डॉक्युमेंट्री के खुलासों से पाकिस्तान नाराज
२८ अक्टूबर २०११बुधवार को इस डॉक्युमेंट्री सीरीज सीक्रेट पाकिस्तान की पहली कड़ी बीबीसी पर दिखाई गई. इसमें तालिबान के कई मध्यम दर्जे के कमांडरों ने इंटरव्यू दिए हैं. इंटरव्यू में उन्होंने साफ साफ माना है कि उन्हें पाकिस्तान से भरपूर मदद मिलती है.
पाकिस्तान का खंडन
पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक इस वक्त ब्रिटेन की यात्रा पर हैं. उन्होंने इस डॉक्युमेंट्री की तीखी आलोचना की. उन्होंने एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि तालिबान इस तरह के आरोपों के जरिए अपने दुश्मनों में दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. मलिक ने कहा, "हम पीड़ित हैं, युद्ध के पीड़ित. हमने अपने 35 हजार मासूम लोग खोए हैं. इनमें सीनियर अधिकारी, पुलिसवाले और सामान्य सैनिक सभी हैं. इसके बाद भी अगर हम पर शक किया जाता है तो यह निराशाजनक है. हम तो पहले मोर्चे पर खड़े हैं."
मलिक ने तालिबान को ट्रेनिंग देने के आरोपों को गलत बताते हुए कहा, "हम रोज के आत्मघाती हमले झेल रहे हैं. अगर उन्हें हमने ट्रेनिंग दी होती तो हम खुद को न मरवा रहे होते."
डॉक्युमेंट्री में एक अफगान अधिकारी का भी इंटरव्यू है. अफगान जासूसी एजेंसी के प्रमुख रहे अमरुल्लाह सालेह ने बताया है कि 2006 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को सूचना दी गई थी कि ओसामा बिन लादेन उत्तरी पाकिस्तान में कहीं छिपा हुआ है. इस सूचना पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. सालेह ने कहा कि हथियारों की तस्करी कर रहे एक पाकिस्तानी सैयद अकबर ने अफगान जासूसों को बताया था कि वह बिन लादेन को एक जगह से दूसरी जगह ले गया था. सालेह कहते हैं, "हमारी सूचना के मुताबिक लादेन मानशेरा कस्बे में छिपा था. और कई साल बाद लादेन उस जगह से सिर्फ 12 मील दूर मारा गया." ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी फौजियों ने इसी साल मई में इस्लामाबाद के पास एबटाबाद में मारा.
पाकिस्तान की सेना ने भी इस रिपोर्ट का खंडन किया है. सेना के प्रवक्ता जनरल अतहर अब्बास ने कहा, "हम इस रिपोर्ट को भेदभावपूर्ण मानते हैं. यह एकतरफा है. इसमें हमारा पक्ष पूछा ही नहीं गया है जबकि हम इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. और यह तथ्यात्मक रूप से भी गलत है."
हर तरह की मदद
डॉक्युमेंट्री में एक तालिबान कमांडर मुल्ला कासिम ने बताया है कि अफगान तालिबान लड़ाकों को सप्लाई और छुपने की जगह मुहैया कराने में पाकिस्तान की अहम भूमिका है. लेकिन अतहर अब्बास कहते हैं कि मुल्ला कासिम की विश्वसनीयता ही नहीं है. उन्होंने कहा कि आईएसआई पहले ही कह चुकी है कि बीबीसी की रिपोर्ट में जिन समूहों का जिक्र है उन्हें एक गोली तक नहीं दी गई है.
एक अन्य तालिबान कमांडर नजीब ने कहा कि अल कायदा के ट्रेनर भी ट्रेनिंग कैंपों में ऐसे लोगों की तलाश में आते हैं जो आत्मघाती हमलों को अंजाम दे सकें. नजीब ने कहा, "मैं करीब एक महीने तक कैंप में था. वे हमें व्यवहारिक ट्रेनिंग दे रहे थे. आत्मघाती हमलावरों को अलग सेक्शन में ले जाया गया और उन्हें हमसे अलग रखा गया."
अमेरिका पहले ही संदेह जताता रहा है कि पाकिस्तान या फिर इसकी एजेंसी आईएसआई के कुछ तत्व आतंकवादी संगठनों की मदद करते हैं ताकि 2014 में नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान से चले जाने के बाद वहां अपना प्रभाव कायम कर सकें. सितंबर महीने में अमेरिका के तत्कानील सर्वोच्च सैन्य अधिकारी एडमिरल माइक मुलेन ने पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी पर अमेरिका के खिलाफ किए जाने वाले हमलों को समर्थन देने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा कि 13 सितंबर को काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले के लिए जिम्मेदार संगठन हक्कानी नेटवर्क आईएसआई की शाखा की तरह काम करता है.
पाकिस्तान इन आरोपों को गलत बताता रहा है. रहमान मलिक ने कहा, "अगर पाकिस्तान ने जासूसी के मकसद से कुछ लोगों को भर्ती किया है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम उनकी मदद करते हैं. अमेरिका की सीआईए और ब्रिटेन की सुरक्षा सेवा के भी हक्कानी नेटवर्क से संपर्क हैं क्योंकि उन्हें सूचनाओं के लिए उनकी जरूरत है."
अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकवादी हमले से पहले अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था और पाकिस्तान उसका समर्थन करता था. यह उन तीन मुल्कों में से एक था जिनके तालिबान के साथ राजनयिक रिश्ते थे.
रिपोर्टः एएफपी/रॉयटर्स/वी कुमार
संपादनः ए कुमार