जीतने की कोशिश करते तो हार जातेः धोनी
११ जुलाई २०११धोनी का कहना है कि जीत की कोशिश एक बहुत बड़ा जोखिम साबित हो सकता था और हो सकता था कि टीम हार ही जाती. ऐसे में 1-0 की बढ़त किसी काम की नहीं रहती. डोमनिका में वेस्ट इंडीज के खिलाफ खेले गए तीसरे और आखिरी टेस्ट मैच में धोनी ने ऐसे वक्त में टेस्ट ड्रॉ करने का फैसला किया, जब भारतीय टीम तीन विकेट खोकर 94 रन बना चुकी थी. मैच जीतने के लिए उसे 180 रन की दरकार थी और 15 अनिवार्य ओवर बाकी थे.
विंडसर पार्क में खेले गए मैच के बाद धोनी ने कहा, "मैं अपनी टीम को रोकने के बारे में निराश नहीं हूं. अगर हम लक्ष्य का पीछा करते तो सीरीज जीतने का मौका गंवा सकते थे. हमने सोचा कि यह सही फैसला नहीं होगा क्योंकि हमारे विकेट गिर रहे थे. हम सीरीज जीत कर खुश हैं." भारतीय कप्तान का कहना है, "हमने इस मैच में अच्छा खेला. असल में वेस्ट इंडीज ने अच्छी बल्लेबाजी की. हम किसी भी लिहाज से निराश नहीं हैं."
चकित वेस्ट इंडीज
उधर, वेस्ट इंडीज के कप्तान डैरेन सामी भारतीय फैसले से चकित दिखे. उन्होंने कहा, "मैं हैरान था कि भारत ने रनों का पीछा नहीं करने का फैसला किया. लेकिन हमारे लिए यह अच्छा रहा. हम मैच ड्रॉ करके खुश हैं."
विकेट और भारतीय टीम के बारे में धोनी का कहना है, "हम विकेट को लेकर आश्वस्त नहीं थे. अगर हम दो स्पिनर और दो तेज गेंदबाज को लेकर जाते और विकेट सपाट मिलती, तो मुश्किल हो सकती थी. हमें पता था कि रैना जैसे खिलाड़ी हैं, जिनकी गेंदें घूमने लगें तो बहुत कुछ हो सकता है. हरभजन को स्पिन और बाउंस मिल रहा था और उन्हें कीमती विकेट मिले. तेज गेंदबाजों को ज्यादा मदद नहीं मिली. हालांकि उन्होंने अच्छा किया."
युवा खिलाड़ी चमके
उनका कहना है कि युवा खिलाड़ियों के लिए सीरीज अच्छी रही और इशांत शर्मा ने भी जिम्मेदारी लेना शुरू कर दिया है. सीरीज में 23 विकेट लेने वाले शर्मा को मैन ऑफ द सीरीज आंका गया.
उधर, शुरू के मैचों में 20-30 रन के बीच आउट हो रहे वेस्ट इंडीज के बल्लेबाज शिवनारायण चंद्रपॉल ने आखिरी मैच में शतक जमाने पर खुशी जताई. चंद्रपॉल के शतक ने मैच ड्रॉ कराने में बड़ी भूमिका निभाई.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः आभा एम