तालिबान से बातचीत होः अमन जिरगा
५ जून २०१०तीन दिन तक चली इस बैठक में राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लगभग 1,600 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इसके बाद 16 सूत्रीय घोषणापत्र जारी किया गया जिसमें सभी गुटों से हथियार छोड़ने और मेलमिलाप की अपील की गई है. राष्ट्रपति हामिद करजई ने अमन जिरगे से अपील की कि वह तालिबान लड़ाकों को माफी देने, हिंसा छोड़ने के बदले आर्थिक मदद और काम की पेशकश करने, उनके बड़े नेताओं को किसी दूसरे देश में शरण दिलाने और उनके नाम संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका की ब्लैकलिस्ट से हटवाने की सरकार की योजना पर जनता का समर्थन हासिल करें.
जिरगे के समापन पर अफगान राष्ट्रपति ने कहा, "अब रास्ता साफ है. रास्ता जो आपने दिखाया और चुना है, हम उस पर एक एक कदम बढ़ाएंगे और खुदा ने चाहा तो अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे." उन्होंने लाखों अमेरिकी और नैटो सैनिकों से लड़ रहे तालिबान लड़ाकों से हिंसा खत्म करने को कहा.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने जिरगे के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने इसे शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए सभी अफगानों से संवाद की दिशा में एक अहम कदम बताया है. एक बयान में उन्होंने कहा, "संयुक्त राष्ट्र अफगानिस्तान में संकट खत्म करने की इन राष्ट्रीय कोशिशों का समर्थन करता है. साथ ही अफगान अधिकारियों के साथ वचनबद्धताओं पर अमल किया जाता रहेगा."
वहीं अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता पीजे क्राउली के मुताबिक ओबामा प्रशासन समझता है कि जिरगे ने अपना काम पूरा कर दिया है. उन्होंने कहा, "इससे उग्रवाद के खतरे को कम करने के लिए एक राजनीतिक रणनीति पर अमल करने के लिए एक राष्ट्रीय सहमति प्राप्त होती है. इस दिशा में हम अफगानिस्तान का समर्थन करते रहेंगे."
वैसे तो अमन जिरगा एक सांकेतिक बैठक है जिसका आयोजन पारंपरिक रूप से मुश्किल समय में अफगान लोग करते आए हैं. इसीलिए यह साफ नहीं है कि इसका घोषणापत्र कितनी अहमियत रखता है. जिरगे के पहले दिन तालिबान ने इसे रॉकेट से निशाना भी बनाया था. उसने अमन जिरगे को अमेरिका के इशारे पर होने वाली बैठक बताकर खारिज किया. इसलिए इस बात के कम ही आसार है कि बातचीत के लिए जिरगा या फिर अफगान सरकार की पेशकश का तालिबान सकारात्मक उत्तर देगा.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एस गौड़