पूर्वी यूरोप में बढ़ती बच्चों की तस्करी
१४ जनवरी २०१३कहानी वही है: गरीबी, बेरोजगारी और पढाई के कम अवसर. दुनिया भर में बच्चों की तस्करी करने वाले गिरोह लोगों के इन्हीं हालातों का फायदा उठाते हैं. बच्चों का अपहरण किया जाता है, बच्चियों को देह व्यापार में झोंक दिया जाता है और लड़कों से या तो जबरन मजदूरी कराई जाती है या फिर उनके अंग निकाल कर उन्हें बेचा जाता है. जानकारों का मानना है कि दुनिया भर में लाखों बच्चे इस माफिया का शिकार बन चुके हैं.
बच्चों के लिए काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएन चिल्ड्रंस फंड यूनिसेफ ने जर्मनी की संघीय अपराध एजेंसी के साथ मिल कर बच्चों की तस्करी से जुड़े जो आंकड़े बताए हैं, वे हैरान कर देने वाले हैं. यह माफिया इतना फैला हुआ है कि बच्चों की खरीदफरोख्त में अरबों डॉलर लगे हुए हैं. आंकड़े बताते हैं कि बच्चों की तस्करी का दुनिया भर में 33 अरब डॉलर का व्यापार फैला हुआ है.
बिखरे परिवार
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 18 साल से कम के बच्चे इस से ज्यादा प्रभावित होते हैं. और इनमें दो तिहाई हिस्सा लड़कियों का है. पिछले कुछ सालों में खास तौर से उन देशों में हालात ज्यादा खराब हुए हैं जहां साम्यवादी शासन रहा है. बिखरे परिवारों के बच्चों को बहला फुसला कर ले जाना माफिया के लिए आसान होता है.
यूनिसेफ की जर्मन शाखा की बोर्ड सदस्य आने लुटकेस ने हाल ही में बर्लिन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बताया कि रोमानिया में कई बच्चों के जन्म के रिकॉर्ड तक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड ना होना खतरनाक है क्योंकि "ये बच्चे कभी भी गायब हो सकते हैं और किसी को इनके होने या ना होने के बारे में कोई अंदाजा ही नहीं होगा."
केवल रोमानिया में ही करीब 84 हजार बच्चे माता पिता में से किसी एक के साथ या फिर किसी रिश्तेदार के साथ रहते हैं. अक्सर लोग नौकरियों की तलाश में अपने परिवार को अकेला छोड़ विदेश चले जाते हैं. लुटकेस का कहना है कि ऐसे परिवारों के बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा रहता है. उन्होंने कहा कि रोमानिया जैसे ही हालात पूर्वी यूरोप के कई अन्य देशों के भी हैं. इसमें बुल्गारिया और मोलदोवा भी शामिल हैं.
पीड़ित नहीं देते साथ
जर्मनी में पुलिस प्रमुख योर्ग सियर्के का कहना है कि ये गरीब लोग एक बेहतर जिंदगी की तलाश में रहते हैं और माफिया इसी बात का फायदा उठाता है. इंसानों की तस्करी हो रही है, लड़कियों को देह व्यापार में उतारा जा रहा है, यह सब पुलिस भी जानती है और प्रशासन भी, लेकिन फिर भी समस्या का कोई समाधान होता नहीं दिखता. सियर्के का कहना है कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने में बहुत वक्त लगता है और ऐसे में पीड़ित ही पुलिस का साथ देने से कतराने लगते हैं. पीड़ितों के साथ ना देने के कारण कई बार तो मामला अदालत तक भी नहीं पहुंच पाता.
यूनिसेफ जर्मनी की लुटकेस ने कहा कि आप्रवासियों के मामले में यह और भी ज्यादा गंभीर हो जाता है क्योंकि उन्हें इस बात का डर रहता है कि कहीं उन्हें उनके देश वापस ना भेज दिया जाए. इसलिए अक्सर वे चुप रहने में ही भलाई समझते हैं.
2010 में यूरोपीय संघ में मानव तस्करी के कुल 1250 मामले सामने आए. 2011 में तो अकेले जर्मनी में ही 482 मामलों पर जांच चली. इन मामलों में तस्करी करने वाले अधिकतर लोग जर्मन ही हैं. हालांकि कुछ बुल्गारिया, रोमानिया और तुर्की के भी हैं.
रिपोर्ट: मार्सेल फुएर्स्टनाउ/आईबी
संपादन: महेश झा