नेपाल में फिर गृहयुद्ध का खतरा
२० जून २०१२राजशाही की समाप्ति के बाद से नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल है.पार्टियां संविधान बनाने पर सहमत नहीं हो सकीं.ऐसे में माओवादी पार्टी(एकीकृत) का विभाजन नेपाल के राजनीतिक संकट को और बढ़ाएगा.डॉयचे वेले ने किरण बैद्य के साथ उनकी राजनीतिक मंशा और नेपाल के हालात पर खास बातचीत की.
डॉयचे वेले: खबर आ रही है कि आप नेपाल की माओवादी पार्टी (एकीकृत) से अलग हो गए हैं. क्या ये सही है?
किरण: हां ये खबर सही है. पार्टी ने सर्वहारा वर्ग के हित की बात करनी छोड़ दी थी. दस वर्षों तक जो युद्ध चला उसकी उपलब्धियों को भी पार्टी ने भुला दिया. जनता के जो सपने थे उसको छोड़ दिया. इसीलिए हम लोगों ने पार्टी से संबंध विच्छेद करके नई पार्टी का निर्माण किया. हमने देर की है लेकिन ठीक किया है.
डॉयचे वेले: आपकी पार्टी का नाम और चिन्ह क्या होगा?
किरण: मेरी पार्टी का नाम नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी है.
डॉयचे वेले: आपने प्रचंड को जब अलग होने का फैसला सुनाया तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी. उन्होंने आपसे क्या कहा?
किरण: पिछले एक दो दिनों से हमारी बातचीत नहीं हुई है. जब हमारा राष्ट्रीय सम्मेलन चल रहा था तो उन्होने हमें फोन किया था. उन्होंने कहा कि आखिरी बार हम लोग बातचीत करें. लेकिन हमने पूछा कि उसका मकसद क्या है. उन्होंने कहा कि आप विभाजन को स्थगित करिये और पार्टी को टूटने मत दीजिए. हमने कहा कि ऐसा नहीं होगा. जब हम अलग हो जाएंगे इसके बाद हम आपसे बातचीत करेंगे.
डॉयचे वेले: ये बातचीत कब हुई है?
किरण: राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन ही बात हुई है.
डॉयचे वेले: नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई से भी क्या आपकी बात हुई. वह भी एकीकृत माओवादी पार्टी के नेता हैं. उन्होंने क्या कहा आपसे?
किरण: बाबूराम से दो चार दिन पहले ही मुलाकात हुई थी. अभी तो वह ब्राजील की तरफ गए हैं. उनकी कोई खास प्रतिक्रिया नहीं थी. उनकी सरकार बचाने की बात है. लाइन की बात करें तो उनका राष्ट्रीय चिंतन ज्यादा है.
डॉयचे वेले: क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आपके इस कदम से नेपाल का संकट और गहरा हो जाएगा. नेपाल की जनता ने जिस पार्टी को सबसे ज्यादा वोट दिए थे उसमें भी विभाजन हो गया?
किरण: संकट तो है ही. कार्यपालिका नहीं है. व्यवस्थापिका नहीं है. जो बड़ी पार्टी थी उससे भी हम लोगों ने संबंध विच्छेद कर लिया. इस संकट को हम जनता के पक्ष में इस्तेमाल करेंगे. ये हमारा संकट नहीं है. ये संकट पुरानी संसदीय व्यवस्था का है. इस संकट के बीच से ही क्रांति की तैयारी करना है. हम इसी दिशा में सोचेंगे. इस संकट को हम क्रांति की दिशा में सशक्त ढंग से बदलने की कोशिश करेंगे.
डॉयचे वेले: आप क्रांति की बात कर रहे हैं. स्पष्ट कीजिए. क्या आपका मतलब सशस्त्र संघर्ष से है?
किरण: हम परिस्थितियों का मूल्यांकन करेंगे और फिर कार्यदिशा तय करेंगे. जन विद्रोह की तैयारी की दिशा में हम जाएंगे. नेपाल सामंती समाज था फिर अर्ध उपनिवेश से होते हुए नव उपनिवेश तक पहुंच गया है. इसीलिए हमें नई जनक्रांति करनी है.
डॉयचे वेले: आप पार्टी बना चुके हैं. खुलेआम कह रहे हैं कि 'जनयुद्ध' में जाएंगे. प्रचंड के गुट और दूसरी पार्टियों का भी आधार है. क्या इससे नेपाल में गृहयुद्ध का खतरा नहीं होगा?
