ध्रुवों पर बर्फ की अंतरिक्ष से पैमाइश
१६ अप्रैल २०१०क्रायोसैट-2 एक उपग्रह है. गत आठ अप्रैल से पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है. अंतरिक्ष में भेजा है यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण एज़ा (ईएसए) ने. निर्माण मुख्यतः जर्मनी में हुआ है. जलवायु वैज्ञानिक आस लगाये बैठे हैं कि उन्हें ध्रुवों पर बर्फ पिघलने की क्रिया के बारे में अब अपूर्व शुद्धता वाले अचूक आंकड़े मिलेंगे.
वैज्ञानिक इन आंकड़ों की 2005 से ही बाट जोह रहे हैं. उस साल इसी काम के लिए क्रायोसैट-1 का प्रक्षेपण होने वाला था. हुआ भी, लेकिन वह रूसी रॉकेट से प्रक्षेपण के तुरंत बाद उत्तरी ध्रुव सागर में गिर गया.
"क्रायोसैट-1 दुर्भाग्य से वाहक रॉकेट में एक गड़बड़ी का शिकार हो गया. वैज्ञानिकों की उस में दिलचस्पी इतनी बड़ी थी कि छह महीने के अंदर ही वैसा ही एक नया उपग्रह बनाने का निर्णय लिया गया,"यह कहना है एकेहार्ड त्सेटेलमायर का, जो उपग्रह की निर्माता कंपनी अस्ट्रियम में भूनिरीक्षण तकनीक के मुख्य प्रबंधक हैं.
अचूक आंकड़ों की कमी
त्सेटलमायर भलीभांति जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन को लेकर इस समय कितनी दुविधाएं हैं और उन्हें दूर करने के लिए अचूक आंकड़ों की कितनी कमी है. इसीलिए क्रायोसैट-2 पर रह मौसम में काम कर सकने वाला एक राडार ऐल्टीमीटर (ऊँचाई मापक) भी है. यह एक माइक्रोवेव उपकरण है, जो बर्फ के बड़े-बड़े जमावों को सही-सही मापने के लिए बना है, कहना है त्सेटलमायर का: "यह उपकरण बर्फ के जमाव पर राडार स्पंद (पल्स) भेजता और लौट कर आये उनके परावर्तन को ग्रहण करता है. स्पंद के पहुंचने और बर्फ से टकरा कर लौटने में जो समय लगता है, उस में अंतर के मापन के आधार पर बर्फ की मोटाई में आये अंतरों को दर्ज किया जा सकता है."
दो सेंटीमीटर से अधिक की चूक नहीं
ऐल्टीमीटर के एक-दूसरे से अलग दो कैमरे अपने राडार स्पंद पृथ्वी की तरफ़ भेजते हैं. वे पृथ्वी पर की बर्फ से जब टकराते हैं, तो वह उन्हें अलग अलग तीव्रता के साथ अलग अलग दिशाओं में परावर्तित करती है. बर्फ की अलग अलग मोटाई के अनुपात में परावर्तित राडार तरंगों के लैटने के समयों में जो अंतर पैदा होता है, उस के आधार पर कंप्यूटर बर्फ की लंबाई, चौड़ाई और मोटाई का एक त्रिआयामी नक्शा तैयार कर सकते हैं.
बर्फ की मोटाई इतनी सटीक मापी जा सकती है कि भूलचूक की गुंजाइश दो सेंटीमीटर से अधिक नहीं होगी: "इन आंकड़ों से जाना जा सकता है कि बर्फ की मात्रा, उस की ऊँचाई या मोटाई और उसके विस्तार में क्या परिवर्तन आया है. क्या मौसमी परिवर्तन आया है, क्या वार्षिक परिवर्तन आया है और परिवर्तन की क्या भावी दिशा उभर रही है."
बर्फ के विस्तार का त्रिआयामी नक्शा
परिवर्तनों का त्रिआयामी नक्शा वैज्ञानिकों के लिए सबसे अधिक महत्व का है. उससे पता चल सकता है कि बर्फ का पिघलना और जलवायु परिवर्तन किस तरह एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं. अस्ट्रियम में क्रायोसैट-2 परियोजना के निदेशक क्लाउस-पेटर क्यौब्ले इस महत्व को रेखांकित करते हुए बताते हैं: "बर्फ की मोटाई में परिवर्तन उसकी पूरी मात्रा में परिवर्तन का सूचक है. पूरी मात्रा में परिवर्तन का जलवायु-परिवर्तन पर असर पड़ सकता है. लेकिन, यह बात अभी सिद्ध नहीं हो पायी है कि असर पड़ता ही है. बर्फ कहां कितनी मोटी है, इस बारे में आंकड़े अभी नहीं हैं. पिछले मिशनों से केवल बर्फ से आच्छादित भूभाग के क्षेत्रफल बारे में ही आंकड़े मिले हैं. तो, इस तरह, हमें इस बार नयी जानकारियां मिलेंगी."
हर 90 मिनट पर पृथ्वी की परिक्रमा
नयी जानकारियों से वर्तमान स्थित का पता तो चलेगा ही, यह भी पता चलेगा कि ध्रुवीय बर्फ पिघलने की गति क्या है या उस में क्या अंतर देखने में आते हैं. क्रायोसैट-2 हर 90 मिनट पर पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है, इसलिए बर्फ की मात्रा में होने वाले हर छोटे-बड़े परिवर्तन को दर्ज कर सकता है.
अकेले ग्रीनलैंड की सारी बर्फ पिघल जाने से समुद्र का जलस्तर दुनिया भर में सात मीटर ऊपर उठ जायेगा. इतना तय है कि बर्फ जिस तेज़ी से पिघलेगी, जलवायु परिवर्तन भी उसी गति से बढ़ता जायेगा. जैसाकि क्लाउस-पेटर क्यौब्ले बताते हैं, कई क्रियाएं एक साथ इस गति को बढ़ा सकती हैं: "सबसे पहले तो सफ़ेद बर्फ सूर्य के प्रकाश वाली ऊर्जा काफ़ी मात्रा में आकाश की तरफ़ लौटा देती है. उस के पिघलने पर यह परावर्तन घटता जायेगा. परावर्तन घटने से बढ़ने वाले तापमान को मापा जा सकता है. दूसरी चीज़ यह है कि बर्फ के पिघलने से सागरजल की मात्रा बढ़ती है. समुद्री जलधाराओं का रास्ता बदलता है. ठंडे ध्रुवीय क्षेत्रों की जलधाराएं गरम भूमध्यरेखीय क्षेत्रों तक पहुंचने लग सकती हैं और वहां गरम हो कर तापमान वृद्धि की गति को और बढ़ा सकती हैं. इससे ध्रुवीय बर्फ का पिघलना और बढ़ेगा."
क्रायोसैट-दो का अनुमानित कार्यकाल तीन साल का होगा. वह 720 किलोमीटर की ऊँचाई पर एक निश्चित कक्षा में रह कर पृथ्वी के चक्कर लगाया करेगा.
रिपोर्ट- राम यादव
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