बच्चों के लिए खतरनाक बनती दुनिया
२५ अप्रैल २०१२मोटापा, शराबखोरी और जीवनशैली से जुड़ी दूसरी समस्याएं अमीर देशों से अब गरीब देशों के किशोरों तक बड़ी तेजी से पहुंचने लगी है. मशहूर पत्रिका लैन्सेट के ताजा अंक ने इस बारे में रिसर्च के नतीजे छापे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, "ऊंची कमाई वाली दुनिया में लोग एक दूसरे से न फैलने वाले रोगों के बड़ी तेजी से शिकार बन रहे हैं. इनमें मोटापा, शारीरिक शिथिलता, शराब, तंबाकू और दूसरी नशीली दवाओं की आदत शामिल है. अमीर और खराब जीवनशैली का यह तूफान अब कम और मध्यम कमाई वाले देशों में अपने पैर फैला रहा है जहां अभी आकस्मिक चोट, संक्रामक बीमारियों और गर्भावस्था के दौरान होने वाली मौत जैसी समस्याओं पर नियंत्रण के लिए असरदार उपाय नहीं हैं."
स्वास्थ्य पत्रिका ने स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे दुनिया भर के 1.8 अरब बच्चों के बारे में यह रिपोर्ट छापी है. दुनिया में बच्चों की तादाद इतनी ज्यादा कभी नहीं रही. इसमें 10 से ले कर 24 साल तक के बच्चों और युवाओं को शामिल किया गया है. माना जाता है कि इस उम्र में इंसान शारीरिक रूप से तैयार हो जाता है.
मौत का जोखिम झेल रहे युवाओं की तादाद बहुत ज्यादा है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक इसमें से ज्यादातर को इसकी ठीक से समझ नहीं है. इसके अलावा इस बारे में कोई पक्का दस्तावेज भी नहीं है. इसमें सड़क हादसे से होने वाली मौत को भी शामिल किया गया है. पूरी दुनिया में सड़क हादसे युवाओं के सबसे बड़े दुश्मन हैं. इसके अलावा आत्महत्या, कम उम्र में मां बनना औऱ एड्स के कारण होने वाली मौतों की तादाद भी बहुत ज्यादा है. इस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका में बच्चे और युवा सबसे ज्यादा मौत का शिकार बनते हैं. दक्षिण अफ्रीका में अमीर देशों की तुलना में बच्चों की मौत आठ गुना ज्यादा है जबकि बच्चियों में यह आंकड़ा तीस गुना ज्यादा है.
दुनिया के 27 सबसे अमीर देशों में बच्चों के मौत की दर सबसे ज्यादा अमेरिका में है जहां ज्यादातर बच्चे हिंसा और सड़क हादसों का शिकार बनते हैं. अमेरिका के बाद न्यूजीलैंड और पुर्तगाल की बारी आती है. अमीर देशों की कतार में बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित देश सिंगापुर है इसके बाद नीदरलैंड्स और जापान की बारी आती है.
रिसर्च के दौरान यह बात भी सामने आई है कि बच्चों के लिए ज्यादा मिठास, तेल और नमक वाले खाने की मार्केटिंग भी नुकसान पहुंचा रही है इसके अलावा तम्बाकू कंपनियों के खासतौर पर युवा लड़कियों को लक्ष्य बना कर तैयार किए गए खास विज्ञापन भी खतरनाक हैं. इसके अलावा ट्वीटर और फेसबुक से लैस सोशल मीडिया भी मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक खतरों से अछूता नहीं है. रिपोर्ट "सेक्सटिंग" नाम की एक नई सच्चाई को सामने लाया है जो इंटरनेट और मोबाइल पर अश्लील सामग्रियों भेजे जाने के खतरों से जुड़ा है.
एनआर/एमजे(एएफपी)