परमाणु हथियारों को ढोने की आधुनिक तकनीक कितनी सुरक्षित है?
१५ अक्टूबर २०१९अमेरिकी उर्जा मंत्रालय के राष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा प्रशासन ने बताया था कि बम के हिस्सों को एक धातु के बर्तन में रख कर लकड़ी के बक्से में पैक किया गया था. इसके बाद इसे ट्रक की स्टील प्लेट पर तिरपाल के नीचे रखा गया था. 75 साल पुरानी धुंधली सी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर में दिखा कि स्पेशल एजेंट और हथियार बंद सेना पुलिस के जवान इस गाड़ी के साथ चल रहे थे.
पिछले साल मंत्रालय ने बताया, "परमाणु सामग्री का परिवहन उसके बाद से बहुत बदल गया है." आज रेडियोधर्मी सामान को स्टील की दोहरी परत वाले कंटेनरों में रख कर खास किस्म के ट्रेलरों के अंदर रखा जाता है. इन सब का कई स्तरों पर परीक्षण होता है. साथ ही रियल टाइम ऐप और जीपीएस की मदद से इन पर लगातार नजर रखी जाती है. हालांकि इन सबके बावजूद यह सवाल कायम है कि क्या यह तरीका पूरी तरह से सुरक्षित है? जानकार मानते हैं कि सुरक्षा कितनी पक्की है, इसका जवाब इस पर भी निर्भर करता है कि सवाल पूछा किससे गया है.
परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल में सबसे बड़ा खतरा उसके कचरे का है. अमेरिका के सबसे खतरनाक रेडियोधर्मी कचरे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की दशकों पुरानी योजना को ट्रंप प्रशासन ने बदल दिया है. यह कचरा दूरदराज के नेवाडा की मरुभूमि में ले जाया जाना है और इस फैसले के बाद से देश की अदालतों और संसद में बहस छिड़ गई है. बार बार यही सवाल पूछा जा रहा है कि कई दशकों तक बम और बिजली बनाने के बाद बचे कचरे को क्या सुरक्षित तरीके से निपटाया जा रहा है.
नेवाडा ने उर्जा मंत्रालय के खिलाफ एक याचिका दायर कर कहा है कि हथियार बनाने लायक प्लूटोनियम को चुपके चुपके यहां भेजा जा रहा है. इस मामले की सुनवाई कर रही डिस्ट्रिक्ट जज मिरांडा डू का कहना है, "मुझे ऐसा लगता है कि सरकार की दलील के सार का एक हिस्सा यह कहता है, 'हम यह काम लंबे समय से कर रहे हैं. हम जानते हैं कि हम क्या कर रहे हैं और आपको हम पर भरोसा करना होगा.'''
सरकार का कहना है कि सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है. अमेरिका के कारोबारी परमाणु बिजली उद्योग का कहना है कि पिछले 35 सालों में परमाणु बिजली घरों से खत्म हो चुके परमाणु ईंधन के 1300 से ज्यादा शिपमेंट सुरक्षित तरीके से भेजे जा चुके हैं. इनमें से चार हादसे का शिकार हुए लेकिन इनसे रेडियोधर्मी पदार्थ का कोई रिसाव नहीं हुआ, ना ही विकिरण के संपर्क में आने की वजह से किसी की जान गई.
हालांकि नेवाडा की न्यूक्लियर प्रोजेक्ट एजेंसी के प्रमुख रॉबर्ट हालस्टीड का कहना है कि खतरा कई बार छू कर निकला है. 1971 में एक ट्रक हादसे में ड्राइवर की मौत हो गई थी और परमाणु ईंधन से भरा एक पीपा टेनेसे की एक खाई में जा गिरा. कंटेनर को नुकसान पहुंचा लेकिन रेडियोधर्मी पदार्थ का रिसाव नहीं हुआ. हाल ही में टेनेसे के एक ठेकेदार ने बताया कि निम्न स्तर के परमाणु कचरे को खराब उपकरण या फिर मजदूरों के कपड़े के नाम से लेबल लगा कर नेवाडा में छह साल से भेजा जा रहा था. वह भी बिना पर्याप्त सुरक्षा उपाय के.
शायद सुरक्षा को लेकर असहमति का सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि जिसे "कठोर परीक्षण" कहा जाता है, क्या वह सचमुच पर्याप्त है. ऐसा परीक्षण करना खतरनाक हैं जिनमें विस्फोट, आग या फिर खर्च हो चुके परमाणु ईंधन से भरा सचमुच का पीपा शामिल हो. इसलिए इस तरह के परीक्षण अमेरिका में कभी नहीं होते. इसके अलावा यह भी साफ नहीं होता कि किन परिस्थितियों में पैकेट गिर सकता है.
