पत्रकारिता म्यूजियम में दर्ज हुए शहजाद
१३ मई २०१२सैयद सलीम शहजाद तालिबान और अल कायदा की रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते थे और उन्हें इन गुटों की देश की खुफिया सेवा और सेना से उनके संबंधों की भी जानकारी थी. 29 मई 2011 को एशिया टाइम्स ऑनलाइन के लिए एक रिपोर्ट लिखने के बाद वह लापता हो गए. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में अल कायदा के बड़े हमले के तार पाकिस्तान की नौसेना के हवाई अड्डे और अधिकारियों से जोड़े. अगले दिन उनका शव मिला. परीक्षण से पता चला कि बुरी तरह टॉर्चर करने से उनकी मौत हो गई.
सोमवार को शहजाद और 71 अन्य मारे गए पाकिस्तानी पत्रकारों के नाम वॉशिंगटन के पत्रकार म्यूजियम में दर्ज हो जाएंगे. न्यूजियम में एक खास दीवार पर उनके नाम लिखे गए हैं और ऑनलाइन डाटाबेस में भी इन्हें शामिल किया गया है. दो सतहों वाली ग्लास पैनल पर कुल 2,156 नाम लिखे गए हैं.
इटली की न्यूज एजेंसी एड्न्क्रोनोस इंटरनेशनल और थाइलैंड के एशिया टाइम्स ऑनलाइन के लिए काम करने वाले शहजाद की कहानी दिखाती है कि सच्ची कहानी सामने लाने के लिए अकसर पत्रकारों को कितनी जोखिम उठानी पड़ती है. उनके भाई ने लिखा है, "सच कहने की वजह से मेरे भाई की मौत हो गई. उन्होंने बहुत बड़ी कीमत चुकाई लेकिन हमेशा सच कहा."
शहजाद पाकिस्तान में पिछले साल मारे गए सात पत्रकारों में हैं. इस संख्या के साथ पाकिस्तान इराक के साथ ऐसा देश बन गया है जो फोटोग्राफरों और पत्रकारों के लिए खतरनाक जगह है. इसके बाद लीबिया और चिली पत्रकारों के लिए खतरनाक हैं, जहां पिछले साल पांच पांच पत्रकार मारे गए. मेक्सिको और सोमालिया में चार चार पत्रकार मारे गए.
तीन बच्चों के पिता, 40 साल के शहजाद को इस्लामी कट्टरपंथियों और आतंकियों से इंटरव्यू के लिए जाना जाता था. अफगानिस्तान और इराक युद्ध के दौरान रिपोर्टिंग करने वाले अमेरिकी पत्रकार डेक्स्टर फिलकिंस का कहना था कि उनकी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और अन्य एजेंसियों में भी अच्छी पहचान थी.
मारे जाने से नौ दिन पहले, आईएसआई की पूछताछ के बाद फिलकिंस से शहजाद ने अपने मारे जाने की आशंका जताई थी. आईएसआई ने उनसे वह रिपोर्ट वापिस लेने को कहा था जिसमें उन्होंने ओसामा बिन लादेन के ठिकाने के बारे में लिखा था. लेकिन उन्होंने रिपोर्ट वापस लेने से इनकार कर दिया. 2 मई 2011 को बिन लादेन की मौत के बाद नाराज पाकिस्तान में शहजाद की मौत से गुस्सा फैल गया. मानवाधिकार के लिए लड़ने वाले गुटों और पत्रकारों ने आईएसआई की ओर अंगुली उठाई.
आईएसआई ने शहजाद की मौत में हाथ होने से साफ इनकार किया. पाकिस्तान सरकार ने उनकी मौत का सुराग लगाने के लिए एक आयोग भी बनाया लेकिन जनवरी में आई रिपोर्ट में कमीशन किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा पाया.
शहजाद की किताब इन साइड अल कायदा एंड तालिबान उनकी मौत से कुछ ही दिन पहले आई थी. किताब की समीक्षा में नीर रोसन शहजाद को सबसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान मामलों में सबसे निडर और विश्वसनीय पत्रकार बताते हैं.
एएम/एजेए (डीपीए)