दागियों पर भारी क्रिकेट प्रेमियों का जुनून
१ सितम्बर २०१०वैसे क्रिकेट के 'पारखी' लोगों ने राष्ट्र की प्रतिष्ठा से जोड़कर इसके बाजार को हजारों गुना बढ़ा दिया. क्रिकेट के शुरुआती दौर में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज सरीखी टीमों का दबदबा रहा. क्रिकेट की शुरुआत इंग्लैंड में ही हुई, इसलिए शुरुआत में ज्यादातर मैच इंग्लैंड में ही हुए.
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट सीरीज को एशेज कहा गया और 'एशेज' नाम के बाद अचानक इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ गई. साथ ही अन्य देश जहां क्रिकेट उस समय बेहद शुरुआती दौर में था, वहां भी एशेज का इंतजार होने लगा. वास्तव में एशेज सीरीज का नामकरण क्रिकेट को दो देशों के लोगों की भावनाओं से जोड़ने की कोशिश थी, जो बहुत सफल रही.
एशेज सीरीज का इतिहास कुछ इस तरह है कि 1882 में ऑस्ट्रेलिया ने ओवल में पहली बार इंग्लैंड की टीम को उसी की धरती पर हराया. ऑस्ट्रेलिया से मिली इस करारी हार को ब्रिटिश मीडिया बर्दाश्त नहीं कर पाया. स्पोर्टिंग टाइम्स ने लिखा कि इंग्लैंड क्रिकेट की मौत हो चुकी है और उसकी चिता जलाने के बाद राख (एशेज) ऑस्ट्रेलिया टीम अपने साथ ले जा रही है. इसके बाद इंग्लैंड टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे के समय ब्रिटिश मीडिया ने इस दौरे को इंग्लैंड की प्रतिष्ठा बचाने का अवसर कहा. इंग्लैंड टीम के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर इंग्लैंड के कप्तान इवो ब्लिग को बेल्स की राख (एशेज) तोहफे में दी गई, जो इस सीरीज का प्रतीक बनी.
इस पूरे घटनाक्रम में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के लोग अपनी अपनी टीमों से भावनात्मक रूप से जुड़ गए. अब चाहे एशेज ऑस्ट्रेलिया में हो या इंग्लैंड में दोनों टीमों के समर्थक वहां मौजूद रहते हैं और हार या जीत पर जश्न मनाते हैं, दुखी होते हैं. आज तो एशेज का इंतजार पूरी दुनिया के लोग करते हैं और कुछ 'दीवाने' तो इसे विश्व कप से भी बड़ा आयोजन मानते हैं. ऑस्ट्रेलिया ने एशेज के जमाने से ही अपने क्रिकेट का विस्तार किया और उसमें नए-नए प्रयोग किए. बाद में वनडे क्रिकेट आया और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी सबसे पहले क्रिकेट के इस छोटे फॉर्मेट में ढले.
दूसरी तरफ वेस्टइंडीज टीम ने भी अपनी ताकत दिखाई और जल्द ही यह टीम क्रिकेट की महाशक्ति बन गई. वेस्टइंडीज छोटे-छोटे कैरेबियाई द्वीप हैं और इन सभी द्वीपों के आपस में कई विवाद हैं, लेकिन क्रिकेट की बात जब आती है तो ये सभी विवाद भुलाकर एक टीम बनाकर खेलते हैं. 1975 में जब वनडे क्रिकेट में विश्वकप की शुरुआत हुई तब वेस्टइंडीज ने अपना पराक्रम दिखाकर लगातार दो विश्व कप जीते थे.
यहां भी वेस्टइंडीज की 'एकता' इसलिए थी कि लोगों की भावनाओं को क्रिकेट से जोड़ा गया, इसलिए सभी द्वीप एक होकर वेस्टइंडीज के लिए खेलते हैं.
