दूध से बने हुए कपड़े
१६ नवम्बर २०११28 साल की आंके डोमास्के ने दूध से कपड़े तैयार किए हैं. ये कपड़े हमारी सेहत के लिए भी अच्छे हैं और पर्यावरण के लिए भी. खास तौर से संवेदनशील त्वचा वाले लोग इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. आंके ने इस खास कपड़े को नाम दिया है 'क्यू मिल्क्श'. अंग्रेजी के अक्षर क्यू को 'क्वॉलिटी' यानी गुणवत्ता के लिए इस्तेमाल किया गया है और जर्मन शब्द 'मिल्क्श' यानी दूध.
यह कपड़ा रेशम जैसा मुलायम है और धोने में सूती जितना आसान है. अब तक आंके ने केवल अपने फैशन हाउस के लिए ही इस कपड़े से ड्रेस बनाए हैं. लेकिन अगले साल से वह इन्हें बाजार में उतारना चाहती हैं. कई कंपनियों ने आंके की इस नई रचना में रुचि दिखाई है.
बाजार में क्रांति
इस नए कपड़े के लिए आंके को जर्मनी के टेक्सटाइल रिसर्च असोसिएशन की ओर से पुरस्कार भी दिया गया है. टेक्सटाइल रिसर्च एसोसिएशन के अध्यक्ष क्लाउस यानसेन का मानना है कि यह कपड़ा बाजार में क्रांति ला सकता है, "हम जानते हैं कि जिन चीजों के लिए तेल की जरूरत पड़ती है, वह बहुत सीमित होते हैं. सूत बनाने के लिए बहुत सारी जमीन, पानी और रसायन की जरूरत पड़ती है. इसलिए अब हमें सोचना है कि हम भविष्य में किस तरह से कपड़ों का निर्माण करेंगे और उसने (आंके ने) हमें दिखाया है कि यह कैसे हो सकता है."
आंके की एमसीसी डिजाइन कंपनी में टाटयाना बेर्ठोल्ड पिछले एक साल से ड्रेसिज बनाने का काम कर रही हैं. कपड़े के बारे में वह बताती हैं, "शुरू में तो मुझे विशवास ही नहीं हुआ कि यह कपड़ा दूध से बना हुआ है, लेकिन जब आप इस पर काम करना शुरू करते हैं तो आपको एहसास होता है कि यह आम कपड़े से काफी अलग है. जब आप इसे देखते हैं तब आपको यह अलग नहीं लगता, लेकिन जब आप इसे पहनते हैं तब पता चलता है कि यह कितना अलग है."
त्वचा के लिए
आंके बताती हैं कि यह कपड़ा बनाने का विचार उन्हें तब आया जब उन्होंने अपने पिता को कैंसर से लड़ते हुए त्वचा की बीमारियों के साथ देखा, "कई लोगों को साधारण कपड़े पहनने के कारण एलर्जी हो जाती है, मैं बस उनकी मदद करना चाहती थी."
हालांकि दूध के प्रोटीन से 1930 से ही कपड़े बनते आ रहे हैं, लेकिन अधिकतर कपड़ों में एक्रेलिक का इस्तेमाल होता है. आंके का कहना है कि वह पूरी तरह ऑर्गेनिक फाइबर तैयार करना चाहती थीं.
इस कपड़े को बनाने के लिए दूध को उबाल कर प्रोटीन पाउडर बनाया जाता है. उसके बाद इस प्रोटीन से धागे बनाए जाते हैं. आंके बताती हैं कि इन धागों को इस तरह से बुना जा सकता कि यह रेशम जैसा दिखने लगे. कपड़ा बनाने के लिए केवल ऑर्गेनिक दूध का इस्तेमाल किया जाता है. यह ताजा दूध होता है, जिसमें किसी भी तरह के रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता. जर्मनी में ताजे दूध को पीने लायक नहीं माना जाता.
इस तरह के कपड़े बनाने के लिए ऑर्गेनिक कॉटन के निर्माण से भी ज्यादा खर्चा आता है. एक किलो कपड़ा बनाने के लिए केवल दो लीटर दूध की ही जरूरत पड़ती है. इसकी तुलना में इतना सूती तैयार करने के लिए कम से कम दस हजार लीटर पानी का इस्तेमाल होता है.
आंके द्वारा बनाए गए इस कपड़े में खास तौर से कार कंपनियों ने रुचि दिखाई है. शायद आने वाले समय में कारों की सीटों पर दूध से बने हुए कपड़े के कवर देखे जाएं.
रिपोर्ट: एएफपी/ ईशा भाटिया
संपादन: आभा मोंढे