पति भी और ट्रेनर भी
१७ जून २०११चीन की ली ना इस बार का फ्रेंच ओपन जीत कर ग्रैंड स्लैम जीतने वाली पहली एशियाई खिलाड़ी बन गई. लम्बे समय तक ली ना के पति ने उनके कोच के रूप में उनका साथ निभाया. लेकिन चैम्पियनशिप से पहले ली ना ने अपने पति को छोड़ नया कोच खोज लिया. अपनी जीत का श्रेय वह अपने नये कोच को देती हैं.
इसके विपरीत भारत में खिलाड़ी पति को ही कोच के रूप में देखना पसंद करते हैं. भारत की डिस्कस थ्रोयर कृष्णा पूनिया भी ऐसे ही खिलाड़ियों में से एक हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए कृष्णा ने कहा, " ली ना के पास अपने कारण होंगे, लेकिन मैं अपने करियर का श्रेय अपने पति को ही दूंगी. बेटे के जन्म के बाद मैंने एथलेटिक्स को छोड़ ही दिया था. उन्होंने मुझे समझाया और मुझे प्रोत्साहित किया."
हम साथ साथ हैं
कृष्णा अपने पति के साथ से बेहद खुश हैं, "मेरे पास एक ऐसा कोच है जो चौबीसों घंटे मेरे साथ रहता है. इस से अच्छी क्या बात हो सकती है." जब कृष्णा से पूछा गया कि पति के कोच होने से उन्हें क्या फायदा होता है तो उन्होंने कहा, "भारत में योग्य कोच की बहुत कमी है. मेरे पति होने के नाते वह मेरी आदतें जानते हैं और मुझे हमेशा बता सकते हैं कि मैं क्या गलत कर रही हूं. इसमें यह भी अच्छा है कि मुझे उनसे दूर नहीं रहना पड़ता, ज्यादातर वह मेरे साथ ही होते हैं."
कृष्णा के पति वीरेंदर सिंह पूनिया भी इस बात से सहमत हैं. उनका मानना है कि कम से कम भारत में यह बहुत ही स्वाभाविक सी बात है, "मैं चार और लड़कियों को ट्रेन करता हूं लेकिन वह मुझसे इतना खुल कर बात नहीं कर पाती. यदि आपका पति ही आपका कोच भी हो तो आप उस से हर बात कह पाते हैं. वह आपको औरों के मुकाबले ज्यादा अच्छी तरह समझ सकता है."
वीरेंद्र दस साल से कोच के रूप में काम कर रहे हैं. भारत में इतने तजुर्बेकार कोच की काफी कमी है. ऐसे में पति का ही कोच के रूप में होने का वह एक और फायदा बताते हैं, "भारत में एथलेटिक्स में पैसा बहुत कम है. ऐसे में आप एक पर्सनल कोच के बारे में नहीं सोच सकते." वीरेंद्र इस साल के बेस्ट कोच के पुरस्कार की दौड़ में भी हैं.
भारत में कृष्णा ऐसी अकेली एथलीट नहीं हैं. लॉन्ग जम्पर अंजू बॉबी जॉर्ज के कोच भी उनके पति रॉबर्ट हैं. 2003 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतने के बाद अब वह अपने पति के साथ मिल कर अगले साल लंदन में होने वाले ओलंपिक्स खेलों की तैयारी कर रही हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया
संपादन: एस गौड़