पाकिस्तान में अल कायदा का बड़ा नेता गिरफ्तार
५ सितम्बर २०११पाकिस्तानी सेना के मुताबिक ये गिरफ्तारी अफगानिस्तान की सीमा पर हुई. गिरफ्तार आतंकवादियों में यूनुस अल मौरितानी भी है. कहा जा रहा है कि ओसामा बिन लादेन ने यूनुस को अमेरिकी आर्थिक हितों को निशाना बनाने का काम सौंपा था. इसी साल मई में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद अल कायदा के लिए ये गिरफ्तारी एक बड़ा झटका है. बिन लादेन की मौत के बाद जिन लोगों के हाथ में इस आतंकवादी संगठन का नेतृत्व है, उसमें दूसरे सबसे बड़े कमांडर अतिया अब्द अल रहमान को भी पिछले महीने सीआईए के मिसाइल हमले में मार गिराया गया.
सेना की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि गिरफ्तारी दक्षिण पश्चिमी शहर क्वेटा से हुई है हालांकि इन्हें कब गिरफ्तार किया गया इसके बारे में कुछ नहीं बताया गया. इन तीनों लोगों को जिंदा गिरफ्तार करने का मतलब है कि इनसे खुफिया एजेंसियों को कुछ अहम जानकारी मिलने की उम्मीद है.
सेना के मुताबिक अल मौरितानी प्रमुख रूप से अल कायदा के अंतरराष्ट्रीय कार्रवाइयों की जिम्मेदारी संभालता था जो इसे सीधे ओसामा बिन लादेन की तरफ से सौंपा जाता था. इन कार्रवाइयों में प्रमुख रूप से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में आर्थिक हितों के ठिकाने को निशाना बनाना शामिल है. अल मौरितानी अमेरिका आर्थिक हितों को निशाना बनाने की साजिश रच रहा था. इसके लिए विस्फोटकों से भरे स्पीड बोट का इस्तेमाल कर तेल के पाइपलाइन, बिजली पैदा करने वाले बांध, और तेल के टैंकरों पर हमला करने की तैयारी चल रही थी. मौरितानी के साथ गिरफ्तार दूसरे दो लोगों के नाम अब्दुल गफ्फार अल शामी और मेस्सारा अल शामी हैं. इस मामले में फिलहाल अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
सीआईए-आईएसआई के रिश्तों में सुधार
सेना ने कहा है कि इस ऑपरेशन की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने तकनीकी मदद दी जिनके साथ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के पुराने और गहरे संबंध हैं. दोनों देशों की खुफिया एजेंसियां अपने देश की सुरक्षा के लिए मिल कर काम करना जारी रखेंगी. 2001 में 11 सितंबर के हमलों के बाद से ही पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी सीआई के साथ अल कायदा के संदिग्धों को पकड़ने में सहयोग कर रही है इनमें से ज्यादातर को अमेरिका के हवाले कर दिया गया. हालांकि हाल के कुछ सालों में इन गिरफ्तारियों में कमी आई है.
माना जाता है कि अल कायदा के कई बड़े आतंकवादी अभी भी पाकिस्तान में ही छिपे हैं. उधर अमेरिका के लिए इन आतंकवादियों के नेटवर्क को तोड़ने में पाकिस्तान की मदद लेना 2001 से ही सबसे जरूरी कामों में शुमार रहा है. इन सबके बावजूद ऐसी आशंकाएं मजबूत होती रही हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद कर रहा है. पाकिस्तान की राजधानी के करीब और बड़े सैनिक अड्डे वाले शहर एबटाबाद से ओसामा बिन लादेन के छिपे रहने की घटना ने पाकिस्तान की मंशा पर उठने वाले सवालों को और तीखा कर दिया.
ओसामा बिन लादेन को मारने के अमेरिकी ऑपरेशन के बाद दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों में ठन गई थी. अमेरिका के मन में ऐसी आशंका उठने लगी थी कि आईएसआई उसके साथ दोहरा खेल खेल रही है. पाकिस्तान को भी अमेरिकी की बिना बताए सीधी कार्रवाई बुरी लगी और उसने सहयोग करना बंद कर दिया. इतना ही नहीं 100 से ज्यादा अमेरिकी प्रशिक्षकों को देश छोड़ने के लिए कह दिया गया जो पाकिस्तानी सेना को आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रशिक्षण दे रहे थे.
यह गिरफ्तारी इस बात के संकेत दे रही है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और सीआईए के रिश्ते सुधार की राह पर हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः ए जमाल