ढूंढा कभी न मिटने वाला रंग
१४ सितम्बर २०१२विशेषज्ञों का मानना है कि पेड़ पौधों से मिलने वाले तत्वों से ही रंग बनाए जाएंगे. इनका इस्तेमाल खाद्य उद्योग और मुद्रा (नोट) बनाने के लिए किया जा सकेगा. एक खास तरह की वेवलेंथ को परावर्तित करने वाले सेल्यूलोज की परतें मिली हैं. इसे वैज्ञानिक स्ट्रक्चरल कलर का नाम दे रहे हैं. ये मोर के पंखों, खास तरह के गुबरैला कीड़े और तितलियों में पाया गया है. इस के कारण ही मार्बल बेरी में खास तरह का नीला रंग आता है.
वैज्ञानिकों ने देखा कि 19वीं सदी की शुरुआत में इकट्ठा किए गए प्लांट कलेक्शन के फलों का रंग अभी भी जस का तस है. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की भौतिकविज्ञानी सिल्विया विग्नोलिनी कहती हैं, "प्रकृति से प्रेरणा लेते हुए ऐसे बहुआयामी पदार्थ बड़ी मात्रा में निकाले जा सकते हैं जो टिकाऊ स्रोत से आएं और सेल्यूलोज की तरह हों." यह पिगमेंट या किसी भी और तरीके से मिलने वाले रंग से दस गुना ज्यादा तीव्र होते हैं. सिल्विया विग्नोलिनी और बेवरले ग्लोवर ने यह शोध किया.
हालांकि मार्बल बेरी में कुछ पौष्टिक नहीं होता लेकिन पक्षी इसकी ओर रंग के कारण आकर्षित होते हैं. इतना ही नहीं वह इनका इस्तेमाल घोंसला सजाने या मादा पक्षी को आकर्षित करने के लिए भी करते हैं. और इस कारण इस पौधे के बीज अपने आप फैल जाते हैं. पिगमेंट की तुलना में स्ट्रक्चरल कलर समय के साथ फीके नहीं पड़ते क्योंकि रौशनी सोखने के कारण इसके अणु टूटते नहीं हैं.
विग्नोलिनी बताती हैं, "खाने लायक, सेल्यूलोज से बने अत्यंत महीन स्ट्रक्चरल कलर, रंगने वाले जहरीले रंगों और खाने में इस्तेमाल किए जाने वाले रंगों की जगह उपयोग में लाया जा सकेगा." सेल्यूलोज वाली संरचनाएं प्रकाश को अच्छे से परावर्तित करती हैं और मानवीय शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाती है.
इस तकनीक का एक और फायदा यह है कि जो रंग चाहिए उसके लिए बस सेल्यूलोज की तहें बढ़ाते जानी होंगी. ऐसा करने से अलग अलग तरंग दैर्घ्य के रंग उससे टकरा कर परावर्तित होंगे. हर बार नए पिगमेंट खरीदने की जरूरत नहीं होगी.
इसी तरह का एक शोध पीटर वुकुसिच ने एक्सेटर यूनिवर्सिटी में किया था. उन्होंने ऐसी संरचना का पता लगाया जो तितली के पंखों का रंग बनाती है. इसी संरचना को अब पिगमेंट फ्री फोटोनिक मेकअप उत्पादों के लिए फ्रांसीसी कंपनी लॉरिएल इस्तेमाल कर रही है.
वुकुसिच बताते हैं, "मैंने देखा कि इनमें से कुछ स्ट्रक्चरल कलर आंखों को कितने भाते हैं. तितलियों की कई प्रजातियों को 18वीं सदी में संरक्षित किया गया था, उनके पंखों के रंग अभी भी उतने ही चटक हैं.
वुकुसिच का कहना है कि बीएमडब्ल्यू जैसी कुछ कार कंपनियों ने इस प्रक्रिया का इस्तेमाल ऐसे पेंट बनाने में किया है जो रंग बदलते हैं. वे हर कोण से अलग दिखाई देते हैं. लेकिन प्रकृति की तुलना में यह कुछ भी नहीं है.
उनका कहना है कि अगर इसके उत्पादन की चुनौतियां खत्म की जा सकें तो पौधों में पाया जाने वाला सेल्यूलोज काफी उपयोगी हो सकता है. नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेस की विज्ञान पत्रिका में यह शोध छपा है.
एएम/एमजे (रॉयटर्स)