पाकिस्तान में पीएम को अवमानना से छूट दिलाने का कानून
१० जुलाई २०१२पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ को यह बताने के लिए कि वो राष्ट्रपति के खिलाफ मामलों भ्रष्टाचार के मामलों को दोबारा खोलेंगे कि नहीं, गुरुवार तक का समय दिया है. सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि प्रधानमंत्री स्विस अधिकारियों को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ करोड़ों डॉलर के भ्रष्टाचार के मामले की फाइल दोबारा खोलने के लिए कहें.
सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में कार्रवाई न करने पर यूसुफ रजा गिलानी को अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया और पिछले महीने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य करार दिया. फैसले के बाद गिलानी को कुर्सी छोड़नी पड़ी.
पाकिस्तानी संसद के निचले सदन में सोमवार की रात पास हुए इस बिल में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रियों को अदालत की अवमानना से छूट दी गई है. इस बिल के कानून बन जाने के बाद सरकार में रहते हुए अपना कर्तव्य पूरा करने में किए काम के लिए उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी नहीं माना जाएगा. अभी तो इसे सिर्फ संसद के निचले सदन में पास किया गया है. अब इसे ऊपरी सदन से पास कराना होगा. इसके बाद राष्ट्रपति के दस्तखत होने पर यह कानून बन जाएगा.
लेकिन इस प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट की बाधा भी पार करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने अगर कानून को खारिज कर दिया तो नेताओं का सारी मंशा धरी रह जाएगी.
पाकिस्तान की प्रमुख विपक्षी पार्टी पाकिस्तानी मुस्लिम लीग (पीएमएलएन) ने इसका विरोध किया है. बिल पास होने के दौरान पार्टी के सांसदों ने संसद की कार्यवाही का बहिष्कार किया. प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ ने कानून का समर्थन करते हुए कहा है कि यह किसी के लिए उसके काम में बाधा नहीं बनेगा. संसद में कानून मंत्री फारुक एच नायक ने बिल पेश किया. बिल पेश करते हुए नायक ने कहा अदालत की अवमानना से जुड़े कानून में मौजूद भ्रांतियों को दूर कर दिया गया है. इसके साथ ही नायक ने इस बात पर जोर दिया कि कानून जल्दबाजी में तैयार नहीं किया गया है.
सूचना मंत्री कमर जमान कायरा ने कहा कि सरकार का यह कदम मौजूदा अवमानना कानून की अस्पष्टता को दूर कर देगा. संसद भवन के बाहर पत्रकारों से बातचीत में कायरा ने कहा, "न्यायपालिका की शक्ति को कम नहीं किया गया है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों से जुड़ी भ्रांतियों को दूर किया गया है. सुप्रीम कोर्ट के पास अब भी बहुत अधिकार हैं."
राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला 1990 के दशक का है. तब जरदारी और उनकी पत्नी और पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के नाम स्विस बैंक के खाते में 1.2 करोड़ डॉलर जमा होने की बात सामने आई थी. कथित रूप से यह पैसा कुछ कंपनियों ने कस्टम की जांच के ठेके लेने के लिए घूस के रूप में दिये थे. 2008 में जरदारी के राष्ट्रपति बनने के बाद स्विस बैंक ने यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया. पाकिस्तान सरकार ने जोर दे कर कहा कि राष्ट्र के प्रमुख होने के नाते जरदारी के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने उस राजनीतिक विशेषाधिकार को खत्म कर दिया जिसने राष्ट्रपति और दूसरे राजनेताओं के खिलाफ जांच बंद करा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद मुकदमों को दोबारा खोलने का आदेश दिया.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)