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दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी त्रासदीः प्रधानमंत्री

१३ मार्च २०११

जापान के प्रधानमंत्री नाओतो कान ने कहा है कि उनका देश दूसरे विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी त्रासदी झेल रहा है. भूकंप और सूनामी के साथ ही देश को परमाणु विकिरण के खतरे से भी जूझना पड़ा रहा है.

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तस्वीर: AP

प्रधानमंत्री नाओतो कान ने देश के लोगों से संकट की इस घड़ी में एक होकर आपदा से मुकाबला करने की अपील की है. भूकंप और सूनामी के संकट ने तो देश की हालत खराब की ही है अब परमाणु विकिरण का खतरा भी मंडराने लगा है. फुकुशिमा परमाणु बिजली घर की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है. पत्रकारों से बातचीत में प्रधानमंत्री ने कहा, "सूनामी, भूकंप और परमाणु संयंत्र के खतरे की वजह से देश को 65 सालों में दूसरे विश्व यूद्ध के बाद सबसे बड़ी आपदा से जूझना पड़ रहा है. क्या हम जापानी लोग इस संकट से उबर पाएंगे यह हम सब पर निर्भर करता है. मुझे पूरा यकीन है कि हम अगर एकजुट रहे तो भूकंप और सूनाम की इस आपदा से बाहर निकल पाएंगे."

NO FLASH Japan Erdbeben Tsunami
तस्वीर: dapd

पूरा संयंत्र पर खतरा

रविवार को भूकंप से प्रभावित हुए फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के दो रिएक्टरों में हादसा हुआ और तीसरे रिएक्टर में भी हादसे की आशंका गहरा गई है. रविवार को एक और कूलिंग सिस्टम ने काम करना बंद कर दिया और अब ये आशंका भी बढ़ गई है कि पूरा संयंत्र ही इसकी चपेट में आ जाएगा. आशंका जताई जा रही है कि उसमें जल्दी ही दूसरा धमाका भी हो सकता है. ये धमाके तापमान और दबाव बढ़ने के कारण हो रहे हैं.

हालांकि प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि फुकुशिमा के परमाणु संयंत्र का हादसा चेर्नोबिल जितना बड़ा नहीं है. जापानी समाचार एजेंसी जीजी में प्रधानमंत्री के हवाले से छापा है, " हवा में विकिरण फैला है लेकिन ऐसी कोई खबर नहीं है कि भारी मात्रा में विकिरण हुआ है. यह चेर्नोबिल हादसे से पूरी तरह अलग है हम इसके फैलाव को रोकने के लिए काम कर रहे हैं."

Fukushima 2011 Bevölkerung
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद

इस बीच उत्तर पूर्वी तटीय इलाके पर आई सूनामी और भूकंप की के बाद 10 हजार लोगों का कुछ पता नहीं है. इनमें से 2000 लोगों के मरने की पुष्टि हुई है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मदद की पेशकश की है और फिलहाल सारा ध्यान मलबे में फंसे लोगों तक राहत पहुंचाने और परमाणु संयंत्र को बड़े हादसे से बचाने पर लगाया जा रहा है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः ईशा भाटिया

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