जीपीसीआर को केमिस्ट्री का नोबेल
१० अक्टूबर २०१२उनकी खोज से मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज ढूंढने में मदद मिल सकेगी. जी प्रोटीन के दोहरे रिसेप्टर की अंदरूनी कार्य प्रणाली के बारे में 69 साल के लेफ्कोविट्स और 57 साल के कोबिल्का ने शोध किया है. इसके जरिए पता लग सकता है कि एड्रिनलीन जैसे केमिकल पर कोशिकाएं कैसे प्रतिक्रिया देती हैं.
नोबेल कमेटी ने कहा," दुनिया की आधी दवाइयां इन्हीं रिसेप्टर के कारण असर करती हैं. इसमें बीटा ब्लॉकर, एंटीहिस्टामिन और कई तरह की मनोरोग वाली दवाइयां शामिल हैं."
कोशिकाओं के ग्राही गीपीसीआर कहलाते हैं. फार्मास्यूटिकल उद्योग और बायोटेक्नोलॉजी कंपनियां दवाइयों के लिए इन्हीं पर अपना ध्यान केंद्रित करती हैं.
लेफ्कोविट्स ने टेलीफोन पर कहा कि स्वीडन से फोन आने के समय वह गहरी नींद में थे. "मैंने सुना ही नहीं. मैं आपको बताना चाहता हूं कि सोते समय मैं कान में स्टॉपर लगा के रखता हूं. इसलिए मेरी पत्नी ने मुझे कोहनी से एक धक्का दिया. फिर मुझे यह सरप्राइज मिला, एक सुखद झटका."
लुंड यूनिवर्सिटी में अकार्बनिक रसायनशास्त्र के प्रोफेसर स्वेन लिडिन ने सम्मेलन में कहा कि यह शोध चिकित्सा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है." यह पता लगने पर कि ग्राही दिखते कैसे हैं और वह कैसे काम करते हैं हम ज्यादा अच्छी दवाइयां बना सकेंगे जिनके साइड इफेक्ट भी कम होंगे."
डीपीसीआर कई बीमारियों से जुड़े होते हैं क्योंकि वह शरीर के कई जैविक कामों में अहम भूमिका निभाते हैं. लेकिन ऐसी दवाइयां बनाना जिनका लक्ष्य सीधे उन्हीं पर हो एक मुश्किल काम रहा है. क्योंकि अभी तक इस बारे में जानकारी नहीं थी कि वह काम कैसे करते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि नोबेल पुरस्कार पाने वालों के शोध से यह जानकारी मिलना संभव हुई है.
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से सीधे जुड़ी बीमारियों के इलाज में जीपीसीआर को लक्षित करने वाली दवाएं क्रांतिकारी साबित हो सकती हैं. इनमें हृदय की स्थिति, सूजन और मेटाबॉलिक गड़बड़ियां शामिल हैं.
ब्रिटेन में सोसायटी ऑफ बायोलॉजी के मुख्य कार्यकारी मार्क डाउन्स कहते हैं कि शोधकर्ताओं ने कई विषयों के लिए अहम आधार तैयार किया है. यह शानदार काम जेनेटिक विज्ञान और बायोकेमिस्ट्री के इस शोध ने आधुनिक फार्मेकोलॉजी के लिए हमारी समझ बढ़ाई है साथ ही यह भी बताया है कि शरीर के अंगों में कोशिकाएं बाहरी उद्दीपन पर कैसी प्रतिक्रियाएं देती हैं.
वहीं स्वीडन में उपासाला यूनिवर्सिटी के रासायनिक विज्ञान के प्रोफेसर योहान एक्विस्ट कहते हैं कि लेफ्कोविट्स इस पूरे विषय के पिता हैं. "दुनिया भर में मिलने वाली 1,400 दवाइयों में से एक हजार दवाइयां मुख्य तौर पर इन्हीं रिसेप्टरों पर आधारित है."
अब तक चिकित्सा और भौतिकी क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की जा चुकी है, अब साहित्य और नोबेल शांति पुरस्कार के एलान का इंतेजार किया जा रहा है. नोबेल विजेताओं के नामों की घोषणा सोमवार से शुरू हुई. ब्रिटेन के जॉन गर्डन और जापान के शिन्या यामानाका को स्टेम सेल रिसर्च में उनके काम के लिए नोबेल दिया जाएगा. भौतिकी के लिए फ्रांस के सेर्ज आरोश और अमेरिका के डेविड वाइनलैंड चुने गए हैं.
एमजे,एएम/एनआर (रॉयटर्स)