जारी है नाजी अपराधियों की खोज
२९ जुलाई २०१३इस्राएली शहर येरूशलेम के सिमोन वीजेनथाल सेंटर के ताजा अभियान का नारा है, "देर लेकिन बहुत देर नहीं." बचे हुए नाजी युद्ध अपराधियों की खोज में वह आम जनता की मदद चाहता है. सेंटर के प्रमुख एफराइम सूरॉफ ऐसे 60 लोगों की बात कर रहे हैं जो लंबे समय तक रोजाना लोगों को मारे जाने में शामिल रहे हैं. अब वे जर्मनी के बर्लिन, हैम्बर्ग और कोलोन शहरों में पोस्टर अभियान चला रहे हैं ताकि जर्मनी में बिना किसी डर के रह रहे नाजी युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाया जा सके. वे कहते हैं, "उन्हें नजरअंदाज करने की कोई वजह नहीं है, सिर्फ इसलिए कि वे 1917, 18, 20, 22 या 24 में पैदा हुए हैं."
यह अभियान मुख्य रूप से पूर्व नाजी यातना शिविरों के गार्डों और कुख्यात नाजी संगठन एसएस के मोबाइल हत्या दस्तों के सदस्यों के खिलाफ केंद्रित है. सूरॉफ का कहना है कि इनमें करीब 6,000 लोग शामिल हैं, जिनमें से 98 प्रतिशत की शायद इस बीच मौत हो चुकी है. अगर बचे हुए लोगों में आधे बूढ़े, बीमार और मुकदमा न सह पाने की हालत में हों, फिर भी करीब 60 बच जाते हैं. सूरॉफ का कहना है कि उससे कहीं ज्यादा लोग नाजी अपराधों के दोषी हैं, जितना समझा जाता है, भले ही इसकी सही संख्या किसी को पता न हो.
पुरस्कार भी
इस अभियान का विचार दो साल पहले म्यूनिख में इवान देम्यान्युक को सजा मिलने के बाद आया. अदालत ने पाया कि सीधे सबूतों के अभाव के बावजूद आपराधिक गतिविधियों में उसकी हिस्सेदारी के लिए यह तथ्य ही काफी था कि वह सोबीबोर के यातना कैंप में गार्ड के रूप में काम कर रहा था. इस फैसले के पहले तक जर्मन अदालतें इस आधार पर मुकदमों को खारिज करती रही थीं कि हत्या या यातना के मामलों में अभियुक्त की हिस्सेदारी साबित नहीं की जा सकी. इस बीच बहुत समय बीत चुका, बहुत सारे सबूत नष्ट हो गए, बहुत सारे गवाहों की मौत हो चुकी.
सूरॉफ का मानना है कि म्यूनिख की अदालत के फैसले ने कुछ और नाजी गुंडों को अदालत के सामने लाने की संभावना दी है, भले ही सबूत देना मुश्किल होता जा रहा है. पोस्टर अभियान का उद्देश्य लोगों की मदद लेना है. "हम कह रहे हैं कि लाखों निर्दोष लोग नाजी युद्ध अपराधियों के हाथों मारे गए, उनमें से कुछ अपराधियों पर कभी मुकदमा नहीं चला और वे अभी भी जिंदा हैं, उन्हें कानून के सामने लाने में हमारी मदद कीजिए." वे कहते हैं कि अहम सूचनाओं के लिए 25,000 यूरो का इनाम दिया जाएगा.
नाजी अपराधियों के पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की आलोचना हो रही है. जर्मन-इस्राएली इतिहासकार मिषाएल वोल्फसोन इसे अशिष्ट और नुकसानदेह बताते हैं और कहते हैं कि इससे उम्रदराज युद्ध अपराधियों के लिए सहानुभूति पैदा हो सकती है. रिटायर्ड राजनीतिशास्त्री योआखिम पेरेल्स के पिता की नाजियों ने हत्या कर दी थी. उनका कहना है कि सीमोन वीजेनथाल सेंटर ने युद्ध अपराधियों का पता लगाने और अधिकारियों की मदद करने में बड़ी भूमिका निभाई है, लेकिन अब इस तरह के मामलों के जांच करने के लिए लुडविषबुर्ग में अच्छा अभियोक्ता कार्यालय है, जिसके अधिकारी फिलहाल पूर्व यातना शिविरों के 50 गार्डों के खिलाफ जांच कर रहे हैं.
ज्यादा वक्त नहीं
पेरेल्स सिमोन वीजेनथाल सेंटर के इस विचार से सहमत हैं कि जर्मन कानून व्यवस्था ने सालों तक नाजी अपराधों में दिलचस्पी नहीं ली. वे कहते हैं, "जर्मनी में 160 लोगों को सजा दी गई है, यहूदियों, सिंथी और रोमा की हत्याओं या यूथेनेसिया के शिकारों के आयाम को देखते हुए ज्यादा नहीं है." इसकी वजह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी की पुरानी कानूनी व्यवस्था का जारी रहना था. पेरेल्स बताते हैं, "50 और 60 के दशक में काम करने वाले तीन चौथाई जज और सरकारी वकील हिटलर के शासन के दौरान कथित जन अदालतों, विशेष अदालतों या सामान्य अदालतों में सक्रिय थे." इसकी वजह से गलत फैसले दिए जाते रहे.
1960 के दशक में म्यूनिख की एक अदालत ने एक अभियुक्त को इस आधार पर सहायक मात्र बताया कि उसे यहूदियों से कोई शिकायत नहीं थी. जबकि वह आदमी कुख्यात नाजी संगठन एसएस के हत्यारे दस्ते का नेता था और उसने 15,000 यहूदियों को मारने के आदेश दिए थे, जिनमें से कुछ को उसने खुद मारा था. उसी म्यूनिख अदालत ने सालों बाद देम्यान्युक को सिर्फ इस आधार पर अपराधी माना कि वह यातना शिविर में काम करता था. पेरेल्स इसे कानून व्यवस्था में आए बदलाव का सबूत मानते हैं. "यह पीढ़ियों के बदलने और नाजी शासन पर विचार बदलने का नतीजा है." सिर्फ युवा वकील ही नहीं समाज भी बदला है.
पेरेल्स और सूरॉफ दोनों मानते हैं कि अतीत में कानून व्यवस्था की गलतियों की वजह से बहुत ज्यादा वक्त नहीं बचा है. यह पीड़ितों के लिए सम्मान का तकाजा है कि और देर होने से पहले जीवित बचे युद्ध अपराधियों को खोज निकाला जाए. सूरॉफ पोस्टर अभियान को इसका सबसे अच्छा तरीका मानते हैं. लेकिन उत्साह बहुत ज्यादा नहीं है. सूरॉफ बताते हैं, "हम पिछले आधे साल से अभियान के लिए जर्मन कंपनियों से धन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. हमने 86 फाउंडेशनों और कंपनियों से संपर्क किया है, उनमें से सिर्फ तीन हमारी मदद को तैयार हुए हैं."
रिपोर्ट: अलोइस बैर्गर/एमजे
संपादन: आभा मोंढे