जिहादियों के जद में पाकिस्तान
२७ जनवरी २०१३शुरुआत 80 के दशक में हुई, जब अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं को हटाने के लिए जिहाद का झंडा उठाया गया. तब से पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर तालिबान का गढ़ बना हुआ है. इस बीच यह दुनिया के कई कोनों में फैल चुका है. अफ्रीका और मध्य पूर्व तक जिहाद की गूंज सुनाई देती है. लेकिन माना जाता है कि प्रशिक्षण के लिए इन सब को पाकिस्तान ही भेजा जाता है.
2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ अल कायदा का साथ देने की वजह से कार्रवाई शुरू की तो तालिबानी लड़ाके सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गए. 2014 में अमेरिका नाटो सेनाओं को अफगानिस्तान से वापस बुला लेगा. देश में इस बात की चिंता सता रही है कि नाटो के जाने के बाद तालिबान एक बार फिर सक्रिय हो जाएगा. समाचार एजेंसी एएफपी ने अफगानिस्तान में अल कायदा के एक लड़ाके से बात की तो उसने कहा, "अल कायदा अब अपना ध्यान सीरिया, लीबिया, इराक और माली की तरफ केंद्रित कर रहा है."
स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि पिछले दस साल में अफगानिस्तान में तालिबानियों की संख्या गिर कर 1,000 रह गयी है, जो कि पहले की तुलना में एक तिहाई से भी कम है. अल कायदा के कई अरब सदस्य अफगानिस्तान में अपना डेरा बनाए हुए थे. जानकारों का मानना है कि पिछले दो साल में अल कायदा के कई सदस्य सीरिया में चल रहे गृह युद्ध और लीबिया में छिड़ी क्रांति के कारण वहां चले गए. उस से पहले 2003 में कई इराक, सोमालिया और यमन चले गए थे.
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर स्थित कबायली इलाके पर नजर रखने वाले थिंक टैंक फाटा रिसर्च सेंटर का कुछ और ही मानना है. फाटा के अध्यक्ष सैफुल्ला खान महसूद का कहना है कि मध्य पूर्व में हुई क्रांति का पाकिस्तान में बसे अरब लोगों पर कोई खास असर नहीं पड़ा है. समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "अरब लड़ाके बड़ी संख्या में यह देश छोड़ कर नहीं जा रहे हैं. वे 30 साल से यहां हैं और अब भी यहीं बने हुए हैं."
कुछ जानकार ऐसा भी मानते हैं कि पाकिस्तान के कबायली इलाके उत्तर वजीरिस्तान में दूसरे देशों के लड़ाकों की संख्या पिछले कुछ समय में बढ़ी हैं. एक निवासी ने बताया, "पिछले दो साल में विदेशी जिहादियों की कुल संख्या में बढ़ोतरी आई है. हम यहां हर हफ्ते नए चेहरे देखते हैं." माना जा रहा है कि अफगानिस्तान की सीमा से लगे इस इलाके में 30 अलग अलग देशों से 2,000 से 3,500 लड़ाके मौजूद हैं. इनमें से अधिकतर तुर्कमेनी और उजबेक हैं.
अमेरिका का दावा है कि ड्रोन हमलों में इस इलाके में बहुत से इस्लामी कट्टरपंथियों को मार गिराया गया है. लंदन स्थित ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म के आकड़ों के अनुसार 2004 से पाकिस्तान में 362 ड्रोन हमले हो चुके हैं. इनमें से 310 ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद हुए हैं.
एएफपी ने जिस तालिबानी से बात की वह पेशे से मेकेनिकल इंजीनियर है. उसने कहा, "पहले मुझे यहां ब्रिटिश, स्पेनिश, इतालवी और जर्मन भी मिल जाया करते थे, लेकिन अब ड्रोन हमलों के कारण हमारा आंदोलन सीमित हो गया है." पाकिस्तान में कुल कितने तालिबान हैं और कितने मारे जा चुके हैं, इसे ले कर केवल अटकलें हैं, लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि 80 के दशक में जितनी संख्या आंकी गयी थी, आज भी वहां उतने लड़ाके मौजूद हैं.
आईबी/एमजे (एएफपी)