दार्जिलिंग चाय और पर्यटन पर आंदोलन की मार
२३ दिसम्बर २००९पश्चिम बंगाल के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन केंद्र दार्जिलिंग में क्रिसमस और नए साल के मौके पर देशी-विदेशी पर्यटकों की भरमार रहती थी. लेकिन अलग गोरखालैंड की मांग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का आंदोलन तेज होने की वजह से इस साल यहां वीरानी छाई है. यही वजह है कि यहां ट्वाय ट्रेन को यात्री तक नहीं मिल रहे हैं. इस आंदोलन से दुनिया भर में मशहूर दार्जिलिंग चाय भी अछूती नहीं है. इस चाय के उत्पादन में अबकी कम से कम 20 प्रतिशत गिरावट का अंदेशा है.
दार्जिलिंग को पहाड़ियों की रानी यूं ही नहीं कहा जाता. प्रकृति ने यहां खुले हाथों से अपना खजाना लुटाया है. इलाके की अर्थव्यवस्था अंग्रेजी के टी अक्षर से बने तीन शब्दों-टिम्बर, टी और टूरिज्म पर निर्भर है. पेड़ों की कटाई के चलते टिम्बर यानी लकड़ी तो ज्यादा बची नहीं है. अब अलग राज्य की मांग में नए सिरे से होने वाले आंदोलन और बंद ने टी और टूरिज्म पर भी ग्रहण लगा दिया है. शहर के ज्यादातर होटल खाली हैं.
ईस्टर्न हिमालयन टूर आपरेटर्स एसोसिएशन के सचिन सम्राट सांन्याल कहते हैं कि क्रिसमस का समय होने की वजह से इस सीजन में काफी पर्यटक यहां आते थे. लेकिन आंदोलन और बंद की वजह से इस साल डर के मारे लोग शायद इन पहाड़ियों का रुख नहीं करेंगे.
इस आंदोलन ने दार्जिलिंग चाय की हरियाली भी छीन ली है. चाय बागानों में उत्पादन भी घट रहा है. इलाके के 56 चाय बागानों में हर साल नब्बे लाख किलो चाय पैदा होती है. इसका ज्यादातर हिस्सा निर्यात होता है. देश के कुल चाय निर्यात में दार्जिलिंग का हिस्सा लगभग सात प्रतिशत है. टी बोर्ड की अधिकारी रोशनी सेन कहती हैं कि निर्यात तो प्रभावित हुआ ही है, विश्व बाजार में दार्जिलिंग चाय की साख को भी धक्का लगा है.
लेकिन आंदोलनकारियों को इन सब बातों की चिंता नहीं है. वे तो फिलहाल खुली आंखों से अलग राज्य का सपना देखने में जुटे हैं.
रिपोर्ट: प्रभाकर, दार्जिलिंग
संपादन: महेश झा