दुनिया के रोमांचक सफ़र के लिए तैयार
७ फ़रवरी २०१०स्विट्ज़रलैंड के शातू दोए में माइक हॉर्न ने इस ख़ास प्रोग्राम की शुरुआत की है. वहां आए नौजवानों को रोमांचक यात्राओं पर ले जाया जाता है. दूर दराज़ के इलाक़ों में ले जाकर उनका परिचय नई नई संस्कृतियों से कराया जाता है. साथ ही उन्हें पर्यावरण संरक्षण संबंधी काम, जैसे समंदर के किनारों को साफ़ करना और नए पौधे लगाना सिखाया जाता है. इन सब कामों में युवाओं की दिलचस्पी पैदा कर उन्हें प्रकृति के प्रति और भावुक होना सिखाया जाता है.
प्रकृति से प्यार
मज़े की बात तो यह हैं कि इस साल इनकी टोली का लक्ष्य भारत है. ये भारत के सबसे सुंदर द्वीपों में से एक अंडमान निकोबार की ओर चल पड़े हैं. 8 यंग एक्सप्लोरर्स का यह ग्रुप वहां बसने वाले मगरमच्छों, कछुओं और हाथियों की ज़िंदगी को जानेगा. साथ ही ये लोग सुनामी के बाद अंडमान के ईकोसिस्टम में आए बदलावों को भी पढ़ेंगे. उसके बाद ये लोग गंगा नदी के पानी पर भी कुछ वैज्ञानिक परीक्षण करेंगे.
इस ग्रुप की सदस्य 14 साल की परिधि रस्तोगी का कहना है, "मैं पर्यावरण को लेकर बहुत भावुक हूं. मैं भारत में बाघ संरक्षण को लेकर चल रहे प्रोग्रामों का भी हिस्सा हूं क्योंकि यह हमारा राष्ट्रीय पशु है. साथ ही मैंने स्कूल में चलाए गए कई पर्यावरण संबंधी प्रोजेक्ट्स में हमेशा हिस्सा लिया है. " परिधि की साथी इटली की वैलेंटीना मैज़ोला बताती हैं, "मेरे लिए पर्यावरण जीवन का एक अहम हिस्सा है क्योंकि इसका हम पर सीधा असर पड़ता है. अगर पर्यावरण और पशु नहीं होंगे और सिर्फ़ मानव की बनाई चीज़ें ही हर तरफ़ होंगी, लेकिन यह ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकता. प्राकृतिक चीज़ें अपने आप ही बनी हैं. मुझे इस शक्ति में विश्वास है और हमें इसे बनाए रखना है."
है आपमें दम
माइक ने अपने जीवन में छोटे बड़े कई जोख़िम भरे काम किए और उनमें सफल होकर भी दिखाया. ऐसे ही कुछ अभियानों के दौरान उन्हें युवा साथियों की कमी महसूस हुई जिसके बाद उन्होंने ये ख़ोज शुरु की. लेकिन इनके ग्रुप का हिस्सा बनना आसान नहीं है. कड़ी फ़िज़िकल और मेंटल ट्रेनिंग के दौरान आपकी क्षमताओं को परखा जाता है. एक एप्लिकेशन फॉर्म भरने से शुरु हुई एंट्री की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वालों को 36 घंटे तक ट्रेकिंग करनी पड़ती है. बर्फ़ से ढके पहाड़ों पर लगभग डेढ दिन तक चढ़ना आसान नहीं होता, लेकिन माइक का मानना है कि अब अगर पूरी दुनिया की सैर पर निकलना है तो डगर थोड़ी मुश्किल तो होगी. साथ ही ट्रेकिंग के बहाने युवाओं की टीम को साथ लेकर चलने की भावना भी आंकी जाती है. इस ग्रुप के सदस्य डोमिनिक पार्कर का कहना है, "इस अनुभव की शुरुआती पीड़ाओं के उबरने के बाद जब मैं पीछे मुड़कर देखूंगा तो अपने आपको बहुत अच्छा महसूस करूंगा. इस ग्रुप में हमें एकजुट बनाया है क्योंकि सभी एक जैसी क्योंकि सभी एक जैसी परिस्थिति में ख़ुद को देखते हैं."
माइक मानते हैं कि इस यात्रा से लौटने के बाद ये यंग एक्सप्लोर्रस भी उन्हीं की तरह अपने इस ग्रह के प्रति और भावुक होकर लौटेंगे. वो इस धरती की ज़रूरतों को अच्छे से समझने लगेंगे. वह कहते हैं, "हमारे इस प्रोजेक्ट का मतलब इन्हें नेता बनाना है, न कि तानाशाह. जिस प्रकृति में वह रहते हैं, उसे समझें. वे प्रकृति के बारे में सोचेंगे. अगर वे अपने आपको इससे जोड़ते हैं और समझते हैं तो नहीं भूल पाएंगे कि कब उन्होंने प्लास्टिक बोतल ली और कैसे गले में टूथब्रश फंसने से किसी कछुए की मौत हो गई. या देखेंगे कि कैसे मछुआरे मूंगों की बर्बाद कर रहे हैं या किस तरह बेतहाशा पेड़ों को काटा जा रहा है.
बदलावः खुद से
माइक आजीवन इन लोगों को अपना और अपने आर्गनाइज़ेशन का पूरा सपोर्ट देने का भी वादा करते हैं. प्रकृति के प्रति जो जज़्बा माइक लोगों में भरना चाहते हैं, उसकी झलक ग्रुप के सभी सदस्यों की बातों में दिखती भी है. दिल्ली की परिधि रस्तोगी कहती हैं, "मैं मानती हूं कि बदलाव अपने आप से शुरू होता है. इसलिए मैं पर्यावरण की ख़ातिर बहुत सी कोशिशें कर रही हूं. मैं चीज़ों को बर्बाद नहीं करती. क्योंकि अगर आप सरंक्षित नहीं कर सकते तो कम से कम बर्बाद भी नहीं करना चाहिए."
दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर चाहे एक देश दूसरे और दूसरा देश तीसरे की आलोचना में लगे हों, लेकिन इन उत्साही युवाओं के लिए बदलाव ख़ुद से शुरु होता है और उसी बदलाव की ख़ोज में ये सभी निकल पड़े हैं.
रिपोर्टः मार्टन रादकाई/तनुश्री सचदेव
संपादनः ए कुमार