टाइनी हाउस मूवमेंट: क्या आप रहना चाहेंगे इन छोटे घरों में?
एक छोटे से घर में सिर्फ जरूरी सामान के साथ रहना भले ही सबका सपना ना हो, लेकिन टाइनी हाउस मूवमेंट की लोकप्रियता बढ़ रही है. विशेष रूप से पर्यावरण-अनुकूल जीवन बिताने की चाह रखने वाले इन्हें अपना रहे हैं.
वाल्डेन तालाब के किनारे
अमेरिकी लेखक और दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो 1845 से 1847 तक मैसाचुसेट्स राज्य में वाल्डेन तालाब के पास एक छोटे से केबिन में एकांत में रहे थे. 100 सालों बाद उनका रहने का तरीका एक नई जीवन शैली की प्रेरणा बन गया है, जिसे 'टाइनी हाउस मूवमेंट' या नन्हे घरों का अभियान कहा जाता है.
सरल जीवन
इतने छोटे घरों में रहने की अवधारणा के प्रति लोगों का खिंचाव 1970 के दशक में शुरू हुआ था. लोग जीवन के विस्तार को समेटना चाह रहे थे और एक ऐसा जीवन चाह रहे थे जिसमें वे पर्यावरण के प्रति सजग हों. 2018 में अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय आवासीय नियमावली में नन्हे घर की परिभाषा भी दी गई - एक ऐसा आवास जिसका अधिकतम आकार हो 37 वर्ग मीटर या 400 वर्ग फुट.
क्या क्या होता है इन घरों में
सामान्य रूप से ऐसे घरों में एक छोटी सी रसोई और बैठने की जगह, उसी के साथ लगी हुई सोने की जगह और विचारपूर्वक डिजाइन की हुई सामान रखने की जगह होती है. कई घर पहियों पर भी होते हैं, लेकिन कैंपर वैनों की तरह नहीं. इन घरों को डिजाइन ही ऐसे किया जाता है कि इनका ढांचा एक बड़े आकार के घर जैसा ही मजबूत हो.
अमेरिका के बाहर भी
हाल के सालों में जर्मनी में भी नन्हे घरों की संख्या बढ़ी है. देश में और विशेष रूप से जंगलों वाले दक्षिण के इलाकों में ऐसे कई हजार घर हैं. 2017 में बवेरिया प्रांत के मेहलमाइसल जिले में एक "नन्हे घरों का गांव" बना. यहां करीब 30 लोग रहते हैं और वो मिल कर एक "नन्हा घर होटल" भी चलाते हैं, जहां लोग आ कर रह सकते हैं और सरल जीवन का अनुभव कर सकते हैं.
पर्यावरण के लिए
ऐसे घरों को चलाने के लिए कम संसाधनों की जरूरत होती है, इसलिए इन्हें पर्यावरण अनुकूल माना जाता है. नन्हे घर पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिए भी आदर्श बन गए हैं. 2012 में पश्चिमी जर्मनी के हैम्बाख जंगल को जब एक कोयले की खदान के विस्तार के लिए चिन्हित कर दिया गया था, तब जंगल को बचाने के लिए लोगों ने वहां पेड़ों पर ही घर बना कर रहना शुरू कर दिया.
पानी पर जीवन
शहरों में नन्हे घर महंगे किराए से बचने की उम्मीद कर रहे लोगों के लिए एक विकल्प भी हो सकते हैं. एक बड़े आकार के घर के मुकाबले इन्हें बनाने और खरीदने में आधा खर्च आता है. बर्लिन में कुछ लोग छोटी नौकाओं पर घर बना कर रहते हैं, जहां वो ईको-टॉयलेट का इस्तेमाल कर और घरेलू कचरा कम कर अपने कार्बन पदचिन्ह को भी कम कर सकते हैं.
बेघरों के लिए समाधान?
पश्चिम के कई देशों में नन्हे घरों का इस्तेमाल बेघर लोगों को आवास दिलाने के लिए भी किया गया है. अमेरिका में 100 से भी ज्यादा नन्हे घरों वाले गांव हैं जहां जरूरतमंदों को थोड़े समय के लिए रहने की जगह मिल जाती है. हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह बेघरों के साथ अमानवीय बर्ताव है, और ऐसे घरों की जगह उन्हें स्थायी आवास दिए जाने चाहिए.
महामारी के दौर में
कुछ नन्हे घरों को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बना दिया गया है. इनमें सोलर पैनलों से स्वच्छ ऊर्जा बनाई जाती है और लोगों को भीड़ भाड़ और शोरगुल से दूर चले जाने का मौका मिलता है. कोरोना वायरस महामारी के दौरान कहीं दूर भाग जाने की यह चाह काफी लोकप्रिय हो गई है. 2020 में ही हुई एक सर्वेक्षण के मुताबिक, अमेरिका में आधे से ज्यादा लोग ऐसे घरों में रहने की कोशिश जरूर करना चाहेंगे.