बच्चे रोते हैं मां की जबान में
३० नवम्बर २००९यदि आप सोचते हैं कि बिल्कुल नवजात बच्चे बोली-भाषा के मामले में निहायत अनजान होते हैं और एक ही तरह से रोते हैं, तो आप ग़लत सोचते हैं. बच्चे मां के गर्भ से ही अपनी भावी मातृभाषा सीखने लगते हैं. एक अस्पताल में प्रसूति वार्ड के तीन बिल्कुल नवजात बच्चे. तीनों रो रहे थे, पर एक ही ढंग से नहीं.
पहला बच्चा तुर्की था. दूसरा अरबी. तीसरा जर्मन. उनकी नर्स सिस्टर बार्बरा को पहले ही शक था कि उन के वार्ड के नवजात बच्चे कई भाषाओं में रोते हैं, "कभी कभी सचमुच ऐसा लगता है कि इन बच्चों में से फ़लां बच्चे के रोने में दक्षिणी देशों वाला जोशीलापन है, क्योंकि वह अपनी पूरी ताक़त लगा देता है, और फ़लां बच्चे में शायद उत्तरी जर्मन संकोच छिपा हुआ है."
अब जर्मन वैज्ञानिकों ने भी इस की पुष्टि कर दी है कि बिल्कुल नवजात बच्चे भी अपनी मातृभाषा की लयताल में रोते हैं. ख़ासकर उनके स्वरों के आरोह-अवरोह मातृभाषा की तर्ज़ पर चलते हैं.
व्युर्त्सबुर्ग विश्वविद्यालय मेडिकल कॉलेज के भाषा-पूर्व विकास और व्यवधान संस्थान की निदेशक डॉ. कथलेन वेर्मके और उन के सहयोगियों ने इस बारे में गहरी खोज की है और उसे विज्ञान पत्रिका करंट बायॉलोजी में प्रकाशित किया है. अपने लेख में उन्होंने लिखा है कि नवजात बच्चे अपने रोने-चिल्लाने के लिए उस लय को पसंद करते हैं, जो उनकी मातृभषा के लिए लाक्षणिक होती है.
डॉ. वेर्मके की टीम ने जर्मनी और फ्रांस के 60 ऐसे नवजात बच्चों के रोने-धोने की रेकॉर्डिंगों का अध्ययन किया, जो केवल तीन से पांच दिन पहले पैदा हुए थे. एक कंप्यूटर की सहायता से इन रेकॉर्डिंगों की फ्रीक्वेंसियों, लयों और उच्चतम स्वरों के ग्राफ़ तैयार किये गये. टीम ने पाया कि नवजात जर्मन बच्चे अधिकतर उच्चतम स्वर में रोना शुरू करते हैं और अंत में उनका स्वर गिर जाता है. इसके विपरीत फ्रांसीसी नवजात बच्चे उठते हुए स्वर में रोना शुरु करते हैं और अंत को लंबा खींचते हैं.
फ्रांसीसी बच्चे, उदाहरण के लिए, जब बोलना शुरू करते हैं, तब अंतिम 'प' पर ज़ोर देते हुए पापा..आआ (Papa') कहते हैं, जबकि जर्मन बच्चे पहले 'प' पर ज़ोर देकर पाआआपा (Pa'pa) पुकारते हैं.
नवजात बच्चों की नर्स सिस्टर बार्बरा ने बिना विज्ञान के ही नवजात बच्चों के भाषा ज्ञान के बारे में अपना सिद्धांत गढ़ लिया था. "मेरा समझना है कि उनके रोने की लय उस परिवेश पर निर्भर करती है, जिसमें गर्भावस्था में वे रह रहे होते हैं. यानी, वे किस परिवार में हैं? घर का वातावरण कैसा है? घर के लोग यदि जोश-ख़रोश वाले हैं तो इस का उन पर वैसा ही असर पड़ता है."
ठीक यही बात शोधकर्ताओं ने भी पायी. उनका कहना है कि गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में गर्भस्थ शिशु ध्यान से सुनना शुरू कर देता है और इस तरह अपने माता-पिता की बोलचाल और भाषा की स्वरशैली को पकड़ने लगता है. वास्तव में श्रवण क्षमता ही वह पहली इंद्रीय क्षमता है, जो गर्भस्थ शिशु में पनपने लगती है.
स्वाभाविक है बच्चा सबसे पहले अपनी मां की आवाज़ को पहचानना शुरू करता है, हालांकि वह गर्भ में रहते हुए बाहरी आवाज़ों को बहुत साफ़ नहीं सुन पाता. उस तक शब्दों की जगह स्वरशैली के आरोह-अवरोह कहीं बेहतर पहुंचते हैं और जन्म के तुरंत बाद वह उसी शैली में रोता है. जर्मन शोधकर्ताओं का कहना है कि गर्भावस्था में ही मातृभाषा की लयताल जान लेने से बाद में उसे सीखना-बोलना सरल हो जाता है.
रिपोर्ट: राम यादव
संपादन: महेश झा