पाकिस्तानी खिलाड़ियों की सजा काफी नहीं
६ फ़रवरी २०११साढ़े चार साल बाद मोहम्मद आसिफ की उम्र 33, सलमान बट की 31 और मोहम्मद आमेर की सिर्फ 23 साल होगी. आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट शुरू करने की उम्र. चूंकि ये तीनों पिछले साल सितंबर से ही सस्पेंड हैं, इसलिए उन्हें बाकी के साढ़े चार साल के बारे में ही सोचना है. सलमान बट पर भले ही 10 साल की पाबंदी लगी हो, पांच साल माफ हो सकते हैं. इसी तरह आसिफ के सात में से दो साल माफी लायक हैं.
भले ही आसिफ 2015 में ओपनिंग बॉलिंग न कर पाएं पर टीम के सदस्य तो रह ही सकते हैं. सलमान बट टैलेंटेड बैट्समैन हैं, उनकी भी गुंजाइश निकल सकती है और आमेर के अब तक के रिकॉर्ड को देखते हुए इस बात में कोई शक नहीं कि वह एक बार फिर पाकिस्तानी कैप पहन लेंगे.
जाहिर है तीनों क्रिकेटर इस सजा के खिलाफ खेलों की अंतरराष्ट्रीय संस्था में अपील करेंगे और अगर सजा थोड़ी भी नरम हुई, तो ये अगला वर्ल्ड कप भी खेल सकते हैं.
क्रिकेट में मैच फिक्सिंग की जितनी बात होती है, उसके आधार पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि आग के बगैर धुआं नहीं उठता. पकड़ा कोई नहीं जाता. अगर आरोप लगता है तो सबूतों और गवाहों की कमी पड़ जाती है.
इस बार मामला पक्का था. सबूत भी थे. गवाह भी, पुलिस केस भी और बार बार बयान बदलने वाले आरोपी क्रिकेट खिलाड़ी भी. फिर भी आईसीसी ने रहमदिली बरती.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद का संविधान कहता है कि जिस तरह का जुर्म इन तीनों क्रिकेटरों ने किया है, उसमें पांच साल से लेकर आजीवन पाबंदी और आर्थिक जुर्माना हो सकता है. आईसीसी की भ्रष्टाचार निरोधी ट्रिब्यूनल ने सबसे कम सजा सुनाई.
कहने को कहा जा सकता है कि टेस्ट मैच में तीन नो बॉल से क्या होता है. लेकिन क्रिकेट चाहने वाला जानता है कि यह खेल की मूल भावना के खिलाफ है. गेंदबाज को सामने खड़े बल्लेबाज को आउट करना होता है, बेईमानी करके अपना खजाना नहीं भरना होता है. यह क्रिकेट के साथ धोखा है.
यह धोखा कई बार किया जा चुका है. भारत, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने भी किया है. लेकिन दोषी सिर्फ सलीम मलिक और बासित अली ही साबित हो पाए हैं. वह तो हैंसी क्रोन्ये ने खुद कबूल कर लिया, नहीं तो भारत के दागी खिलाड़ियों ने तो कभी नहीं माना कि उन्होंने क्रिकेट में गुनाह किया है और न ही कभी साबित हो पाया.
ऐसे में अगर पक्के सबूतों के आधार पर तीन खिलाड़ी पकड़े जाते हैं, तो क्या उन्हें ज्यादा से ज्यादा सजा देकर आईसीसी क्रिकेट में फिक्सिंग करने वालों को कड़ा संदेश नहीं दे सकती थी. अभी तो इन खिलाड़ियों के पास अपील का भी मौका है और क्रिकेट के मामले में अकसर देखा गया है कि अपील के बाद सजा कम हो जाती है.
पिछले साल पाकिस्तान के खिलाड़ियों को ही लीजिए. भले ही वह आईसीसी का फैसला नहीं था लेकिन जिन सात क्रिकेटरों को सजा दी गई, उनमें से छह तीन महीने के अंदर राष्ट्रीय टीम में मौजूद थे.
और इन सबके बीच एक पेंच और फंसा है. सलमान बट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमेर के खिलाफ ब्रिटेन में अगले महीने से आपराधिक मुकदमा चलने वाला है. वे अगर ब्रिटिश कानून के तहत दोषी पाए गए, तो उन्हें कई साल के लिए जेल भी जाना पड़ सकता है. हालांकि आईसीसी और स्कॉटलैंड यार्ड एक दूसरे को प्रभावित नहीं कर सकते लेकिन अगर एक ही जुर्म की दो सजा मिले, तो इंसाफ पर सवाल उठते हैं.
क्रिकेट के नजरिये से देखा जाए, तो मोहम्मद आसिफ के साथ कोई खास सहानुभूति नहीं होती क्योंकि अच्छे गेंदबाज होने के बाद भी वह बार बार गलतियां करते हैं और सजा पाते हैं. सलमान बट सलीकेमंद बल्लेबाज हैं लेकिन पाकिस्तान में प्रतिभा की कमी नहीं, उसे दूसरा बट मिल जाएगा. हां, आमेर को लेकर दुख होता है. अद्वितीय कौशल वाला यह गेंदबाज न सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि क्रिकेट के लिए भी शानदार तोहफा था. लेकिन अगर तोहफे के साथ बेईमानी का लेबल लगा हो, यह मंजूर नहीं.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः एन रंजन