्त नहीं है, स्कूल जाने वाले बच्चों और किशोर-किशोरियों को कम से कम 9 घंटे सोने चाहिए.
बच्चों की नींद के बारे में पता लगाने के लिए उनके शरीर में विशेष प्रकार के उपकरण लगाए गए थे, जिससे पता चलता था कि रात को वे कितनी देर तक सो रहे हैं. गोजाल का कहना है कि छुट्टी के दिनों में अधिक सोते हुए अगर नींद की भरपाई की जाए, तो मोटापे का खतरा चार गुने से दो गुना तक घट सकता है.
मोटे होते हैं चूहे भी
न्यूयार्क के रॉकेफेलर विश्वविद्यालय में हॉर्मोन पर अध्ययन करने वाले बायोलॉजिस्ट ब्रूस मैकएवन के एक अध्ययन से पता चला है कि चूहों को अगर कम समय तक अंधेरे में रखा जाए, तो वे भी मोटापे के शिकार हो जाते हैं. उनका संस्थान शिकागो के अध्ययन में शामिल नहीं था, लेकिन उन्होंने इस अध्ययन के नतीजों को दिलचस्प बताया. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि दोनों के बीच एक तार्किक संबंध है.
डेविड गोजाल ने कहा कि उनके अध्ययन से माता-पिताओं और राजनीतिज्ञों को सजग होना चाहिए. उनका कहना है कि समाज में यह सोचा जाने लगा है कि नींद के बिना भी काम चल सकता है. जो कम सोते हैं, उन्हें हीरो समझा जाता है. उनकी राय में अगर टीवी इत्यादि के लिए नींद का समय न गंवाया जाए, तो लोग कहीं अधिक स्वस्थ होंगे.
रिपोर्टःएजेंसियांउ भट्टाचार्य
संपादनःएमजी