डाटा सेविंग पर कानूनी पचड़ों में फंसता फेसबुक
८ नवम्बर २०११रविवार को कार्ल्सरुहे में जर्मन संवैधानिक कोर्ट के अध्यक्ष आंद्रियास फोसकुह्ले उस वक्त सुर्खियों में छा गए जब उन्होंने जर्मन पत्रिका फोकस के साथ इंटरव्यू में कहा कि फेकबुक का इस्तेमाल करना जोखिम से भरा है. फोसकुह्ले ने आगे कहा कि हाई कोर्ट को जल्द ही इस बात पर विचार करना पड़ सकता है कि क्या फेकबुक की सर्विस सूचना से जुड़े स्वनिर्धारण के जर्मन कानून के मुताबिक है या नहीं.
लेकिन जानकार मानते हैं कि जर्मन कानून में सुधार करने या फिर इस मुद्दे को अदालत के सामने लाने में बरसों लग सकते हैं.
कानून में दरार
जर्मनी यूरोप के उन देशों में है जहां डाटा संरक्षण की सबसे सख्त व्यवस्था है. इसका मुख्य आधार यह है कि नागरिकों से जुड़ी कोई भी जानकारी लेने से पहले उनकी सहमति जरूरी है. इसका नतीजा यह है कि कई बार सार्वजनिक हित से जुड़ी पहलों को पूरा करने के लिए जर्मनी में और देशों के मुकाबले ज्यादा वक्त लगता है. मिसाल के तौर पर जर्मन जनगणना. 1991 में एकीकरण के बाद इस साल देश में पहली बार जनगणना हुई लेकिन निजता और डाटा संरक्षण से जुड़ी चिंताओं के बीच उसे जारी करने में लगातार देर हो रही है.
कोलोन में काम करने वाले आईटी मामलों से जुड़े वकील दोमिनिक बोएकर कहते हैं, "जर्मन कानून राष्ट्र के खिलाफ रक्षा का अधिकार सुनिश्चित करता है, जबकि निजी कंपनियों के खिलाफ प्रत्यक्ष रूप से ऐसा करना मुमकिन नहीं है."
म्यून्स्टर विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर थोमास होएरेन के मुताबिक यूरोपीय संघ के डाटा निर्देश तभी लागू हो सकते हैं जब कंपनी की नियत साफ न हो. वह कहते हैं, "असल समस्या एक निजी सूचना संबंधी (डाटा संरक्षण) कानून है."
अन्य शब्दों में फेसबुक की तरफ से यूजर की आदतों का रिकॉर्ड रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुकीज जर्मन डाटा कानून का उल्लंघन है. उन लोगों के व्यवहार पर भी नजर रखी जाती है जिनका फेसबुक अकाउंट नहीं है, हो सकता है कि बस उन्होंने लाइक के बटन को दबाया हो.
लेकिन चूंकि फेसबुक का जर्मनी में सर्वर नहीं है तो वह अपने राष्ट्रीय डाटा संरक्षण कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकता.
यूरोप बनाम फेसबुक
पिछले साल अक्टूबर में एक ऑस्ट्रियाई छात्र माक्स श्रेम ने उस वक्त सनसनी फैला दी जब उन्होंने सेव किए हुए फेसबुक यूजर डाटा को लेकर अपनी जांच को प्रचारित किया. उन्हें 1,222 पन्नों की जो पीडीएफ फाइल मिली, उसमें वे पोस्ट भी शामिल थीं जो उन्होंने डिलीट कर दी थी, जबकि चेहरे से पहचान करने वाली फेसबुक के फीचर पर कोई जानकारी नहीं थी.
निजता के अधिकारों की वकालत करने वाले दूसरे लोगों के साथ मिल कर पारदर्शिता के लिए मुहिम चलाने के अलावा श्रेम अपने मामले को आयरलैंड के डाटा संरक्षण आयोग के दफ्तर ले गए, जिसने पिछले महीने फेसबुक का ऑडिट किया.
डाटा संरक्षण की पैरवी करने वालों ने फेसबुक की आयरिश सहायक कंपनी को निशाना बनाया. आयरलैंड में ही फेसबुक का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय है. ब्रसेल्स स्थित यूरोपीयन डिजीटल राइट्स से जुड़े जो मैकनेमी ने डॉयचे वेले को बताया कि आयरिश सिस्टम बहुत लचर है, इसलिए अगर कुछ सामने आ पाता है तो उन्हें हैरानी होगी. वह कुछ सालों पहले के एक केस का हवाला देते हैं जब पुलिस के डाटाबेस के दुरुपयोग का मामला साबित होने के बावजूद उसका कोई असर नहीं हुआ.
जर्मन अदालतों का ठंडा रुख
बोएकर सोचते हैं कि मामला जर्मन अदालतों के सामने आएगा, लेकिन मामले को संघीय संवैधानिक अदालत तक पहुंचते पहुंचते चार से पांच साल लग जाएंगे. डाटा संरक्षण शिष्टमंडल यह प्रशासनिक फैसला जारी कर सकता है कि फेसबुक डाटा स्टोर करना छोड़ दे, ताकि उसके कानूनी या गैर कानूनी होने का सवाल ही न उठे.
जर्मन कानून के तहत इंटरनेट यूजर उन कंपनियों पर मुकदमा कर सकते हैं जो लाइक बटन के जरिए फेसबुक को डाटा जमा करने और यूजर के ब्राउजर पर कुकीज लगाने की अनुमति देती हैं. लेकिन बोएकर मानते हैं कि ऐसा संभव नहीं है क्योंकि आम इंटरनेट यूजर की कंपनी के खिलाफ मुकदमा करने में कोई दिलचस्पी नहीं होती है क्योंकि इस पर बहुत खर्चा आता है और समय भी खूब लगता है. बोएकर मानते हैं कि इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है कि कानून में बदलाव किए जाएं.
रिपोर्टः सोन्या अंगेलिका दीन (ए कुमार)
संपादनः ओ सिंह