नाटो सम्मेलन में प्रभावित किया ओबामा ने
५ अप्रैल २००९दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान के घमासान में जर्मनी के सेना नहीं भेजे जाने की कई बार आलोचना हुई है लेकिन राष्ट्रपति ओबामा ने चांसलर अंगेला मैर्केल की आलोचना की बजाय उनकी तारीफ़ के पुल बांध दिये. नाटो देशों की बैठक में ओबामा का संदेश एकदम स्पष्ट था, अमेरिका तालिबान और अलक़ायदा को ख़त्म करने के लिये प्रतिबद्ध है क्योंकि वे पश्चिमी समाज और उसके मूल्यों के लिये ख़तरा हैं.
ओबामा ने निर्णय लिया कि तालिबान की घुसपैठ से लड़ने के लिये अफ़ग़ानिस्तान में और इक्कीस हज़ार अमेरिकी सैनिक भेजे जाएंगे उनका मानना है कि अफग़ानिस्तान में संघर्ष के दौरान लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार, मुक्त व्यापार और व्यक्तिगत आज़ादी की रक्षा की जानी चाहिये.
ऐसा आत्मविश्वास वही व्यक्ति दिखा सकता है जिसके पास सुपर-शक्ति हो और ऐसे ही आत्मविश्वास के साथ ओबामा अमेरिकी सेना की संख्या इस साल के आख़िर तक अस्सी हज़ार से बढ़ाना चाहते हैं. नई पाक अफ़ग़ान नीति जो कि नाटो वार्ता से कुछ ही दिन पहले आई थी अमेरिका उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान में तालिबान के साथ और प्रभावी ढंग से निपटना चाहता है, पाकिस्तान की ज़मीन पर कदम रखे बिना. तालिबान के नेताओं पर रॉकेट हमलों की शुरुआत हो ही चुकी है.
हालांकि अमेरिका ने कथित उदारवादी तालिबान के साथ बातचीत का भी प्रस्ताव रखा है लेकिन वो तब जब तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ाई में अमेरिका की स्थिति मज़बूत हो. जो बात ओबामा को पूर्व राष्ट्रपति बुश से अलग करती है वो ये है कि ओबामा युद्ध के ज़रिये हल नहीं ढूंढते. ओबामा साफ़ तौर पर बड़ी संख्या में नागरिकों के मारे जाने से चिंतित हैं और वे ये भी जानते हैं कि इसका कारण पूर्व में सिर्फ़ सैनिक कार्रवाई को दी गई प्राथमिकता थी.
ओबामा ने ये साफ़ कर ही दिया है कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान नीति में वे यूरोप से अपेक्षित सहयोग चाहते हैं. उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इस तरह की चुनौतियां शीत युद्ध के बाद नाटो की नई भूमिका का मूलभूत हिस्सा हैं.
ग्राहम लुकास, डॉयचे वेले, दक्षिण एशिया प्रमुख