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पैसा मार रहा है पैसे को

२३ अगस्त २०१३

भले ही भारत के वित्त मंत्री कहते हों कि गिरते रुपये से चिंता की कोई बात नहीं लेकिन हकीकत में इसकी वजह से करीब छह अरब डॉलर का फर्क पड़ रहा है क्योंकि निवेशकों ने हाथ खींच लिए हैं. सरकार भी योजनाएं टाल रही है.

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तस्वीर: AP

भारत सरकार की छह अरब डॉलर जुटाने की योजना थी. लेकिन हाल की भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति देखते हुए निवेशकों की चिंता बढ़ गई है और कुछ हद तक सरकार ने भी अपने कदम रोक लिए हैं. अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था और मुद्रा मजबूत करने की दिशा में कदम उठाया है और उसका असर सीधे तौर पर भारतीय मुद्रा यानी रुपये पर पड़ रहा है, जो मई से अब तक 17 फीसदी गिर चुका है और एक डॉलर की कीमत 65 रुपये से ज्यादा हो गई है. भारतीय शेयर बाजार भी धड़धड़ा कर गिर रहा है.

अगले तीन महीने की अर्थनीति पर वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साथ बैठक में शामिल एक भारतीय अधिकारी ने बताया, "इस स्थिति में हम बाजार में नहीं जा सकते. हमें कुछ और दिनों का इंतजार करना होगा, ताकि बाजार स्थिर रहे." बेहद संवेदनशील मुद्दे की वजह से इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त रखी.

कई विनिवेश योजना

तीन हफ्ते पहले भारतीय कैबिनेट ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट एनएचपीसी के 11 फीसदी शेयर बेचने का फैसला टाल दिया. उम्मीद थी कि इससे 30 करोड़ डॉलर जमा हो सकते हैं. बिजली विभाग ने आशंका जताई थी कि मौजूदा स्थिति में इसका सही दाम नहीं मिलेगा. फरवरी में चिदंबरम ने एलान किया था कि सरकारी संस्थानों का कुछ हिस्सा निजी हाथों में दिया जाएगा और इससे 40 अरब रुपये (करीब 6.2 अरब डॉलर) जुट सकेंगे.

Indische Rupie Geldschein
रुपये की हालत खराबतस्वीर: Fotolia/ARTEKI

वित्त मंत्रालय के विनिवेश विभाग के प्रमुख अधिकारी रवि माथुर हफ्ते भर के सिंगापुर और मलेशिया दौरे पर थे और निवेशकों को लुभाना चाहते थे. मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी का कहना है, "हमें एक दो महीने का ऐसा वक्त चाहिए, जिससे पैसे जमा हो सकें. कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता है कि बाजार कब तक ऐसा बना रहेगा."

नहीं मिलता लक्ष्य

पुराने अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि पिछले तीन साल से सरकार इस तरह के लक्ष्यों को हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाई है. साल 2012-13 में सरकार ने 300 अरब रुपये जुटाने का इरादा किया था, जबकि सिर्फ 239 अरब जुटे. उससे पहले के साल में 400 अरब रुपये की जगह मात्र 138 अरब आए.

पिछले एक हफ्ते में रुपये का जो हाल हुआ है, उससे लगता है कि विदेशी खरीदारों के लिए भारत में सब कुछ खरीदना आसान होगा लेकिन यह पता नहीं लग पा रहा है कि रुपया कब तक यूं ही नीचे का रुख करता रहेगा. और ऐसे में विदेशी निवेशक हाथ डालना खतरे से खाली नहीं मान रहे हैं.

भारतीय मुद्रा की कमजोरी ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) का आकर्षण भी खत्म कर दिया, जिसके शेयर बेचने की योजना थी. आईओसी जनता के बीच रियायती दर पर ईंधन बेचता है और उसके नुकसान की भरपाई सरकार सब्सिडी देकर करती रही है. लेकिन रुपये के गिरते हाल ने इसके आयात का बिल बहुत बढ़ा दिया है. रुपये के गिरने के साथ आईओसी के शेयर भी मई से 30 फीसदी गिर गए हैं.

कोल इंडिया का विनिवेश

सरकार की योजना थी कि कोल इंडिया के 10 फीसदी शेयर बेचे जाएंगे, जिसे पहले ही घटा कर पांच फीसदी कर दिया गया. अब यूनियन इसके किसी भी हिस्से को बेचने के खिलाफ हैं. अगले महीने हड़ताल की योजना है ताकि सरकार पर पांच फीसदी शेयर न बेचने का दबाव बनाया जा सके. कोल इंडिया के मानव संसाधन और औद्योगिक संबंध विभाग के निदेशक आर मोहन दास का कहना है, "हो सकता है कि यह योजना अपने आप तब तक टल जाए, जब तक कि बाजार स्थिर नहीं हो जाता."

जून में चिदंबरम ने कहा था कि सरकार की योजना है कि कोल इंडिया के 10 फीसदी शेयर बेच कर 200 अरब रुपये (करीब 3.15 अरब डॉलर) जुटाए जाएं. लेकिन बाजार के मौजूदा हाल को देखते हुए अगर कोल इंडिया और इंडियन ऑयल के शेयरों से अब सरकार को सिर्फ दो अरब डॉलर ही मिल पाएंगे.

इंडियन ऑयल के शेयरों को बेचने की कैबिनेट से हरी झंडी मिल चुकी है. हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड और भारत हेवी इलेक्ट्रिल्स लिमिटेड के शेयर भी मार्च 2014 तक बेचने हैं. उसके बाद भारत में कभी भी आम चुनाव हो सकते हैं.

एजेए/एमजे (रॉयटर्स)

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