किरण: राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का विश्लेषण करके हम कोई कदम उठाएंगे. हम जनयुद्ध में कैसे जाएंगे, यह उसी के आधार पर तय होगा. लेकिन बात ये है कि रूपांतरण और बदलाव के लिए सब कुछ करना होगा.
डॉयचे वेले: नवंबर में जो संविधान सभा के चुनाव होने वाले हैं उसमें आप हिस्सा लेंगे?
किरण: नवंबर में जो चुनाव होंगे उसमें हम हिस्सा नहीं लेगें. आखिरी रूप से क्या करेंगे ये तो हम उसी वक्त सोचेंगे लेकिन फिलहाल हम इसमें हिस्सा नहीं लेंगे. वैसे भी नवंबर में जो चुनाव हो रहे हैं वो मुश्किल हैं. जो दूसरी पार्टियां हैं वो भी इसमें हिस्सा नहीं लेंगी. ये लोग तो उसी संविधान सभा की पुर्नस्थापना की बात कर रहे हैं. कुछ लोग चुनाव की भी बात कर रहे हैं. लेकिन हमने नारा दिया है कि इससे समस्या का समाधान नहीं होगा. उसके लिए सबको मिलकर गोलमेज सभा करनी चाहिए. संविधान सभा देश का राजनीतिक विकास नहीं है.
डॉयचे वेले: नेपाल के संकट के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं?
किरण: इस संकट के लिए तो जो बड़े दल के शीर्ष नेता हैं वही जिम्मेदार हैं. सरकार जिम्मेदार हैं. जो लोग सरकार और संविधान सभा के अध्यक्ष बने बैठे हैं वो जिममेदार हैं. जिनके हाथ में सत्ता थी और जिन पर संविधान सभा के माध्यम से संविधान बनाने की जिम्मेदारी थी वही असफल हो गए. और दूसरी बात ये कि ये संसदीय व्यवस्था की असफलता है.
डॉयचे वेले: अगर आप संसदीय व्यवस्था को खारिज कर रहे हैं तो आपके पास दूसरा विकल्प क्या है?
किरण: नेपाल में तो हम संसदीय व्यवस्था को खारिज कर रहे हैं. हम नेपाल में जनवादी गणतंत्र चाहते हैं. इसके बाद समाजवाद और साम्यवाद में जाना है. इस संसदीय व्यवस्था को हम स्वीकार नहीं करते.
डॉयचे वेले: भारत की भूमिका को कैसे देखते हैं?
किरण: भारत की भूमिका सकारात्मक नहीं है. नेपाल एक नव उपनिवेशिक देश है. हमारा विश्लेषण यही है कि भारत का शासक वर्ग नेपाल के शासक वर्ग के साथ मिलकर नेपाली जनता का शोषण कर रहा है. भारत की भूमिका नेपाल में हस्तक्षेप करने वाली है.
डॉयचे वेले: नेपाल की माओवादी पार्टी (एकीकृत) के नेताओं पर दबी जुबान में भ्रष्टाचार के भी आरोप लगाए जाते हैं. आपका क्या कहना है इस बारे में?
किरण: इसके बारे में हम ज्यादा बातचीत नहीं करना चाहेंगे. लेकिन जो आर्थिक पारदर्शिता होनी चाहिए वह नहीं है.
डॉयचे वेले: अब आपका अगला कदम क्या होगा?
किरण: केन्द्रीय समिति की बैठक होगी. पार्टी और राष्ट्रीय स्वाधीनता के पक्ष में हम अभियान चलाएंगे. आंदोलन की तैयीरी में हम जाएंगे. संगठन और पार्टी में अनुशासन की स्थापना करेंगे.
डॉयचे वेले: प्रधानमंत्री के तौर पर बाबूराम भट्टराई के कार्यकाल को आप कैसे आंकते हैं?
किरण: देखिए उनका जो वादा था कि जनमुक्ति सेना का सम्मानजनक ढंग से समायोजन करेंगे वो वह नहीं कर सके. जनता के पक्ष में संविधान निर्माण की बात कही थी उन्होंने, उसमें भी वो असफल हैं. नेपाली जनता के पक्ष में जो राजनीति करनी है, उसमें वो सफल नहीं है.
इंटरव्यू: विश्वदीपक
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी