प्लास्टिक सर्जरी से सस्ते में सुंदरता
१३ अप्रैल २०१०माना जाता है कि भारत में प्लास्टिक सर्जरी का बाज़ार सालाना 30 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ रहा है. जैसे जैसे और लोग अपनी सुंदरता और रूप रंग को और गंभीरता से लेंगे, वैसे वैसे बाज़ार बढ़ता रहेगा और कॉस्मेटिक सर्जरी के विशेषज्ञों के दफ्तरों के बाहर अपनी नाक या चेहरा सुधारने लोगों की लाइनें बढ़ती रहेंगी.इस वक़्त भारत में प्लास्टिक सर्जरी कराने 10 प्रतिशत लोग विदेश से आते हैं. ज़्यादातर लोग नाक के आकार को सुधारने वाले ऑप्रेशन और मोटापा कम करने वाली प्रक्रियाओं कि लिए आते हैं.
वैसे चीन औऱ दक्षिण कोरिया में भी नाक ठीक कराने के ऑप्रेशन युवाओं में लोकप्रिय हैं. लेकिन जर्मनी के मशहूर बोडनज़े कॉस्मेटिक सर्जरी क्लीनिक के डॉ. मांग कहते हैं कि इस तरह का 'सर्जरी पर्यटन' मरीज़ों के लिए सुरक्षित नहीं है औऱ बाद में काफ़ी परेशानियां हो सकती हैं.
मांग कहते हैं, "मैं सस्ते ऑप्रेशन के खिलाफ लोगों को चेतावनी देता हूं, जहां मरीज़ों के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा जाता. मेरे पास कुछ ऐसे मरीज़ आए हैं जिन्हें हेपेटाइटिस हो गया था या उनके स्तनों में सिलिकॉन डालने की वजह से परेशानी हो गई थी या फिर उनके होंठो में इतना सिलिकॉन डाल दिया गया कि वे बिलकुल नहीं बोल पा रहे थे." मांग मानते हैं कि एशियाई देशों में इलाज के पैसे कम लगते हैं लेकिन उनकी प्रक्रिया में मरीज़ को दर्द का काफ़ी अनुभव होता है.
मांग चिंतित हैं कि 1990 के दशक में 40 या 50 साल की महिलाएं प्लास्टिक सर्जरी कराती थीं, लेकिन अब 14 साल की लड़कियां भी किसी फ़िल्म स्टार या मॉडल जैसी दिखना चाहती हैं. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि प्लास्टिक सर्जरी का बखान कर रहे क्लीनिक और प्रचार लोगों को यह कह कर आकर्षित करते हैं कि मैगज़ीन में मॉडल्स की तरह सुंदर हो कर ज़िंदगी आसान हो जाएगी या सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.
दिल्ली में मनोवैज्ञानिक डॉ संजय चुघ कहते हैं इन्सानों को अपने शरीर से हमेशा से ही शिकायते थीं, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह परेशानी औऱ बढ़ गई है. पहले लोगों के पास विकल्प नहीं थे, अब कॉस्मेटिक सर्जन के पास जाने का विकल्प है. और जब आपके पास इस परेशानी का हल है तो परेशानी भी किसी न किसी तरह निकल आती है.
ज़ाहिर है कि जब परेशानी का हल औऱ पैसों की बचत एक साथ हो सकते हैं, तो लोग एक ऐसा विकल्प ढूंढ निकालेंगे जो सबसे सस्ता होगा और जिससे वह अपने रूप रंग से संबंधित 'परेशानी' को दूर कर सकते हैं. इस बीच कंपनियां या डॉक्टर लोगों के आत्मविश्वास में कमी का फ़ायदा उठाते रहेंगे.
रिपोर्टः सारा बेर्निंग/ एम गोपालकृष्णन
संपादनः एस गौड़