पाकिस्तानी तालिबान में बदलाव
७ दिसम्बर २०१२जिद्दी और खतरनाक तालिबान कमांडर हकीमुल्लाह महसूद अलग थलग पड़ता जा रहा है और तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के कई बड़े ऑपरेशन में उसे शामिल नहीं किया जा रहा है. दक्षिण वजीरिस्तान में तैनात पाकिस्तान के एक वरिष्ठ सैनिक अधिकारी का कहना है कि इसके साथ ही हकीमुल्लाह के दिन गिनती के नजर आ रहे हैं.
पाकिस्तानी सेना के सूत्रों का कहना है कि 40 साल का वली उर रहमान पाकिस्तान में तालिबान की कमान संभालने की तैयारी कर रहा है, "रहमान पर तालिबान के अंदर तेजी से एक राय बनती जा रही है." इस सूत्र ने अपनी पहचान बताने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके मुताबिक यह बेहद संवेदनशील मामला है और वह अपना नाम इसके बीच में नहीं लाना चाहते. उन्होंने कहा, "अब एक क्रूर कमांडर की जगह एक दोस्ताना रवैया रखने वाला कमांडर आने वाला है, जिसकी सीधी दुश्मनी पाकिस्तान सरकार के साथ नहीं होगी."
करीब पांच साल पहले पाकिस्तानी तालिबान का जन्म हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य अमेरिका और अमेरिकी समर्थन वाली सरकार का विरोध करना था. पहले इसका मुखिया हकीमुल्लाह का भाई बैतुल्लाह महसूद हुआ करता था, जो 35 साल की उम्र में 2009 में मारा गया.
क्या होगा बदलाव से
इसके बाद उसके छोटे भाई 30 साल के हकीमुल्लाह ने संगठन संभाला और तेजी से हिंसक कार्रवाइयां करने लगा. 2010 में उसकी खास चर्चा हुई, जब अफगानिस्तान में एक हमले में सात सीआईए एजेंट मारे गए.
तालिबान से संपर्क में रहने वाले पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने बताया कि हकीमुल्लाह अब तालिबान को पूरी तरह नहीं चला रहा है. इस मुद्दे पर खुद तालिबान की तरफ से कोई बयान नहीं आया है और उनसे संपर्क किए जाने के बाद भी उनका कोई जवाब नहीं आया.
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि सत्ता का यह परिवर्तन आसानी से न हो पाए. उनका कहना है कि भले ही हकीमुल्लाह की शक्ति कमजोर पड़ी हो लेकिन उसके चाहने वाले अभी भी हैं. अमेरिका ने रहमान या हकीमुल्लाह को धर दबोचने के इरादे से उनकी जानकारी देने वाले को 50 लाख डॉलर इनाम देने का वादा किया है.
क्रूर हकीमुल्लाह
लंबे समय से वजीरिस्तान इलाके में तैनात पाकिस्तान के एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि उनके सूत्रों ने छह महीने पहले ही उन्हें आभास दे दिया था कि हकीमुल्लाह कमजोर पड़ रहा है. उनका कहना है कि खराब सेहत की वजह से भी उसे दिक्कत हो रही है.
खुफिया एजेंटों का दावा है कि हकीमुल्लाह की क्रूरता ने ही उसे अपने दोस्तों का दुश्मन बनाया, "अगर नेता एक नेता की तरह हरकत नहीं करेगा तो उसका समर्थन कम हो जाता है. लंबे समय से हकीमुल्लाह गलत काम कर रहा है और वली उर रहमान एक सोचने समझने वाला आदमी है." हालांकि हकीमुल्लाह बिना थके चौबीसों घंटे काम कर सकता है लेकिन इसके साथ ही वह किसी के भी माथे पर बंदूक भिड़ा कर उसकी जान ले सकता है.
बदलेगा बंदूक की नलियों का रुख
अधिकारियों का कहना है कि हो सकता है कि पाकिस्तान तालिबान अब अपनी बंदूकों का रुख अफगानिस्तान की तरफ कर दे क्योंकि रहमान चाहता है कि विदेशी सेनाओं को निशाना बनाया जाए. तालिबान के कई धड़ों ने पाकस्तानी सेना के साथ दोस्ती करने का फैसला किया है, ताकि वे अमेरिकी सेना के खिलाफ अपनी ताकत मजबूत कर सकें.
तालिबान में इस तरह का बदलाव पश्चिमी सेना के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है, जो अफगानिस्तान से 2014 में हटना चाहती है. पाकिस्तान के कूटनीतिक अधिकारी रियाज मुहम्मद खान का कहना है कि अमेरिका पहले से ही अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क से मुकाबला कर रहा है, जो अफगान पाकिस्तान सीमा पर बेतरतीबी से फैले हैं. "अब अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि 2014 के पहले उसके सामने कोई नया दुश्मन आए." हालांकि इस बदलाव के बाद पाकिस्तान के अंदर आत्मघाती हमलों में कमी आ सकती है. 2007 के बाद ऐसे हमले बढ़े हैं, जिसका सीधा असर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है.
तालिबान का खतरा
अल कायदा के संपर्क में रहने वाले पाकिस्तानी तालिबान ने कई बड़े हमले किए हैं, जिनमें 2009 में पाकिस्तान की सेना पर किया गया हमला भी शामिल है. उन्होंने पाकिस्तानी छात्रा मलाला यूसुफजई को भी निशाना बनाया, जिसका इस वक्त इंग्लैंड में इलाज चल रह है. उन पर इस्लामाबाद के मरियट होटल पर 2008 में हमले का भी आरोप लगा, जिसमें 50 से ज्यादा लोग मारे गए.
महसूद के नेतृत्व में तालिबान ने दूसरे संगठनों के साथ जटिल संबंध बना लिए थे. लेकिन नीति साफ नहीं होने की वजह से तालिबान को सफलता नहीं मिल पा रही थी. हकीमुल्लाह चाहता है कि पाकिस्तान सरकार के खिलाफ भी युद्ध किया जाए, जबकि रहमान जैसे लोग अमेरिका के खिलाफ युद्ध पर ध्यान देना चाहते हैं.
वाना में तैनात एक सेना अधिकारी का दावा है, "रहमान ने तो पाकिस्तान की सरकार के साथ गुपचुप समझौता भी कर लिया है, जबकि हकीमुल्लाह हमेशा उनके खिलाफ हथियार उठाने की बात करता है." तालिबान सूत्रों का कहना है कि दोनों एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं और नेतृत्व में बदलाव खूनी नतीजे दे सकता है.
क्या बंटेगा तालिबान
और इसका एक असर यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान तालिबान दो हिस्सों में बंट जाए. और उसके बाद पाकिस्तान के कुछ और हिस्सों में इसके गढ़ बन जाएं.
इस सूत्र का कहना है, "तालिबान को पता है कि वह जनता से संपर्क के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उन्हें यह भी पता है कि हकीमुल्लाह जैसे नेता के अधीन वह सिर्फ हार सकता है." तालिबान के नियमों के मुताबिक सिर्फ शूरा ही नेतृत्व में बदलाव का एलान कर सकता है.
एजेए/ओएसजे (रॉयटर्स)