दुनियाभर में मिस्र बढ़ा सकता है मंहगाई
४ फ़रवरी २०११पिछले दिनों ट्यूनिशिया में राष्ट्रपति जिने अल अबीदीन बेन अली के पतन और उत्तर अफ्रीका के कई देशों के साथ मिस्र में राजनीतिक विद्रोह के लिए खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों को जिम्मेदार बताया जा रहा है. अब एक ताजा सर्वे में खाद्य व कृषि संगठन एफएओ ने कहा है कि वैश्विक कीमतों का उसका हर महीने जारी होने वाला सूचकांक जनवरी में 231 अंक पर पहुंच गया. 1990 में कीमतों की मॉनिटरिंग शुरू करने के बाद से यह नया रिकॉर्ड है.
और बढ़ेगी महंगाई
रोम स्थित एफएओ के एक अर्थशास्त्री अब्दोलरजा अब्बासियान ने कहा है, "नए आंकड़े साफ तौर पर दिखाते हैं कि खाद्य पदार्थों की कीमतों के बढ़ने का दबाव बना हुआ है. आने वाले महीनों में ऊंची कीमतें बनी रहेंगी."
दिसंबर की तुलना में कीमत सूचकांक में 3.4 फीसदी की वृद्धि हुई. खासकर डेयरी उत्पादों, अनाज और तेल की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है. खाद्य व कृषि संगठन के आंकड़ों के अनुसार कीमतों में सबसे अधिक वृद्धि चीन, भारत, इंडोनेशिया और रूस में हुई है. भारत में फसल कटाई के दौरान हुई बेमौसम बरसात से फसल को खासा नुकसान पहुंचा और आपूर्ति में बाधा पड़ी.
मौसम जिम्मेदार
लंदन की कंसल्टेंसी फर्म कैपिटल इकॉनॉमिक्स का कहना है महंगाई के लिए खराब मौसम जिम्मेदार है और उसने मिस्र सहित कई देशों में सामाजिक अशांति में योगदान दिया है. उसका कहना है कि मिस्र का संकट कीमतों को और बढ़ा सकता है क्योंकि दूसरे अरब देशों ने ऐसे विद्रोह को टालने के लिए निर्यात पर रोक लगा दी है और अनाज का भंडार बनाना शुरू कर दिया है.
एक ओर आशंका व्यक्त की जा रही है कि अरब देशों के इस फैसले से विश्व बाजार में अनाज की कीमतों पर दबाव बना रहेगा तो एफएओ के अब्बासियान का कहना है कि खाद्य पदार्थों की कमी के कारण 2007 और 2008 में हुए दंगों के बाद कुछ देशों ने महंगाई का प्रबंधन करना सीख लिया है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: वी कुमार