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'पाकिस्तान हमें चुने या आतंकवाद को'

२५ सितम्बर २०११

अमेरिका में पाकिस्तान के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा है. एक अमेरिकी सांसद का कहना है कि पाकिस्तान को या तो अब अमेरिका की दोस्ती चुननी होगी या आतंकवादियों का साथ. बढ़ते आपसी तनाव ने पाकिस्तान की मुश्किलें और बढ़ाईं.

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तस्वीर: AP

अमेरिकी संसद की ताकतवर आर्म्ड सर्विसेज कमिटी के सदस्य सेन लिंडेस ग्राहम ने दो टूक शब्दों में कहा, "हमें पाकिस्तान को नोटिस देने की जरूरत है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी को अपनी रणनीति के लिए आतंकवाद की मदद करने के विचार को खत्म करना होगा.''

''इससे अफगानिस्तान में अस्थिरता फैल रही है. वे अमेरिकी फौजियों को मार रहे हैं. अगर वे राष्ट्रीय रणनीति तहत आतंकवाद को बढ़ावा देते रहे तो हमें भी सारे विकल्प सामने रखने होंगे, अपनी सेना की रक्षा को लेकर भी."

पाकिस्तान में हड़कंप

इससे पहले अमेरिका के बढ़ते गुस्से से पैदा हुई स्थिति को लेकर पाकिस्तान के नेताओं और सैन्य अधिकारियों को बैठकें करनी पड़ी. प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने विपक्ष के नेता और दो बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ समेत कई प्रभावशाली नेताओं को बुलाया. अमेरिका के आरोपों के बाद सुरक्षा की स्थिति को लेकर गिलानी ने यह बैठक बुलाई.

अफरातफरी का आलम यह रहा कि पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी ने भी सेना के उच्च अधिकारियों के साथ बैठक की. टॉप कमांडरों के साथ हुई इस बैठक को 'स्पेशल मीटिंग' नाम दिया गया. पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर अतहर अब्बास ने बयान जारी कर कहा कि 'देश की सुरक्षा की स्थिति की समीक्षा' की जा रही है.

नाराजगी और बात भी

रविवार को पाकिस्तान की सेना ने अमेरिका के आरोपों पर नाराजगी भी जताई. अमेरिकी सेना के सेंट्रल कमांड के अधिकारी जेम्स मैटिस से मुलाकात के बाद पाकिस्तानी सेना के जॉइंट स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल खालिद शमीम ने कहा, "अमेरिका की तरफ से आ रहे नकारात्मक बयानों पर चिंता जताई गई. इस बात पर जोर दिया गया है कि जटिल परिस्थितियों की वजह से संबंधों में खींझ पैदा हो रही है."

पाक सेना के बयान में कहा गया है, "पाकिस्तान की सेना इलाके में शांति बहाल करने के लिए वचनबद्ध है, ये आपसी विश्वास और सहयोग के जरिए ही मुमकिन है."

वहीं अमेरिकी दूतावास ने सैन्य अधिकारियों की मुलाकात को संतोषजनक बताया है, "जनरलों ने अमेरिका पाक रिश्तों में आ रही वर्तमान चुनौतियों पर स्पष्ट विचार विमर्श किया."

बीते हफ्ते अमेरिकी सेना के प्रमुख एडमिरल माइक मुलेन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी पर सीधा वार किया. मुलेन ने आरोप लगाया कि आईएसआई के आतंकवादी हक्कानी गुट से सीधे संबंध हैं. अमेरिकी कमांडर ने बेबाक ढंग से कहा कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई हक्कानी गुट की मदद से पड़ोसी देश में अस्थिरता फैला रही है. मुलेन का बयान काबुल में अमेरिकी दूतावास पह हुए हमले के बाद आया. हमले में नौ हमलावरों समेत 24 लोग मारे गए. अमेरिकी सैन्य प्रमुख के इस बयान पर पाकिस्तान सरकार ने भी नाराजगी जताई है. प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने बयानों को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया.

शक का आधार

पाकिस्तान ने 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद आधिकारिक रूप से तालिबान से नाता तोड़ने का एलान किया था. लेकिन अब पश्चिमी देशों का यह शक पुख्ता हो रहा है कि आईएसआई अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में रखना चाहती है. आरोप हैं कि अफगानिस्तान से पश्चिमी देशों की फौज के निकलने के बाद आईएसआई वहां अपना नेटवर्क दोबारा खड़ा करना चाहती है. पाकिस्तान अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव से भी चिंतित है.

यही चिंता पाकिस्तान को मुश्किल में डाल रही है. 2011 की शुरुआत से ही अफगानिस्तान में चरमपंथी हमलों में तेजी आई है. तालिबान के साथ शांति वार्ता में कर रहे कई प्रभावशाली नेता मारे जा चुके हैं. इन हत्याओं को लेकर भी शक की सुई पाकिस्तान की ओर घूम रही है.

इसी साल की शुरुआत में पाकिस्तान ने अमेरिका के एक जासूस रेमंड डेविस को गिरफ्तार किया. डेविस की गिरफ्तारी से दोनों देशों के संबंधों में तनाव उपजा. इसके बाद मई में अमेरिकी सेना ने विशेष अभियान कर अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद शहर में मार गिराया. ओसामा बिन लादेन बीते कई सालों से एबटाबाद में रह रहा था. अमेरिका ने पाकिस्तान को ऑपरेशन की भनक तक नहीं लगने दी. बिन लादेन की मौत के बाद ही दोनों देशों के संबंधों को आए दिन नए झटके लग रहे हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: वी कुमार

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