फुटबॉल में बड़े बदलाव को हरी झंडी
२८ जुलाई २०११ब्लाटर ने अब तक गोललाइन पद्धति का विरोध किया है लेकिन पिछले साल हुए वर्ल्ड कप के दौरान इंग्लैंड के फ्रांक लैम्पार्ड के एक गोल को लेकर उनका नजरिया बदल गया. जर्मनी के खिलाफ हुए मैच में लैम्पार्ड के शॉट पर गेंद ने गोललाइन पार कर लिया लेकिन रेफरी ने इसे नहीं देखा और गोल नहीं माना गया. इंग्लैंड यह मैच हार कर बाहर हो गया. ब्लाटर ने सार्वजनिक तौर पर इस मामले में माफी मांगी थी और कहा था कि इस मामले ने गोललाइन पद्धति पर उनकी सोच बदल दी.
उन्होंने कहा कि फुटबॉल एसोसिएशन की अगले साल लंदन में बैठक होने वाली है और अगर वे किसी फूलप्रूफ पद्धति को मान लेते हैं तो उसके बाद से कोई भी लीग इसे लागू कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर एसोसिएशन ने इसे मान लिया तो 2014 के विश्व कप के दौरान इसे अमल में लाया जाएगा.
अगले साल होगा शुरू
पिछले हफ्ते इंग्लैंड में प्रीमियर लीग के चीफ एक्जक्यूटिव रिचर्ड स्कूडामोर ने कहा था कि वह 2012/13 के सत्र में इसे अमल में लाना चाहते हैं और अगर सब कुछ ठीक चला तो ऐसा हो सकता है. हालांकि ब्लाटर का कहना है कि फीफा इस मामले में औपराचिक फैसला अगले साल ही करेगा. उन्होंने कहा, "हो सकता है कि 2014 विश्वकप में रेफरी की मदद के लिए यह नया जरिया काम में लाया जाए." उन्होंने यह भी साफ किया कि हाल के दिनों में गोललाइन के पीछे दो रेफरी को रखने की प्रायोगिक शुरुआत हुई है लेकिन इस पर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है. पोलैंड और यूक्रेन में अगले साल होने वाले यूरोपीय चैंपियनशिप के बाद जुलाई, 2012 में इस पर आखिरी फैसला होगा.
गोललाइन तकनीक
गोललाइन तकनीक में हॉक्स आई के इस्तेमाल का प्रस्ताव रखा गया है, जैसा कि क्रिकेट, टेनिस और स्नूकर जैसे खेलों में देखा जाता है. इसमें खेल की जगह पर हाई स्पीड वाले वीडियो कैमरा लगाए जाते हैं, जो विजुअल आंकड़े जुटाते हैं और फिर उन्हें ट्राइएंगुलेशन (कोणों के आधार पर किसी वस्तु की स्थिति पता लगाना) की पद्धति पर परखा जाता है. इसके लिए अलग अलग जगहों पर छह खास कैमरे लगाए जाते हैं. सिस्टम रियल टाइम में नहीं होता और इसे परखने के लिए अतिरिक्त वक्त की जरूरत होती है. इस वजह से खेल रोकना पड़ता है. क्रिकेट में अकसर एलबीडब्ल्यू की अपीलों पर इसे अमल में लाया जाता है और थर्ड अंपायर इस पर फैसला करता है.
जानकारों का विरोध
इसके लिए बॉल का कम से कम 25 प्रतिशत हिस्सा दिखना चाहिए. लेकिन आलोचकों का कहना है कि इसे लागू करने से खेल खेल नहीं रह जाता और तकनीक का अखाड़ा बन जाता है. उनका मानना है कि गलती की संभावना (मार्जिन ऑफ एरर) बहुत कम हो जाती है, जो किसी खेल में नहीं होना चाहिए. उनका यह भी कहना है कि बार बार रीप्ले देखने से खेल की रफ्तार सुस्त पड़ जाती है. इस वजह से इस बात पर हमेशा चर्चा चलती है कि इसकी सीमित अपील की ही संभावना रहनी चाहिए. ब्लाटर के अलावा टेनिस के सुपर स्टार रोजर फेडरर और रफाएल नडाल भी इस प्रस्ताव का विरोध करते हैं.
बिजली की तकनीक
फुटबॉल में एक और तकनीक की बात, वह पूरी तरह बिजली और सेंसर पर आधारित है. इसमें गोल के अंदर बिजली की तार बिछाई जाती है और जैसे ही गेंद इस इलाके में प्रवेश करती है इन तारों का चुंबकीय क्षेत्र सक्रिय हो जाता है और सेंसर काम करने लगता है. इससे गेंद की लोकेशन आसानी से तय हो सकती है.
फुटबॉल में गोल के लिए गेंद का जाल छूना जरूरी नहीं है, बल्कि एक बार अगर वह गोललाइन पार कर जाए, तभी गोल मान लिया जाता है.
रिपोर्टः रॉयटर्स/ए जमाल
संपादनः ए कुमार