फलीस्तीन का मुद्दा आज सुरक्षा परिषद में
२८ सितम्बर २०११इस महीने के क्रमिक अध्यक्ष लेबनान के राजदूत नवाफ सलाम ने बताया कि सुरक्षा परिषद फलीस्तीन के मुद्दे पर दो दिन के भीतर विचार करेगी. इस दौरान एक कमेटी बनाई जाएगी जो फलीस्तीन के अनुरोध का अध्ययन करेगी.
क्या होगा सुरक्षा परिषद में
फलीस्तीन को सुरक्षा परिषद के 15 में से कम से कम नौ सदस्यों का समर्थन मिलना चाहिए. अमेरिका कह चुका है कि वह इस मुद्दे पर वीटो कर देगा. अगर ऐसा होता है तो सदस्यता का औपचारिक अनुरोध 193 सदस्यों वाली महासभा में नहीं जा पाएगा, जहां उसे दो तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए. लेकिन जिस तरह प्रक्रिया चल रही है, उससे लगता है कि सुरक्षा परिषद में ही इस मुद्दे को हफ्तों तक लटके रहना पड़ सकता है. फलीस्तीन ने शुक्रवार को अपना औपचारिक अनुरोध संयुक्त राष्ट्र को सौंपा है.
एक अमेरिकी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अमेरिका बाकी सदस्यों से जल्दबाजी न करने को कह रहा है. अमेरिका और इस्राएल दोनों ही फलीस्तीन को राष्ट्र का दर्जा दिए जाने का विरोध कर रहे हैं. इसके लिए अमेरिका बाकी सदस्यों का समर्थन जुटा रहा है. उसकी कोशिश है कि फलीस्तीन को किसी तरह वोटिंग के लिए जल्दी न करने के लिए मना लिया जाए.
अमेरिकी रुख
अमेरिका का कहना है कि अगर प्रक्रिया को धीमा कर दिया जाएगा तो इस्राएल और फलीस्तीन के बीच शांति वार्ता शुरू होने का वक्त मिल सकता है. अमेरिका के मुताबिक अगर ऐसा हो जाता है तो संयुक्त राष्ट्र में किसी भी तरह के विवाद से बचा जा सकता है.
इस बीच सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस सऊद अल-फैसल ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की है कि फलीस्तीन की पूर्ण सदस्यता की अपील को मंजूर कर लिया जाए. फैसल ने कहा, "इस्राएल लगातार शांति प्रक्रिया में बाधा पहुंचाता रहा है. लिहाजा सऊदी अरब संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से अपील करता है कि वे 4 जून 1967 की सीमाओं की स्थिति पर फलीस्तीन को राष्ट्र के रूप में स्वीकार कर लें. इस राष्ट्र की राजधानी पूर्व यरुशलम होगी."
सऊदी विदेश मंत्री अपना भाषण देने के लिए खुद नहीं आए. उनके बयान को सोमवार का सत्र खत्म होने के बाद लिखित रूप में सदस्यों में बांटा गया. फैसल का बयान अमेरिका पर दबाव बनाने का काम कर सकता है क्योंकि सऊदी अरब अमेरिका का करीबी है.
इस्राएल आक्रामक
इस मुद्दे पर इस्राएल का रुख बहुत ज्यादा आक्रामक बना हुआ है. मंगलवार को तो वहां की सरकार ने कब्जे वाले पूर्व यरुशलम में 1100 नए घर बनाने की इजाजत दे दी. उसका यह फैसला पहले ही तनावपूर्ण संबंधों को और ज्यादा बिगाड़ सकता है.
इस्राएल के गृह मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि दक्षिण पूर्व यरुशलम में तेजी से फैल रहे इलाके जिलो में ये नए घर बनाए जा सकते हैं. मंत्रालय के मुताबिक जनता को फैसले पर अपनी राय देने के लिए 60 दिन का वक्त मिलता है, जिसके बाद घर बनाने का काम शुरू हो सकता है.
फलीस्तीन के मुख्य वार्ताकार साएब एरेकात ने इस्राएल के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि 1100 घर बनाने का फैसला शांति वार्ता के लिए 1100 बार ना कहने जैसा है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आज फलीस्तीन को राष्ट्र का दर्जा देने की मुद्दे की औपचारिक प्रक्रिया शुरू होगी. पहले दौर में इस बात पर विचार होगा कि फलीस्तीन को दर्जा दिया जाना चाहिए या नहीं.
इतिहास की फांस
फलीस्तीन पूर्वी यरुशलम को भविष्य में अपनी राजधानी बनाने का दावा करता है. उसकी मांग है कि इस्राएल हर तरह का निर्माण का काम रोक दे. इस्राएल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर 1967 के मध्य पूर्व युद्ध में कब्जा कर लिया था. दोनों देशों के बीच शांति वार्ता यहां हो रहे निर्माण की वजह से ही रुकी रही है.
फलीस्तीन की शर्त है कि इस्राएल के निर्माण रोकने के बाद ही बातचीत शुरू होगी. और इस्राएल किसी भी कीमत पर या किसी के भी कहने पर निर्माण रोकने को तैयार नहीं है. उसका कहना है कि यहूदी, मुस्लिम और ईसाइयों के धर्मस्थलों का घर पूर्वी यरूशलम उसकी अविभाजित राजधानी का हिस्सा है.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ईशा भाटिया