अमेरिका में निपटारे का इंतजार कर रहा उच्च स्तर का परमाणु कचरा इतना अधिक है कि उससे एक फुटबॉल के मैदान को 20 मीटर गहरा खोद कर भरा जा सकता है. ऐसे राज्य कम ही हैं जो इस कचरे को अपनी सीमा में रखने को तैयार हैं. इसी समस्या के समाधान के लिए ट्रंप प्रशासन ने देश के सबसे खतरनाक परमाणु कचरे को लास वेगस से 145 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम के यूका माउंटेन न्यूक्लियर वेस्ट रिपोजिटरी में रखने का फैसला किया है. प्रस्ताव के मुताबिक एक प्राचीन ज्वालामुखीय पर्वतश्रेणी में सुरंग खोद कर करीब 77 हजार टन उच्चस्तरीय परमाणु कचरा रखा जा सकता है. हालांकि नेवाडा यह नहीं चाहता और वह इसका विरोध कर रहा है.
अमेरिकी नेता इस खींचतान में जुटे हैं कि परमाणु करचरे को कहां फेंका जाए. दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि उसने कंटेनरों की ढुलाई और इसमें सामान रखने के तौर तरीकों को बेहतर बनाया है. परमाणु कचरे का पुराना कंटेनर इकहरी दीवार वाला बैरल था जिसके ऊपरी हिस्से को सूप के कैन की तरह सील कर दिया जाता था. अब कंटरेनरों की अलग अलग वेल्डिंग होती है और उनकी दीवार दोहरी पहरत वाली होती है. बाहरी दीवार तापमान को नियंत्रित करती है और भीतरी दीवार दबाव को. इसमें एक इंडिकेटर भी होता है. इसके अलावा नए संचार तंत्र का भी इस्तेमाल किया जाता है ताकि शिपमेंट और उसके हथियारबंद सुरक्षा गार्डों पर नजर रखी जा सके.
जो लोग परमाणु सामग्री को संभाल सकते हैं, उनकी संख्या भी बीते सालों में नाटकीय रूप से बढ़ी है. 11 सितंबर 2011 के बाद से इन लोगों की पृष्ठभूमि की लगातार जांच की जाती है. इसके अलावा लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रिया भी कठिन है. उन ठेकेदारों को भी लाइसेंस दिया जाता है ताकि उनके संसाधनों, उपकणों और तकनीक के बारे में ज्यादा जानाकारी रहे.
बड़ा परिवर्तन यह आया है कि अब आशंकित हादसों से खतरों का विश्लेषण करने की तकनीक अच्छी हो गई. एक इस्तेमाल हो चुके ईंधन के पीपे को सख्त और चपटे सतह पर 30 फुट की ऊंचाई से गिरने के बाद भी सुरक्षित रहना होता है. इसके अलावा उनके अंदर 802 डिग्री सेल्सियस तक गर्म आग को 30 मिनट तक सहने की क्षमता होना चाहिए, उन्हें लोहे की छड़ पर एक मीटर की उंचाई से गिरने, 650 फीट गहरे पानी में डूबने पर भी कोई असर नहीं होना चाहिए. हालांकि जिन पीपों के अंदर यह ईंधन भरा होता है उन्हें इतने कठिन परीक्षण से नहीं गुजारा जाता.
3डी कंप्यूटर मॉडलों का इस्तेमाल कर 2014 में न्यूक्लियर रेगुलेटरी कमिशन इस नतीजे पर पहुंचा कि अगर कोई फ्यूल टैंकर हादसे का शिकार हो जाए तो भी रेडियोधर्मी पदार्थ का विकिरण नहीं होगा. हादसे की जगह की साफ सफाई करने वाले आपातकालीन दल के लोग विकिरण की चपेट में आ सकते हैं लेकिन कोई बड़ा खतरा नहीं होगा. अधिकारियों का मानना है कि कचरे की ढुलाई के लिए खास तरीके के रेल डिब्बे भी बनाए जा सकते हैं जिसमें हादसों का कोई खतरा नहीं होगा. हालांकि जिन रास्तों से यह ट्रेन गुजरेगी फिर वहां के लोगों को मनाना मुश्किल होगा.
अमेरिका के 11 राज्यों के गवर्नर और कनाडा के तीन प्रांतों के नेताओं ने पूर्ण परीक्षण की वकालत की है. पिछले साल उन्होंने कहा कि जिन 17 तरीके के पीपों का इस्तेमाल कचरे की ढुलाई में होता है उनमें से किसी का इस लिहाज से परीक्षण नहीं हुआ कि उनकी नाकामी की स्थिति में क्या होगा. पूर्ण परीक्षण में खर्चा बहुत होगा. हाल्सटीड की 2012 की रिपोर्ट के आकलन के मुताबिक परमाणु कचरा ले जाने वाले ट्रक कंटेनर के परीक्षण पर करीब 90 लाख डॉलर का खर्च आएगा जबकि रेल कंटेनर पर 2 करोड़ डॉलर का. रेल कंटेनरों को ऊपर उठा कर गिराने की सुविधा बनाने में ही 1.5 करोड़ डॉलर का खर्च आएगा.
एनआर/एके(एपी)
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