तेहरान में मनमोहन-खमेनेई मुलाकात
२५ अगस्त २०१२शीतयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों का विरोध करते रहे गुटनिरपेक्ष देशों की यह 16वीं शिखर भेंट है. इसके साथ एकध्रुवीय विश्व में अर्थहीन होते जा रहे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी ईरान को मिलने जा रही है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चार दिनों तक तेहरान में रहेंगे और शिखर भेंट के हाशिए पर ईरानी नेताओं के अलावा पाकिस्तान तथा दूसरे देशों के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे. ईरानी नेताओं से मनमोहन सिंह की मुलाकात में खास दिलचस्पी ली जा रही है क्योंकि यह ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका भारत पर ईरान के साथ संबंधों को कम करने और ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को लागू करने के लिए दबाव डाल रहा है.
प्रधानमंत्री के दौरे के बारे में बताते हुए भारत के विदेश सचिव रंजन मथाई ने कहा कि खमेनेई से मुलाकात में प्रधानमंत्री पारस्परिक संबंधों के सभी मुद्दों के अलावा भारत की दिलचस्पी और चिंता वाले मुद्दे उठाएंगे. "भारत की सुरक्षा और भारतीय अर्थव्यवस्था में तेल आयात और हमारे निर्यात के लिए पश्चिम एशिया और खाड़ी क्षेत्र के महत्व को देखते हुए शांति और सुरक्षा हमारी मुख्य चिंता है. यह हमारी अपनी चिंता है, हमें किसी और की चिंता को प्राथमिकता देने की जरूरत नहीं है."
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 28 अगस्त को तेहरान जाएंगे जब गुटनिरपेक्ष आंदोलन का शिखर सम्मेलन होगा. उससे पहले रविवार से ही सदस्य देशों के अधिकारी शिखर भेंट से पहले तैयारी के लिए तेहरान पहुंच रहे हैं. रविवार को भारत, ईरान और अफगानिस्तान के अधिकारी त्रिपक्षीय सामरिक बातचीत के लिए मिलेंगे. इस मुलाकात में क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिति के अलावा दक्षिण पूर्वी ईरान के चहबहार पोर्ट के बेहतरीन इस्तेमाल की संभावनाओं पर चर्चा होगी. रंजन मथाई के अनुसार बैठक में इन देशों का प्रतिनिधित्व उपमंत्री या विदेश सचिव करेंगे.
इस बैठक की पहल ईरान ने कही है, लेकिन इसमें भारतीय पोर्ट एसोसिएशन की रिपोर्ट पर भी चर्चा होगी, जिसमें कहा गया है कि प्रतिबंधों का सामना कर रहे देश के पोर्ट पर क्या व्यावसायिक गतिविधियां की जा सकती हैं. रंजन मथाई ने अफगानिस्तान के लिए वैकल्पिक रास्ते के रूप में चहबहार पोर्ट के महत्व पर जोर दिया और कहा कि भारत सरकार रिपोर्ट में सुझाई गई संभावनाओं का अध्ययन कर रही है. इस पोर्ट के रास्ते भारत के लिए पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों के साथ कारोबार करने की व्यापक संभावनाएं हैं.
नाटो की टुकड़ियों के 2014 में अफगानिस्तान से हटने की तैयारियों के बीच भारत को डर है कि अफगानिस्तान में फिर से तालिबान का शासन आ सकता है. पिछले दशक में भारत ने अफगानिस्तान में 2 अरब डॉलर का निवेश किया है और अफगानिस्तान को सबसे ज्यादा विकास सहायता देने वाले देशों में शामिल है. भारत से अफगानिस्तान का सबसे नजदीक रास्ता पाकिस्तान होकर जाता है लेकिन पाकिस्तान ने भारत को रोड से काबुल जाने की सुविधा नहीं दी है.
पश्चिमी देशों से कड़े प्रतिबंध झेल रहे ईरान चहबहार में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए विदेशी निवेश चाहता है. रविवार की बैठक में पोर्ट के विकास के लिए विशेषज्ञों का दल बनाए जाने की संभावना है. अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ईरान से अपने रिश्ते तोड़ नहीं सकता क्योंकि वह अपने ऊर्जा जरूरतों के लिए ईरान पर निर्भर है. ईरान भारत की तेल जरूरतों का 12 फीसदी देता है. दोनों देशों के बीच पिछले साल 16 अरब डॉलर का कारोबार हुआ जिसमें अकेले भारतीय तेल आयात 13.5 अरब डॉलर था. भारत ने पिछले महीनों में ईरान से तेल की खरीद में कटौती की है और इराक तथा कुवैत से ज्यादा तेल खरीदना शुरू किया है.
एमजे/एएम (पीटीआई)