धीमा पड़ता फेडरर का तूफान
१२ सितम्बर २०१०क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर और फुटबॉल के माराडोना जैसा कोई टेनिस खिलाड़ी हो सकता है तो वह रोजर फेडरर ही हैं. जैसे सचिन से 99 रन की उम्मीद नहीं होती, सिर्फ शतक की होती है. टेनिस प्रेमी भी फेडरर को सिर्फ जीतते हुए देखना चाहते हैं. सेमीफाइनल या फाइनल में पहुंचते नहीं.
सीधे हाथ के अचूक शॉट और एक हाथ से बैकहैंड खेलने वाले फेडरर के नाम का मतलब जीत साबित होने लगा. ग्रैंड स्लैम मुकाबले हों तो फेडरर के फाइनल तक पहुंचने की गारंटी होती थी. पिछले सात साल में ऐसा कोई ग्रैंड स्लैम नहीं हुआ, फेडरर जिसके क्वार्टर फाइनल तक न पहुंचे हों. फ्रांस की लाल मिट्टी को छोड़ दिया जाए, तो बाकी के तीनों खिताब फेडरर के लिए जैसे रिजर्व थे. रफाएल नाडाल को छोड़ दिया जाए तो कोई फेडरर का मुकाबिल दिखता भी नहीं था.
लेकिन पिछले दो सालों में फेडरर थोड़े धीमे पड़ गए हैं. एकतरफा मुकाबलों का दौर खत्म हो गया है. जीत तो अब भी हासिल हो जाती है. लेकिन कोर्ट पर संघर्ष दिखने लगा है. कभी सामने वाले खिलाड़ी को दौड़ा दौड़ कर बेदम कर देने वाले फेडरर इन दिनों खुद भी बेसलाइन पर दौड़ लगाते देखे जाने लगे हैं. उम्र यूं तो 30 नहीं पहुंची है लेकिन टेनिस इतनी ज्यादा हो गई है कि शायद रिफ्लेक्स कमजोर होने लगा है. आम तौर पर चार में से साल के तीन खिताब जीतने वाले फेडरर को इस साल सिर्फ एक ऑस्ट्रेलियन ओपन से संतोष करना पड़ा.
कभी अपने बैकहैंड को ब्रह्मास्त्र बना लेने वाले फेडरर के शॉट अब जाल में उलझ रहे हैं. सिर पर रखी गेंद तक पर निशाना लगा सकने वाले इस खिलाड़ी की पहली सर्विस आम तौर पर खराब हो रही है. बड़े मुकाबलों के शुरुआती दौर में ये बातें ज्यादा मायने नहीं रखतीं क्योंकि वहां कम तजुर्बेकार खिलाड़ियों से भिड़ना होता है. लेकिन क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में ऐसी छोटी छोटी कमी हार की वजह बन जाती है.
फेडरर ने लंबे वक्त तक दूसरे खिलाड़ियों को पनपने का मौका नहीं दिया. टेनिस की दुनिया पर अकेले राज करते रहे. नाडाल को अगर छोड़ भी दिया जाए तो जोकोविच और मरे जैसे खिलाड़ी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने लगे हैं. पहले संघर्ष कर कर के हार जाने वाले ये खिलाड़ी अब कभी कभी जीतने लगे हैं. फेडरर का तिलिस्म तोड़ने लगे हैं.
फेडरर की क्षमता पर संदेह करना मुनासिब नहीं. लेकिन उनकी ट्रिक भी अब कमजोर पड़ने लगी है. फेडरर आम तौर पर हारते हुए सेट में ऊर्जा झोंकने की बजाय उसे हार कर अगले सेट में उस ऊर्जा का इस्तेमाल किया करते थे. सामने वाले खिलाड़ी को आम तौर पर उनकी यह चाल समझ नहीं आया करती. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. यूएस ओपन में फेडरर का यह दांव उलटा पड़ गया. उन्होंने दो सेट आसानी से गंवाए और फिर मामला बेहद संगीन हो गया. ऐसा कि लगातार सातवीं बार फाइनल का दरवाजा बंद कर गया.
लेकिन फेडरर होने के मायने हार जीत से कहीं बड़े हैं. फेडरर होने के मायने उतर कर चढ़ना भी है. पिछले साल भी ऐसा ही एक मौका आया, जब लगातार फाइनल हारने के बाद उनके खेल पर सवाल उठने लगे. पर फेडरर ने शानदार वापसी की और करियर में पहली बार फ्रेंच ओपन अपने नाम किया. ओपन टेनिस के सिर्फ तीसरे खिलाड़ी बन बैठे, जिन्होंने ऑस्ट्रेलियाई ओपन, फ्रेंच ओपन, विम्बलडन और यूएस ओपन चारों ग्रैंड स्लैम जीते हों. फिर सबसे ज्यादा 15 बार ग्रैंड स्लैम जीतने का रिकॉर्ड बनाया. वह भी विम्बलडन के ऐतिहासिक कोर्ट पर.
अब एक बार फिर फेडरर को डूबता हुआ सूरज बताया जा रहा है. तो क्या उनका रैकेट एक बार फिर इसका जवाब देगा. सर्वकालिक महान खिलाड़ी से यह उम्मीद की जा सकती है.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः एन रंजन