'बंटवारे ने पैदा किया भारत-पाक में असंतुलन'
१९ दिसम्बर २००८स्विट्ज़रलैंड के ज्यूरिख़ से छपने वाले जर्मन अख़बार नोएये ज़ूरिशर त्साइटुंग भारत और पाकिस्तान के मौजूदा तनाव को ऐतिहासिक नज़रिए से देखता है. अख़बार की टिप्पणी है कि बंटवारे ने दोनों देशों में एक असंतुलन पैदा कर दिया. नोएये ज़ूरिशर त्साइटुंग कहता हैः
"दोनों तरफ़ कई लोगों की जानें गईं. उनके घर बार छूटे और वे शरणार्थी बने. इसके बाद पाकिस्तान में मुसलमानों का बहुमत हो गया. ऐसे में वह एक इस्लामी देश ही बन सकता था. लेकिन भारत में पंद्रह करोड़ मुसलमान रहते हैं यानी देश के पंद्रह फ़ीसदी नागरिक मुस्लिम हैं. कहा जा सकता है कि जितने मुसलमान पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहते हैं, उतने ही भारत में भी. ऐसे में भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश ही बन सकता था. असंतुलन इसलिए भी है कि भारत अर्थव्यवस्था और जीवनस्तर को लेकर पाकिस्तान से काफ़ी आगे है और इस वजह से कई बार पाकिस्तान को झटका भी लगा है. दूसरी ओर भारत अब तक धर्मनिरपेक्ष देश बना रहा, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह पाकिस्तान से बहुत आगे निकल गया है."
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में विज्ञान और राजनीति की मशहूर फाउंडेशन की अपनी पत्रिका निकलती है. इस बार इसमें मुंबई के आतंकवादी हमलों को ख़ास जगह दी गई है. पत्रिका के मुताबिक़, "यह हमले पाकिस्तान और भारत, दोनों देशों के लिए एक जाल हैं. वह इस जाल से तब ही बच सकते हैं जब वह कई चुनौतियों का सामना कर सकें. भारत को एक समुचित विदेश नीति ढूंढना है और पाकिस्तान को आंतरिक नीति. जब ये दोनों देश आतंकवादियों के उकसाने पर तनाव में न आने में सफल रहेंगे, तब संकट के दौरान ये आपसी सहयोग बढ़ाने के अवसर निकाल सकेंगे. पहली बार दोनों देशों का एक साझा दुश्मन सामने आया है जैसे कि आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा, जिसे मुंबई हमलों का ज़िम्मेदार माना जा रहा है. और यह दुश्मन सिर्फ़ दोनों देशों को चुनौती नहीं दे रहा है, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय ढांचे को चुनौती दे रहा है."
जर्मनी की बेहद महत्वपूर्ण पत्रिका डेयर श्पीगल ने लिखा है कि पाकिस्तान में राष्ट्रपति असिफ अली ज़रदारी नामुमकिन काम करने की कोशिश कर रहे हैं. एक तरफ से वह भारत से नाता तोड़ना नहीं चाहते हैं और दूसरी ओर वह अपनी ही सेना से बचने की कोशिश कर रहे हैं जो इसलामी कट्टरपंथियों को लेकर सहानुभूति दिखाती अई है. इसलिए वह ज़रदारी को शक की नज़र से देख रही है. डेयर श्पीगल की रिपोर्ट कहती है कि "ज़रदारी ने अब तक भारत के साथ युद्ध से बचने के लिए सब कुछ किया. लेकिन ऐसे मे उनके खिलाफ अपने ही देश में विरोधियों की संख्या बढ़ रही है. ज़रदारी पहले पाकिस्तानी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने कश्मीर में सक्रिय चरमपंथियों को आतंकवादी कहने की हिम्मत की है. और भी ज़्यादा हिम्मत का काम यह है कि ज़रदारी ने कहा कि भारत कभी भी पाकिस्तान के लिए ख़तरा नहीं है. दोनों देशों ने एक दूसरे के खिलाफ तीन युद्ध लड़े हैं. इस तरह की मेल मिलाप की तैयारी पाकिस्तान जैसे देश में मौत का कारण हो सकती है, क्योंकि पाकिस्तान एक ऐसा देश है जिसके बारे में कहा जाता है कि सेना खुद स्टेट है."
बांग्लादेश में सेना के समर्थन से बनी राष्ट्रपति एयाज़ुद्दीन अहमद की सरकार ने दो साल के बाद बुधवार को इमरजेंसी हटा दिया है. ऐसे में 29 दिसंबर को होने वाले आम चुनाव क़ानून के तहत हो सकते हैं. यह देश के दो सबसे बड़ी पार्टियों की मांग भी थी. बर्लिन की टागेस्साइटुंग का मानना है, "चुनाव के दिन तक बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों और सैनिकों की तैनाती बनी रहेगी. चरमपंथियों का खतरा भी है. साथ में दो सबसे बड़ी पार्टियों के समर्थकों के बीच हिंसा की आशंका भी बनी हुई है. बांग्लादेश बहुत ही ज़्यादा नेतागीरी का शिकार बना हुआ है. हर बार चुनाव जीतने के बाद दोनों पार्टियों ने अपने हज़ारों समर्थकों को आधिकारिक पदों पर पहुंचाया है. यानी चुनाव जीतने पर हज़ारों लोगों का जीवन निर्भर है."