1932 में क्रिकेट एशिया में आया, जब पहली बार भारतीय टीम ने लॉर्ड्स के मैदान पर मजबूत इंग्लैंड का सामना किया. तब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. सूचना के साधन नहीं होने के बावजूद लोग यह जानने के लिए उत्सुक थे कि हमारी टीम कैसा खेली. टीम के लिए दु्आएं हुईं कि फिरंगियों को हराओ. क्रिकेट एक बार फिर भावनाओं से जुड़ा और आजादी के बाद इसकी लोकप्रियता में और भी बढो़तरी हुई.
विभाजन के बाद 1952 में पाकिस्तान क्रिकेट टीम ने भारत का पहली बार दौरा किया तो बात फिर खेल से ज्यादा राष्ट्र की प्रतिष्ठा की थी. बहरहाल, यह सीरीज बहुत लोकप्रिय हुई और क्रिकेट संचालकों को अहसास हो गया कि क्रिकेट के बाजार में बहुत संभावनाएं हैं. इसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच टेस्ट क्रिकेट सिरीज होने लगीं.
वनडे क्रिकेट के आने के बाद एशिया कप और शारजाह क्रिकेट टूर्नामेंट जैसे आयोजनों ने क्रिकेट संचालकों की जेब भर दी. एशिया कप और शारजाह क्रिकेट टूर्नामेंट 1984 में पहली बार आयोजित हुए और इन्हें बहुत सफलता मिली. वास्तव में यही वह समय था, जब क्रिकेट को एशिया में पूरी तरह से पहचान मिली और उसकी लोकप्रियता चारों तरफ बढ़ गई.
इसके बाद भारत-पाकिस्तान क्रिकेट की लोकप्रियता को भुनाया गया और इसीलिए टोरेंटो में हर एक साल के अंतराल पर दोनों टीमों के बीच पांच वनडे मैचों की सीरीज का आयोजन किया गया. हालांकि दोनों देशों के बीच खराब राजनीतिक संबंधों के चलते यह टूर्नामेंट बंद हो गया. 1995 में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में इनडिपेंडेंस कप का आयोजन भी बहुत लोकप्रिय हुआ.
कहने का अर्थ यह है कि क्रिकेट आज वह क्रिकेट नहीं होता अगर उसमें लोगों की भावनाएं नहीं जुड़तीं. इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट, ऑस्ट्रेलिया में बिगबैश टूर्नामेंट, पाकिस्तान में पाक चैंपियंस और भारत में इंडियन प्रीमियर लीग का कॉन्सेप्ट भी यही है कि अपनी टीम से भावनात्मक रूप से जुड़कर खेल देखिए. इसलिए इन टूर्नामेंट में नामी खिलाड़ी खेलते हैं, क्योंकि उन्हें क्रिकेट प्रेमियों का भरपूर प्यार मिलता है और धन वर्षा होती है.
हाल ही में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के फिक्सिंग में शामिल होने के खुलासे के बाद लाखों क्रिकेट प्रेमी आहत हुए. क्रिकटरों के सट्टेबाजों के हाथों यूं बिकने की खबर से क्रिकेट प्रेमी हिल गए. इस 'सनसनी' के बाद लगा कि वह सुबह जल्दी उठकर स्कोर जानने की ललक, देर रात तक जागकर मैच देखना, फोन पर दोस्तों को स्कोर बताना सब छलावा था. स्पॉट फिक्सिंग के साथ ही इन दगाबाज क्रिकेटरों क्रिकेट प्रेमियों के जज्बात भी बेच दिए.
फिक्सिंग कांड में जो हुआ वह दुखदायी था और दोषी क्रिकेटरों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि फिर कोई खिलाड़ी ऐसी जुर्रत न कर सके. एक बात और, क्रिकेट को बदनाम करने वाले ये 'दागी' इतना जान लें कि क्रिकेट प्रेमियों की भावनाएं इस खेल से इस कदर जुड़ी हुई हैं कि इन आसिफों, आमिरों, और सलमानों के काले कारनामें क्रिकेट प्रेमियों की इस खेल के प्रति श्रद्धा कम नहीं कर सकते. उनके काले कारनामों पर क्रिकेट प्रेमियों का जुनून बहुत भारी है.
रिपोर्टः शराफत खान (सौजन्यः वेबदुनिया)
संपादनः ए कुमार