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दो घंटे भी टीवी दिल के लिए खतरनाक

१८ जनवरी २०११

दिन भर काम करने के बाद घर पहुंचे तो कपड़े बदलने से भी पहले टीवी या कंप्यूटर स्क्रीन के साथ चिपक जाना ज्यादातर कामकाजी लोगों की आदत बन चुकी है पर क्या आपको अंदाजा है ये आदत दिल का धड़कना बंद कर सकती है.

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तस्वीर: BilderBox

दफ्तर की आपाधापी में पूरा दिन बिताने के बाद कामकाजी लोगों का टीवी या कंप्यूटर से चिपकना वैसा ही है जैसे जेल के कैदी का छूटने के बाद घरवालों से मिलना. घर पहुंचे तो हाथ में रिमोट पहले आता है पानी का गिलास बाद में. छुट्टियों के दिन तो हालत और भी बुरी होती है. ऐसे लोग भी कम नहीं जो पूरा पूरा दिन लेटे, बैठे या उलटते पुलटते बस टीवी देखने में बिता देते हैं.

दिल दा मामला है

द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के जर्नल के ताजा अंक में छपी रिपोर्ट कहती है कि पूरे दिन की तो बात ही छोड़िए दो घंटे भी अगर आपने टीवी देखने में बिताए तो आपका दिल बुरा मान सकता है. तकरीबन साढ़े चार हजार लोगों पर किए गए रिसर्च में यह बात सामने आई है. इसमें ज्यादा खतरे वाली बात यह है कि कसरत और दूसरी गतिविधियों में शामिल होना भी टीवी देखने से नाराज हुए दिल को मनाने में नाकाम रहा.

दो घंटे या इससे कम टीवी देखने वालों में भी टीवी न देखने वालों के मुकाबले दिल की बीमारी होने का खतरा 125 फीसदी ज्यादा है. ये लोग कभी भी हार्ट अटैक का शिकार हो सकते हैं. अगर टीवी देखने का औसत हर दिन चार घंटे से ज्यादा है तो उनकी मौत का खतरा किसी भी बीमारी से होने वाली मौत की तुलना में 48 फीसदी ज्यादा है.

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तस्वीर: AP

टीवी के गुलाम न बनें

तो क्या सचमुच टीवी के रूप में हमने अपने घर में मौत का सामान जुटा रखा है. दिल्ली के मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनिल ग्रोवर इससे पूरी तरह सहमत नहीं पर टीवी देखने के खतरे से इनकार वह भी नहीं करते. डॉ. ग्रोवर कहते हैं, "अगर इस रिपोर्ट को सिर्फ शब्दों में लिया जाए कि टीवी देखने से हार्ट अटैक होता है तो ये उचित नहीं होगा. लेकन अगर हम इस रिपोर्ट को जीवनशैली की प्रक्रिया से जोड़ कर देखें तो उसे समझा जा सकता है. दिन के 24 घंटे में आपके पास 8 घंटे काम के होते हैं बाकी के आठ घंटों में तैयार होना, दैनिक क्रिया से जुड़े दूसरे काम करना और खाने का समय निकाल दें तो महज 3 घंटे ऐसे होते हैं जिसे आप अपना कह सकते हैं अब अगर ये वक्त आपने टीवी देखने में बिता दिया तो एक बेहद जरूरी काम छूट जाएगा और वह है एक्सरसाइज करना."

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टीवी देखना बुरा है, वह इसलिए क्योंकि उसके बाद हमारी शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं. अमेरिकी डॉक्टरों की रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि टीवी देखने का खतरा धूम्रपान, तनाव, वजन का घटना बढ़ना, इन सबसे अलग है. रिसर्च करने वाले डॉक्टरों ने सुस्त लोगों में कोलेस्ट्रॉल और दूसरी खतरे वाली चीजों के बीच रिश्ता जोड़ा है.

रिसर्च के मुताबिक, "स्क्रीन के साथ बिताए गए समय और दिल की बीमारियों के बीच एक चौथाई रिश्ते को सी रिएक्टिव प्रोटीन यानी सीआरपी, बॉडी मास इंडेक्स और लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल के सामूहिक प्रभाव से समझा जा सकता है. सीआरपी शरीर की प्रज्वलन क्षमता के नीचे जाते स्तर को बताता है. चार घंटे से ज्यादा देर टीवी देखने वालों में सीआरपी का स्तर दो घंटे टीवी देखने वालों की तुलना में दोगुना ज्यादा मिला.

अभी और रिसर्च हो

वैसे डॉक्टरों में इस बात पर पूरी सहमति है कि टीवी को पूरी तरह से दिल का दुश्मन बताने से पहले और अधिक रिसर्च की जरूरत है. डॉ. ग्रोवर कहते हैं, "स्वतंत्र रूप से टीवी के असर को समझने के लिए बहुत ज्यादा लोगों पर रिसर्च करने की जरूरत है, हार्ट अटैक के कई कारण हैं उनमें तनाव, ब्लडप्रेशर, मोटापा और कोलेस्ट्रॉल, ये सब मुख्य कारण हैं. इनकी श्रेणी में टीवी को रखना फिलहाल संभव नहीं है."

टीवी और तनाव के बीच रिश्ते गहराने के पीछे सिर्फ शारीरिक गतिविधियों का कम होना ही वजह नहीं है. टीवी देखने वालों का अकेलापन बढ़ता है और वह आसपास की दुनिया से कटते चले जाते हैं. अब शहरों में ऐसी शामें कहां दिखती हैं जब चार पड़ोसी साथ मिल कर टहलने और फिर चाय की चुस्कियों पर दुनिया भर के छोटे बड़े मसलों पर गरमागरम बहस करते थे. इसके अलावा टीवी पर दिखने वाली कार्यक्रम भी इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार हैं. डॉक्टर ग्रोवर साफ कहते हैं, "टीवी का जो कंटेंट है वह चाहे न्यूज हो या फिल्में वो तनाव कम कर सकें ऐसे शो अब टीवी पर बहुत कम हैं.,"

यानी इतना तो तय है कि टीवी देखने से आपका दिल नाराज तो होगा ही, नाराजगी कम ज्यादा हो सकती है या फिर इसके बने रहने के दिन भी घट बढ़ सकते हैं बेहतर यही होगा कि दिल बहलाने के लिए टीवी की बजाय ऐसी गतिविधियों से खुद को जोड़ा जाए तो सचमुच तनाव कम करें. तो फिर सोच क्या रहे हैं छोड़िए रिमोट और निकलिए घर से बाहर. खुद के लिए नहीं तो दिल के लिए ही सही.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह