ट्यूनीशिया ने अरब नेताओं की बेचैनी बढाई
१९ जनवरी २०११अरब देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत मिस्र के शर्म अल शेख शहर में हो रही है. नेताओं के मन में डर है कि लोग जागरुक होकर सरकार विरोधी न हो जाएं. माहौल की ओर इशारा करते हुए कुवैत के विदेश मंत्री अल सबाह कहते हैं, ''देश टूटते हैं, लोग जागरुक होते हैं. ऐसे में अरब नागरिकों का सवाल है कि क्या मौजूदा नेता बढ़िया ढंग से इन चुनौतियों से निपट सकते हैं.''
लंबे वक्त बाद अरब देशों के नेताओं के बीच मानवाधिकार जैसे मुद्दों की खुसफुसाहट होने लगी है. कुवैत के विदेश मंत्री सवाल पूछते हैं, ''क्या अरब नेताओं की मुलाकात लोगों के मानवाधिकार हनन को सह सकती है.''
मिस्र की आधी जनता दो डॉलर प्रतिदिन से भी कम में जिंदगी गुजारती है. ट्यूनीशिया में आए राजनीतिक भूचाल के बाद मिस्र में भी सरकार विरोधी माहौल बनने लगा है. सोमवार को अल्जीरिया और मिस्र में दो युवकों ने आत्मदाह करने की कोशिश भी है. मिस्र के विदेश मंत्री होस्साम जकी अब अपनी जनता को ज्यादा अधिकार देने की बात कर रहे हैं.
मुश्किलें सूडान के राष्ट्रपति ओमर अल बशीर की भी बढ़ गई हैं, जिनके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अदालत ने वारंट जारी कर रखा है. अफ्रीका के सबसे बड़े देश के दक्षिणी हिस्से में पिछले दिनों आजादी के मुद्दे पर जनमत संग्रह हुआ है. उत्तरी सूडान मुस्लिम बहुल इलाका है और दक्षिणी सूडान में ईसाई रहते हैं. ऐसी परिस्थियों के बीच बशर शर्म अल शेख पहुंचे हैं.
अन्य अरब नेता ट्यूनीशिया के विदेश मंत्री कामले मोरजाने से देश के हालात के बारे में चर्चा कर रहे हैं. ज्यादातर को डर है कि ट्यूनीशिया में आई राजनीतिक क्रांति की आंधी उन्हें भी न उड़ा दे. ट्यूनीशियाई में इसी महीने बढ़ते प्रदर्शनों के बीच सरकार बदल गई. पुलिस दमन का शिकार हुए एक छात्र के आत्मदाह से शुरू हुए स्थानीय विरोध ने सरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शनों का रूप ले लिया. बेरोजगारी, गरीबी और मानवाधिकार के मुद्दे निकलते चले गए और देखते ही देखते 23 साल से शासन कर रहे राष्ट्रपति बेन अली की सरकार रुई के फाहे की तरह उड़ गई. राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया और प्रतिबंधित पार्टियों को कानूनी बना दिया गया है. देश में लोकतंत्र की हवा बह रही है. ट्यूनीशिया की देखादेखी मिस्र और जॉर्डन जैसे दूसरे अरब देशों में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: महेश झा